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तबाह होने से बच गई यूपी असेंबली, PETN के पीछे कहीं अल कायदा तो नहीं

शुक्र है कि किसी तरह की अप्रिय घटना से पहले ही पीईटीएन को बरामद कर लिया गया, अन्यथा यूपी विधानसभा में भीषण तबाही का मंजर देखने को मिल सकता था।

By Lalit RaiEdited By: Published: Tue, 18 Jul 2017 10:20 AM (IST)Updated: Tue, 18 Jul 2017 10:29 AM (IST)
तबाह होने से बच गई यूपी असेंबली,  PETN के पीछे कहीं अल कायदा तो नहीं
तबाह होने से बच गई यूपी असेंबली, PETN के पीछे कहीं अल कायदा तो नहीं

अरविंद जयतिलक

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उत्तर प्रदेश विधानसभा में खतरनाक विस्फोटक पीईटीएन यानी पेंटा इरिथ्रीटॉल टेट्रा नाइट्रेट का पहुंचना न सिर्फ विधानसभा की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि राज्य को दहलाने की आतंकियों के खतरनाक मंसूबे को भी उद्घाटित करता है। यह उचित है कि राज्य सरकार ने बिना देर किए ही मामले की जांच एनआइए को सौंप दी है और आतंकवाद रोधी दस्ते ने विधायकों और विधानसभा में नियुक्त अधिकारियों व कर्मचारियों से पूछताछ शुरू कर दी है। यह इसलिए भी आवश्यक है कि विधानसभा में आने-जाने वाले लोगों की मिलीभगत के बगैर पीईटीएन जैसे खतरनाक विस्फोटक को वहां पहुंचाना संभव नहीं है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में तकरीबन 26 फीसद गंभीर आपराधिक रिकॉर्ड वाले विधायक हैं। उनकी भी सघन जांच-पड़ताल होनी चाहिए। गौरतलब है कि यह विस्फोटक विधानभवन में उसी जगह पर रखा था जहां तमाम पार्टियों के नेता बैठते हैं। यह शुक्र है कि किसी तरह की अप्रिय घटना से पहले ही पीईटीएन को बरामद कर लिया गया, अन्यथा भीषण तबाही का मंजर देखने को मिल सकता था।

गौरतलब है कि सफेद रंग के पाउडर पीईटीएन का इस्तेमाल आतंकी संगठनों द्वारा तबाही मचाने के लिए किया जाता है। इसका उत्पादन 1912 में शुरू हुआ और सबसे पहले जर्मनी ने प्रथम विश्वयुद्ध में इसका इस्तेमाल किया था। पीईटीएन अब तक ज्ञात सबसे खतरनाक विस्फोटक सामग्रियों की सूची में शुमार है। हाल के वर्षो में आतंकी गतिविधियों में इसका जमकर इस्तेमाल हुआ है। 2001 में अलकायदा के सदस्य रिचर्ड रीड ने अपने जूते के तले में इसको छिपाकर पेरिस से मियामी जा रहे अमेरिकन एयरलाइंस फ्लाइट 63 को उड़ाने का असफल प्रयास किया था इस वजह से इसको शू बॉम्बर भी कहा जाता है।

पीईटीएन की खूबी यह है कि इसे आसानी से पहचाना नहीं जा सकता। बहरहाल जांच के उपरांत ही स्पष्ट होगा कि इस खतरनाक साजिश के पीछे किसी आतंकी संगठन का हाथ है या किसी की बेहूदापूर्ण शरारत। बहरहाल सच जो भी हो, पर पिछले दिनों जिस तरह एक शख्स द्वारा फोन कर विधानभवन को उड़ाने की धमकी दी गई और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर द्वारा टेप जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी को निशाने पर लेने की धमकी दी गई, उससे इस साजिश के पीछे आतंकियों के हाथ होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। यहां ध्यान देना होगा कि उत्तर प्रदेश में इंडियन मुजाहिदीन, जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, अलकायदा और जमात-उद-दावा जैसे प्रतिबंधित संगठनों की मौजूदगी पहले ही साबित हो चुकी है।


