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यदि सफल रही ये योजना तो कृषकों की आय हो जाएगी निश्चित रूप से दोगुनी

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकसित होने से किसानों को उनकी उपज की मुंहमांगी कीमत मिलेगी। अगर यह प्रक्रिया सफल रही तो कृषकों की आय निश्चित रूप से दोगुनी हो जाएगी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 04 Nov 2017 10:59 AM (IST)Updated: Sat, 04 Nov 2017 01:27 PM (IST)
यदि सफल रही ये योजना तो कृषकों की आय हो जाएगी निश्चित रूप से दोगुनी
यदि सफल रही ये योजना तो कृषकों की आय हो जाएगी निश्चित रूप से दोगुनी

साध्वी निरंजन ज्योति

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भारत में खाद्य प्रसंस्करण कृषि और उत्पादन उद्योग का मुख्य आधार है। भारत हालांकि 1960 के दशक में हरित क्रांति के बाद खाद्यान्न को लेकर आत्मनिर्भर हो गया था, लेकिन यहां खाद्य प्रसंस्करण उद्योग अब भी वैश्विक मानकों के अनुरूप विकसित नहीं हो पाया है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण का स्तर यूरोपीय देशों, अमेरिका और कुछ एशियाई देशों की तुलना में बहुत कम है। भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बदलना ही होगा क्योंकि तभी हम अपने लक्ष्य के अनुसार 2022 तक किसानों की आय को दो गुना कर पाएंगे।

किसानों की स्थिति सुधारने के लिए देश के हर वर्ग को प्रयास करना होगा। इससे बाजारों में बिक्री और उत्पादन बढ़ेगा। यह सभी कुछ आपस में जुड़ा हुआ है। इसे और मजबूत करने की जरूरत है। भारत सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है और इसके शुरुआती परिणाम भी मिलने लगे हैं। प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, नीमकोटेड यूरिया, ई- नैम, जैसी कई योजनाएं किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए शुरू की गई हैं। सरकार ये सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है कि किसानों को अपनी उपज को कंपनियों के मनमाफिक दामों पर बेचने के लिए मजबूर न किया जा सके और उनकी फसल का उचित दाम मिले। जोर दिया जा रहा है कि उद्योग कृषि उत्पादों को सीधे किसानों से ही खरीदें।

ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें किसानों ने बाजार की मांग को समझा है और खुद को बदला है, अपनी कृषि को बदला है और अब वे अपनी उपज की बिक्री की प्रक्रिया को बदल रहे हैं। ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है जो कि स्थानीय फलों और सब्जियों का देसी तरीके से प्रसंस्करण कर फ्रूट जैम, अचार और चटनियां आदि बनाकर उन्हें ऑनलाइन व ऑफ लाइन बेच रहे हैं। गेहूं, धान, हल्दी, दालें आदि आर्गेनिक तरीके से उपजा कर, उनकी प्रोसेसिंग करके, ग्राहकों तक किसान खुद ही पहुंचा रहे हैं। इसमें कोई मध्यस्थ नहीं है।1ऐसे किसानों की सफलता को देखकर पहले उनके गांव के, फिर आसपास के गांवों के और फिर पूरे राज्य और देश के किसान प्रभावित होंगे और सरकार के प्रयासों को फलीभूत होने में अधिक समय नहीं लगेगा।

समय की मांग है कि किसान और उद्योग शीघ्रता से एक-दूसरे की जरूरतों को समझें और एक साथ काम करना शुरू करें। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रलय लगातार इस दिशा में काम कर रहा है। मंत्रलय ने हाल ही में 6 हजार करोड़ रुपये की प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना शुरू की है। इसका मुख्य फोकस खाद्य प्रसंस्करण कार्यकलापों के क्लस्टर आधारित विकास को गति देना है। इनमें मेगा फूड पार्क, एकीकृत शीत श्रंखला एवं मूल्य वर्धन ढांचा, खाद्य संरक्षा एवं गुणवत्ता,कृषि प्रसंस्करण क्लस्टर अवसंरचना, खाद्य प्रसंस्करण एवं परिरक्षण क्षमताओं का सृजन/विस्तार तथा बैकवर्ड तथा फारवर्ड लिंकेज सृजन आदि योजनाएं शामिल हैं। इस योजना से न केवल खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में उछाल आएगा बल्कि किसानों को बेहतर मूल्य मुहैया कराने में भी मदद मिलेगी।

