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कुलभूषण जाधव से मिलेंगी मां और पत्नी, सरबजीत की बहन ने जतायी खुशी

पाकिस्तान ने भले ही कुलभूषण जाधव की मां और पत्नी को आगामी 25 दिसंबर को उनसे मिलने की इजाजत दे दी हो, लेकिन सरबजीत की बहन दलबीर को पाकिस्तान की नीयत पर शक है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 08 Dec 2017 07:11 PM (IST)Updated: Fri, 08 Dec 2017 07:15 PM (IST)
कुलभूषण जाधव से मिलेंगी मां और पत्नी, सरबजीत की बहन ने जतायी खुशी
कुलभूषण जाधव से मिलेंगी मां और पत्नी, सरबजीत की बहन ने जतायी खुशी

तरनतारन, [धर्मवीर मल्हार]। पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी और व्यापारी कुलभूषण जाधव की मां व पत्नी को उनसे मिलने के लिए पाकिस्तान ने 25 दिसंबर की तारीख दी है। इस पर सरबजीत सिंह की बहन दलबीर कौर न कहा है कि यह खुशी की बात है। अब देखना यह है कि इस मामले में पाकिस्तान अपनी नापाक शरारत करने से बाज आता है या नहीं। 

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पाकिस्तान की जेल में मौत की सजा का सामना कर रहे कुलभूषण जाधव के मामले में उन्होंने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि कुलभूषण जाधव को उनके परिवार से मिलाते समय पाकिस्तानी जेल अधिकारियों और आइएएस अधिकारियों का जमावड़ा नहीं होना चाहिए। दलबीर कौर ने खुलासा किया कि वह पहली बार परिवार समेत 2008 में सरबजीत को जेल की काल कोठरी में मिली थी। 2011 में दो बार अकेले सरबजीत को जेल में मिली। तीनों मुलाकातों के दौरान पाकिस्तान के अधिकारियों की मौजूदगी रही थी, जो ठीक नहीं थी।

पाकिस्तान की नीयत पर संदेह

उन्होंने कहा, पाकिस्तान समय-समय पर अपने नापाक इरादे जग जाहिर करता रहा है। दलबीर कौर ने कहा कि कुलभूषण यादव की परिवार से मुलाकात के अच्छे नतीजे सामने आने की उमीद है, लेकिन पता नहीं क्यों पाकिस्तान की नीयत पर संदेह होता है। कुलभूषण जाधव की पत्नी और मां से मुलाकात अकेले होनी चाहिए, ताकि पता चले कि कुलभूषण जाधव पर क्या-क्या कहर बरपा है। और पाकिस्तान में जेल अधिकारियों का रवैया कैसा है।

दलबीर कौर ने बताया कि सरबजीत की रिहाई के लिए उसने लंबी लड़ाई लड़ी। मुलाकातों के दौरान सरबजीत ने अपने पर बीती को खुलकर बखान किया। जिसके चलते लड़ाई में सरबजीत की रिहाई यकीनी थी, लेकिन पाकिस्तान ने नापाक इरादों के तहत सरबजीत को शहीद कर दिया गया। दलबीर कौर ने कहा कि केंद्र सरकार ने कुलभूषण जाधव का मामला मजबूती से उठाया है। जिसके लिए केंद्र बधाई का हकदार है। केंद्र की कोशिश से ही कुलभूषण यादव को परिवार से मिलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कुलभूषण जाधव जब तक देश नहीं लौट आता, उतनी देर तक पाकिस्तान पर यकीन नहीं किया जा सकता।

साजिश के तहत हुई सरबजीत की हत्या

भिखीविंड निवासी सरबजीत सिंह को 26 अप्रैल, 2013 को पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में साजिश के तहत हमला कर घायल कर दिया गया था। सरबजीत की बाद में एक मई की रात मौत हो गई थी। मामले में पाकिस्तान सरकार ने जेल के कुछ अधिकारियों को निलंबित करने की घोषणा की थी, लेकिन यह महज एक धोखा था।

दलबीर कौर ने बताया कि भारत में करवाए गए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक सरबजीत का जब पाकिस्तान में पोस्टमार्टम किया गया तो उसकी किडनियां और दिल निकाल लिया गया था। पसलियां भी बुरी तरह टूटी हुई थीं। कुल 17 चोटों की पुष्टि पोस्टमार्टम में हुई थी और सिर में करीब 35 किलो की भारी वस्तु से प्रहार किया गया था, जिस कारण सिर की सारी हड्डियां टूटी हुई थीं।

डेथ सर्टिफिकेट में भी पाकिस्तान ने की मनमानी

पाकिस्तान के लाहौर स्थित जिन्ना अस्पताल द्वारा सरबजीत सिंह का मृत सर्टिफिकेट दो मई, 2013 को जारी किया गया। सर्टिफिकेट पर उसका नाम मंजीत सिंह उर्फ सरबजीत सिंह पुत्र मुख्तार सिंह (रजिस्ट्रेशन नंबर 20126) लिखा हुआ था। जबकि सरबजीत सिंह के पिता का नाम सुलक्खण सिंह है। इस सर्टिफिकेट पर हाई कमिशन ऑफ इंडिया शौकत दास गुप्ता की मुहर लगी हुई है। दलबीर कौर ने हैरानी जताई कि पाकिस्तान सरकार ने अभी तक इस मामले में संबंधी एफआइआर दर्ज नहीं की। उन्होंने कहा कि उस समय पाकिस्तान सरकार ने जेल अधिकारियों को निलंबित करने संबंधी एक ड्रामा रचा था।

 

पत्र में हुई थी भावुक बातचीत

मेरी प्यारी सुखप्रीत। तैनूं की दस्सां, जदों दा मैनूं फांसी लगाऊण दा हुकम होया उदों तों मेरी तडफ़ आउण लई वद्ध गई है। मैं आपणीआं धीआं नूं प्यार नहीं दे सकदा। लगदा है कि जिवें मेरी लाश वी तैनूं नसीब नहीं होणी..। (मेरी प्यारी सुखप्रीत, तुझे क्या बताऊं। जबसे मुझे फांसी देने का हुक्म हुआ है, तबसे मेरी घर आने की इच्छा बढ़ गई है। मैं अपनी बेटियों को प्यार नहीं दे सका। जीते जी तो आ नहीं पाया, लगता है कि मेरी लाश भी तुझे नहीं नसीब होगी।) यह चंद लाइनें उस खत का हिस्सा हैं, जिसे सरबजीत सिंह ने 1991 में फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद कोट लखपत जेल से अपनी पत्नी को लिखा था।

खत को पढ़कर उस समय सुखप्रीत के पैरों तले जमीन निकल गई थी। फिर एक दिन ऐसा खत आया, जिसे पढ़कर परिवार फूला न समाया। पत्र में सरबजीत ने अपनी बहन दलबीर कौर को संबोधित करते हुए लिखा था-माई डियर सिस्टर, असलाम वालेकुम। मैं कुशलपूर्वक हूं और आपकी कुशलता परमात्मा से नेक मतलूब हूं। आगे समाचार ये है कि मुझे दूतावास के लोग मिलने आए हैं और मैं उनके सामने बैठकर खत लिख रहा हूं। मेरे लिए दुआ करना कि मैं जल्द से जल्द आपके पास आ जाऊं और अपनी प्यारी व मां जैसी बहन की सेवा करूं। मेरी तरफ से सुखप्रीत और बेटियों पूनम, स्वप्नदीप को प्यार। सरबजीत की मौत के बाद अब यही खत परिवार के लिए यादें बनकर रह गए हैं।


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