तो इसलिए डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा में बरती नरमी
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रंप ने अमेरिका से वादा किया था कि सत्ता में आने पर एच-1 बी वीजा पर काम करने वाले कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन बढ़ाएंगे।
नई दिल्ली, [अरविंद जयतिलक]। भारत के लिए यह राहतकारी है कि अमेरिका ने एच-1बी वीजा अवधि बढ़ाने पर रोक लगाने और इससे जुड़े नियम को सख्त बनाने के प्रस्ताव का विचार त्याग दिया है। इस नरमी से अमेरिका में काम कर रहे उन साढ़े सात लाख भारतीय पेशेवरों को राहत मिली है, जो नौकरी जाने की आशंका से भयभीत थे। इनमें एच-1बी वीजा अवधि को बढ़ाने पर रोक का प्रस्ताव भी शामिल था। एच-1बी वीजा नियमों में बदलाव का यह प्रस्ताव राष्ट्रपति ट्रंप के ‘अमेरिकी समान खरीदें, अमेरिकियों को नौकरी पर रखें’ पहल का हिस्सा था।
इस डर से एच-1 वीजा पर बरती नरमी
इस संबंध में प्रस्ताव का मसौदा अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग तैयार कर रहा था, लेकिन कई अमेरिकी सांसदों ने इसे मानवीय आधार पर असंवेदनशील करार दिया और कहा कि इस तरह के सख्त नियम थोपने से एच-1बी वीजा धारकों के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ेगा और दुनिया भर में अमेरिका की छवि खराब होगी सो अलग से। दूसरी ओर इस पहल का यह तर्क देकर भी विरोध किया जा रहा था कि इससे भारत-अमेरिका के रिश्ते प्रभावित होंगे। भारत भी अमेरिका से कई बार अपील कर चुका था कि वह एच-1बी वीजा की अवधि बढ़ाने पर रोक से बचे। अब चूंकि ट्रंप प्रशासन ने एजेंसी अधिनियम एसी21 की धारा 104सी में कोई बदलाव नहीं करने को फैसला कर लिया है, ऐसे में अब वीजा की अवधि को सहजता से छह साल की सीमा से ज्यादा विस्तार दिया जा सकता है।
गौरतलब है कि निवास की अवधि तीन वर्ष है जिसे छ: वषों तक विस्तारित किया जा सकता है। एच-1बी इमीग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट की धारा 101 (ए) 15 (एच) के अंतर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका में एक गैर-आप्रवासी वीजा है। यह अमेरिकी नियोक्ताओं को विशेषतापूर्ण व्यवसायों में अस्थायी तौर पर विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है।
अमेरिकी कंपनियों को सस्ते दामों पर मिल जाते हैं लोग
इसी वीजा पर दूसरे देशों के पेशेवर अमेरिका पहुंचते हैं। अगर ट्रंप प्रशासन एच-1बी वीजा अवधि बढ़ाने से इन्कार करता तो तकरीबन पांच लाख से अधिक भारतीय आइटी पेशेवरों को अमेरिका छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रंप ने अमेरिका से वादा किया था कि सत्ता में आने पर एच-1 बी वीजा पर काम करने वाले कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन बढ़ाएंगे। अगर न्यूनतम वेतन बढ़ता तो फिर नौकरियां भारतीयों के हाथ से निकलकर अमेरिकी युवाओं के हाथ में जाती। चूंकि कम वेतन पर अमेरिकी युवा काम करने को तैयार नहीं होते हैं, इसलिए भारतीयों को काम मिल जाता है। इससे भारतीय युवाओं को रोजगार तो मिलता ही है साथ ही अमेरिकी कंपनियों को भी सस्ते मूल्य पर श्रमिक उपलब्ध हो जाते हैं।
ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान कॉरपोरेट टैक्स की दर 35 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत करने के अलावा दूसरे देशों के लोगों को स्किल्ड वीजा में कमी और अमेरिकी युवाओं को अधिक रोजगार देने का वादा किया था। ट्रंप की जीत के बाद उन पर वादे को निभाने का दबाव बढ़ गया था। अगर ट्रंप प्रशासन अपने वादे पर खरा उतरता तो नि:संदेह भारत के प्रौद्योगिकी कंपनियों केकर्मचारियों का भारी नुकसान होता।
सबसे अधिक नुकसान भारतीयों का
ध्यान रखना होगा कि एच-1बी वीजा अवधि बढ़ाने पर रोक से सर्वाधिक नुकसान भारतीयों पेशेवरों का होता। इसलिए कि अमेरिका में जितने भी विदेशी पेशेवरों को एच-1बी वीजा दिया जाता है उनमें 90 प्रतिशत भारतीय होते हैं। अमेरिका के वर्तमान कानून के अनुसार प्रत्येक आर्थिक वर्ष में अधिकतम 65 हजार विदेशियों को ही एच-1 बी वीजा जारी किए जाते हैं। हालांकि इसके अलावा विश्वविद्यालयों और गैर-लाभकारी अनुसंधान संस्थाओं में कार्य करने वाले सभी एच-1बी गैर-प्रवासी इस सीमा से बाहर रखे गए हैं। बहरहाल ट्रंप प्रशासन की नरमी से भारतीय पेशेवरों को राहत तो मिली ही है।
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