साथ ही यह किसानों की आय दोगुना करने, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित करने, कृषि उपज की बर्बादी को कम करने, प्रसंस्करण के स्तर को बढ़ाने तथा प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थो के निर्यात को बढ़ाने के प्रति एक बड़ा कदम है। इससे न केवल उद्यमियों की आय बढ़ेगी बल्कि किसानों तथा अन्य स्थानीय लोगों की आय में भी वृद्धि होगी। इससे 2019-20 तक देश में 31,400 करोड़ रुपये के निवेश, 1,04,125 करोड़ रुपये के 334 लाख मीटिक टन कृषि उत्पाद की हैंडलिंग, 20 लाख किसानों को लाभ और 5,30,500 प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना की एक महत्वपूर्ण स्कीम मेगाफूड पार्क के तहत प्राथमिक प्रसंस्करण एवं संग्रहण केंद्रों के लिए ढांचा तैयार करने को लेकर प्रति परियोजना 50 करोड़ रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जा रही है।

प्रत्येक मेगा फूड पार्क से लगभग 25 हजार किसानों को लाभ मिलने और लगभग 5000 लोगों के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर सृजित होने की संभावना है। ऐसे प्रसंस्करण क्लस्टरों के विकास से उत्पादन प्रणालियों में नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाने में भी सहायता मिलेगी तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि करने में और किसानों की आय बढ़ने में मदद मिलेगी। देश में जब तक कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण की प्रक्रिया बेहतर नहीं होगी, तब तक उनका बेकार होना जारी रहेगा। देश में हर साल हजारों करोड़ों रुपये की कृषि उपज, प्रसंस्करण की कमी के कारण सड़ जाती है। इससे फल और सब्जियां सर्वाधिक प्रभावित होती हैं क्योंकि उन्हें ज्यादा समय तक नहीं रखा जा सकता है।

खाद्य मूल्य श्रृंखला के लिए ढांचे और प्रौद्योगिकी की कमी के कारण कृषि उपज के नुकसान होने का सिलसिला चलता रहता है। विकसित देशों ने ऐसी समस्याओं को प्रभावी ढंग से निपटाया है, जबकि भारत अब भी इस समस्या से निजात पाने की दिशा में प्रयासरत है। भारत में लोग इस दिशा में काम करें इसके लिए सरकार उन्हें लगातार प्रोत्साहित कर रही है। सरकार सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही प्रयास नहीं कर रही है बल्कि इस उद्योग में विदेशी निवेशकों को भी प्रोत्साहित कर रही है। सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा पहले ही 100 प्रतिशत कर दी है। इन प्रयासों को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए नई दिल्ली में 3 से 5 नवंबर तक वल्र्ड फूड इंडिया 2017 का आयोजन चल रहा है।

इस दौरान देश-विदेश के निवेशक बिजनेस टू बिजनेस और बिजनेस टू गवर्नमेंट बैठकों में शामिल हो रहे हैं। कई राज्यों ने भी आयोजन स्थल पर अपना पवेलियन बनाया है और अपने अपने राज्यों में खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में निवेश के लिए निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं। इस आयोजन से भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में विदेशी निवेश के आने की संभावना है। यह आयोजन किसानों और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को भी एक-दूसरे के करीब लाएगा। बहरहाल, बेहतर खाद्य उत्पादों का बाजार तैयार है। बढ़ता मध्यम वर्ग इस बाजार को और आगे बढ़ा रहा है। अब कमी बेहतर खाद्य उत्पादों की है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विकसित होगा तो किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य भी वह देने में सक्षम हो सकेगा।

(लेखिका खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्यमंत्री हैं)


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