याद होगा गत वर्ष झारखंड की राजधानी रांची में इंडियन मुजाहिदीन के बेस कैंप से फरार कुछ आतंकियों में से आठ आतंकी उत्तर प्रदेश के ही थे। इन आतंकी संगठनों के अलावा इस्लामिक स्टेट का खुरासान कानपुर-लखनऊ मॉडयूल भी उत्तर प्रदेश में सक्रिय है। अभी बहुत दिन नहीं बीते हैं जब लखनऊ में इस्लामिक स्टेट का संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया था। संभव है कि इस साजिश के पीछे आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का ही हाथ हो। इसलिए कि उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक सक्रिय आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन ही है। उत्तर प्रदेश में जितने भी आतंकी संगठन अपनी जड़ जमाए हैं सभी की पैदाइश सिमी यानी स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट्स ऑफ इंडिया जैसे आतंकी संगठन के गर्भ से हुआ है।

उल्लेखनीय है कि 1977 में अस्तित्व में आया सिमी पहले इस्लामी छात्र संगठन के रूप में जाना जाता था। वह जमात-ए-इस्लामी हिंद की छात्र इकाई था, लेकिन शीध्र ही उसका आकर्षण जिहाद की ओर बढ़ गया। धीरे-धीरे उसका भारतीय लोकतंत्र पर से विश्वास उठने लगा और वह स्वयं को इंडियन मुजाहिदीन से जोड़ लिया। कई सिमी सदस्य इंडियन मुजाहिदीन के साथ मिलकर देश में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के आरोप में पकड़े भी गए।गौरतलब है कि 2005-06 में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने ही प्रतिबंधित संगठन सिमी के सदस्यों से इंडियन मुजाहिदीन की स्थापना की और कराची प्रोजेक्ट को जन्म दिया।

23 फरवरी, 2005 को इसी आतंकी संगठन के सदस्यों ने वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर आरडीएक्स विस्फोट किया जिसमें सात लोग मारे गए और एक दर्जन लोग बुरी तरह घायल हुए। इसी संगठन ने 7 मार्च, 2006 को वाराणसी के ही संकट मोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन को निशाना बनाया जिसमें डेढ़ दर्जन लोगों की मौत हुई और चार दर्जन लोग बुरी तरह घायल हुए। इंडियन मुजाहिदीन ने वाराणसी के अलावा लखनऊ और फैजाबाद की अदालतों में सिलसिलेवार बम विस्फोट किया था।

खुफिया एजेंसिया पहले ही सतर्क कर चुकी हैं कि उत्तर प्रदेश में इंडियन मुजाहिदीन की सक्रियता बढ़ रही है और वह नौजवानों को गुमराह कर अपने मिशन में शामिल कर रहा है। साथ ही यह भी साबित हो चुका है कि देश में जड़ जमाए इंडियन मुजाहिदीन कई आतंकी संगठनों का मिश्रण है। इस संगठन में सिमी, पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और बांग्लादेश में स्थित आतंकी संगठन हरकत उल जिहाद-ए-इस्लामी यानी हूजी से जुड़े लोग भी शामिल हैं। भारत में सक्रिय हूजी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ के सहयोग से कई आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में कामयाब रहा है।

गत वर्ष खुलासा हुआ था कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के इशारे पर इंडियन मुजाहिदीन ने उत्तर प्रदेश और बिहार के कई नौजवानों को केरल में ले जाकर प्रशिक्षण दिया था। ऐसे में इस निष्कर्ष पर पहुंचना गलत नहीं कि देश में सबसे ताकतवर संगठन इंडियन मुजाहिदीन ही है। दरभंगा मॉड्यूल उसी की देन है जिसके जरिए वह उत्तर प्रदेश, बिहार व झारखंड समेत देश के अन्य राज्यों में अपनी आतंकी गतिविधियों का विस्तार कर रहा है।


यूपी विधानसभा में पीईटीएन मामले में अलकायदा की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कुछ वर्ष पहले अलकायदा सरगना अल जवाहिरी ने भारतीय उपमहाद्वीप में जिहाद का परचम लहराने और इस्लामिक शरीयत की बदौलत खलीफा राज लागू करने का एलान किया था। संभव है कि भारत में इंडियन सबकांटिनेंट नाम से अस्तित्व में आया मॉडयूल इस साजिश के पीछे हो। इसके पीछे किस आतंकी संगठन का हाथ है, जांच का दायरा यहीं तक सीमित नहीं होना चाहिए। उन गद्दारों को भी बेपर्दा किया जाना चाहिए जो चंद पैसों की लालच में आतंकियों का मोहरा बनने और देश को तबाह करने के लिए तैयार बैठे हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
 


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