पहले सामान्य रेल सेवा में हो सुधार फिर चले ‘बुलेट ट्रेन’
अच्छी बात है कि सरकार ने 15 अगस्त, 2022 से बुलेट ट्रेन चलाने की घोषणा की है। इससे भारतीयों में बुलेट ट्रेन से लैस देश का नागरिक होने का अभास जरूर होगा।
अमलेश प्रसाद
अच्छी बात है कि सरकार ने 15 अगस्त, 2022 से बुलेट ट्रेन चलाने की घोषणा की है। इससे भारतीयों में बुलेट ट्रेन से लैस देश का नागरिक होने का अभास जरूर होगा, लेकिन रेल गाड़ियों के बेपटरी होने और देश की गरीब जनता की जेब से बाहर होती ट्रेन यात्र की स्थिति बताती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को ऐसे सपने दिखा रहे हैं जैसे वह स्वर्ग में सीढ़ी लगाने जा रहे हैं। रेल मंत्रालय के कुप्रबंधन का स्तर यह है कि पैसेंजर ट्रेन से लेकर राजधानी तक कब बेपटरी हो जाए किसी को पता नहीं। यात्रियों की सुरक्षा की गारंटी लेने वाला कोई नहीं है।
इतनी दुर्घटनाओं और यात्रियों की मौत के बावजूद तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इस्तीफा देने की जरूरत नहीं समझी। हालांकि कैफियात ट्रेन हादसे के बाद उन्होंने इस्तीफा देने का प्रस्ताव जरूर रखा, लेकिन प्रधानमंत्री ने इसे स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। यह घटनाक्रम बताता है कि राजग सरकार बहुमत के चलते अहंकार से भर गई है जहां उसे जनता के सुरक्षा की परवाह तक नहीं रही। रेल हादसों का सिलसिला इस तरह अंतहीन सिलसिला में तब्दील हो चुका है कि लोग ट्रेन या को लेकर हमेशा भयभीत रहने लगे हैं कि कहीं उनकी रेगगाड़ी भी बेपटरी न हो जाए।
रेलवे प्रबंधन इतना अमानवीय है कि यात्रियों से उनके मंगलमय और शुभ यात्र का पूरा किराया पहले ही वसूल लेता है, लेकिन सुखद यात्र के नाम पर उन्हें दुखद यात्र के लिए छोड़ देता है। रेलमपेल भीड़ में धक्का-मुक्की करके लोग जैसे-तैसे ट्रेन पर चढ़ तो जाते हैं, लेकिन इनमें से कई लोगों को टॉयलेट में बैठकर सफर करना पड़ता है। 1भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने 80 ट्रेनों और 74 रेलवे स्टेशनों पर किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट विगत जुलाई में संसद में प्रस्तुत की थी। इसका सार यह है कि रेलगाड़ियों और रेलवे स्टेशनों पर बिक रही चीजें खाने-पीने लायक नहीं हैं।
इस रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि ट्रेनों और स्टेशनों पर साफ-सफाई का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता है। कूड़ेदानों को न तो ढक कर रखा जाता है और न ही इनकी नियमित सफाई होती है। बोगियों और स्टेशनों की सफाई के लिए निजी कंपनियों को लगाया गया है। फिर भी साफ सफाई की बदतर स्थिति यथावत बनी हुई है। इन तमाम बदइंतजामों के बीच भी बुलेट ट्रेन चलाई जा सकती है क्या? हां चलाई जा सकती हैं, क्योंकि भारत के लोग बहुत ही सहनशील हैं। ये लोग सरकार से कभी प्रश्न करने का साहस नहीं कर पाते। मगर इस बुलेट ट्रेन में यात्रियों का जीवन कितना सुरक्षित रहेगा? इसकी कोई जीवन बीमा नीति सरकार और रेल मंत्रालय के पास नहीं है? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो बताता है कि 2014 में रेल दुर्घटनाओं में मारे गए लगभग 28,000 लोगों में से करीब 18,000 ट्रेन के बेपटरी होने की वजह से मारे गए थे।
अप्रैल 2014 में देश में 11,000 से ज्यादा ऐसे क्रॉसिंग थे जिन पर फुट ओवरब्रिज और सब-वे बनाने की योजना अधर में लटकी हुई है। इसका कारण पैसे की कमी बताई गई। वहीं किराये के मामले में जनता ठगी हुई महसूस कर रही है। 1853 से अब तक पहले दर्जे का किराया 2 रुपये 10 आने, दूसरे दर्जे का किराया एक रुपये 1 आना और तीसरे दर्जे का किराया 5 आना 3 पैसा से बढ़कर हवाई जहाज के किराये के बराबर हो गया है। जब लालू प्रसाद रेल मंत्री थे, तब रेल बजट में काफी मुनाफा दिखाया गया था। मगर जानकारों का कहना है कि रेल मंत्रालय के पास आधुनिकीकरणके लिए पर्याप्त बजट नहीं है, लेकिन तुर्रा देखिए मोदी सरकार बुलेट ट्रेन चलाने जा रही है।
बुलेट ट्रेन की आधारशिला रखने के लिए जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी को आमंत्रित करना और अहमदाबाद में रोड शो करना मोदी के राजनीतिक मंसूबे को उजागर करता है। कुछ ही दिनों में गुजरात विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कहा जा रहा है कि जापान के प्रधानमंत्री के साथ रोड शो गुजरात चुनाव के मद्देनजर ही किया गया। अगर यह सही है तो इस रोड शो में इतना खर्च क्यों किया गया,जबकि सरकार के पास रेलवे का बुनियादी ढांचे के लिए बजट नहीं है। यह स्थिति सरकार के इरादे को संदिग्ध बनाती है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)