Move to Jagran APP

अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत कम, फिर भी भारत में इसकी मार से परेशान हैं ग्राहक

राजस्व बढ़ाने की मंशा के चलते केंद्र व राज्य सरकारें पेट्रोलियम पदार्थो पर टैक्स कम नहीं कर रही हैं जिससे ग्राहकों की जेब कट रही है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 18 Sep 2017 10:21 AM (IST)Updated: Mon, 18 Sep 2017 10:40 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत कम, फिर भी भारत में इसकी मार से परेशान हैं ग्राहक
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत कम, फिर भी भारत में इसकी मार से परेशान हैं ग्राहक

डॉ. अश्विनी महाजन

loksabha election banner

हाल के कुछ दिनों में कीमतों में हुई खासी वृद्धि ने पेट्रोल, डीजल की कीमतों के निर्धारण की व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। जून 2010 से पहले पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस इत्यादि की कीमतों को सरकार निर्धारित करती थी। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में रोज-रोज बदलती कच्चे तेल की कीमतें इन ईंधनों की कीमतों को प्रभावित नहीं करती थी। गौरतलब है कि बड़ी मात्र में पेट्रोलियम पदार्थो का खनन, शोधन और वितरण आदि अब भी ओएनजीसी, इंडियन ऑयल व भारत पेट्रोलियम जैसी सरकारी कंपनियों के हाथ में है, हालांकि इस क्षेत्र में कुछ निजी कंपनियां जैसे रिलायंस आदि ने भी प्रवेश कर लिया है।

जून 2010 के बाद सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतों को बाजार पर छोड़ना तय कर दिया। इसके बाद पेट्रोल, डीजल इत्यादि की कीमतों में बदलाव एक आम बात हो गई, लेकिन 1 मई 2017 से पहले तो पांच शहरों में प्रयोग के नाते और बाद में पूरे देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में प्रतिदिन बदलाव को अनुमति दे दी गई और 15 वर्ष पुरानी उस व्यवस्था को तिलांजलि दे दी गई जिसमें हर महीने की 1 से 16 तारीख को पेट्रोल और डीजल की कीमतें बदली जाती थीं। 1व्यवस्था में इस बदलाव के बाद पहले महीने तो पेट्रोल, डीजल की कीमतें घटीं, लेकिन उसके बाद इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

कीमत निर्धारण की इस व्यवस्था पर इसलिए सवाल उठ रहा है कि मई 2014 में जब कच्चे तेल की कीमतें लगभग 107 डॉलर प्रति बैरल थी, तब दिल्ली में पेट्रोल और डीजल की कीमत क्रमश: 71.41 रुपये और 60 रुपये प्रति लीटर थी। अब कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में मात्र 54 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है तो भी 14 सितंबर 2017 तक पेट्रोल की कीमत मई 2014 की कीमत के आसपास 70.39 रुपये प्रति लीटर और उसी प्रकार डीजल की कीमत 58.74 रुपये प्रति लीटर हो चुकी है। लोगों की शिकायत है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत आधी से कम होने पर भी पहले से ज्यादा कीमत क्यों वसूली जा रही है। लोग रोज तेल की कीमतों में परिवर्तन की इस नई व्यवस्था को इसके लिए दोषी मान रहे हैं और कहा जा रहा है कि सरकार और कंपनियां मिलकर ग्राहकों का शोषण कर रही हैं।

भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान का मानना है कि पेट्रोल-डीजल कीमतों में वृद्धि के लिए नई व्यवस्था नहीं, बल्कि हाल-फिलहाल में हुई कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि है, जो हालांकि अल्पकालिक है। उन्होंने कीमतों में नियंत्रण की किसी भी संभावना से इन्कार किया। यह सही है कि पिछले कुछ दिनों में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 10 प्रतिशत उछाल आया है, इसलिए पेट्रोलियम कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि कर दी है। इसलिए यदि हाल-फिलहाल की बात सोचें तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी में कोई गलती नहीं लगती। मगर यदि वर्ष 2014 और 2017 के बीच तुलना की जाती है तो पेट्रोल-डीजल की वर्तमान कीमतें बिल्कुल भी औचित्यपूर्ण नहीं ठहराई जा सकती।

वास्तव में, जब कच्चे तेल की कीमतों में कमी आई तो देश को उसका खासा लाभ हुआ। ऐसे में सरकार ने इस स्थिति को अपने राजस्व बढ़ाने और पेट्रोलियम कंपनियों के लाभों को बढ़ाने के लिए उपयोग करने का फैसला लिया। मोटे तौर पर कच्चे तेल की कीमतों के लाभ को तीन भागों में बांट दिया गया। एक भाग केंद्रीय राजस्व में वृद्धि, दूसरा भाग पेट्रोलियम कंपनियों के लाभों में वृद्धि और तीसरे भाग के रूप में पेट्रोल-डीजल की उपभोक्ता कीमतों में कमी। इसका पता इन आंकड़ों से चलता है कि तीन सरकारी पेट्रोलियम कंपनियां भारत पेट्रोलियम, इंडियन ऑयल एवं हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के लाभ प्रतिशत, 2015-16 में 66 प्रतिशत और 2016-17 में 160 प्रतिशत बढ़े।

इस बीच केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोलियम क्षेत्र से प्राप्तियां, जो 2013-14 की तुलना में 2016-17 तक आते-आते तीन गुणा बढ़कर 5.24 लाख करोड़ रुपये हो गए। साथ ही पेट्रोल की कीमतें इन तीन सालों में 71.41 रुपये प्रति लीटर से घटकर मात्र 65 रुपये प्रति लीटर तक ही पहुंच पाई। एक अन्य अनुमान के हिसाब से मई 2014 में जहां पेट्रोल की कीमत में मात्र 33 प्रतिशत ही टैक्स और डीलर कमीशन में जाता था, वह अब बढ़कर 58 प्रतिशत पहुंच गया, जबकि डीजल की कीमत में जहां मई 2014 में टैक्स और डीलर कमीशन का हिस्सा 20 प्रतिशत होता है, वह बढ़कर 50 प्रतिशत हो चुका है।

कहा जा सकता है कि कच्चे तेल की कीमतों में कमी ने केंद्र और राज्य सरकारों को ही नहीं, बल्कि कंपनियों को भी खूब लाभ दिया है। ऐसे में यदि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में यदि कोई मामूली वृद्धि हुई भी हो तो भी क्या उसे उपभोक्ताओं पर लादना उचित है, यह एक बड़ा सवाल है। जाहिर है जब कच्चे तेल की घटती कीमतों का फायदा सरकार द्वारा उपभोक्ताओं को पूरी तरह से नहीं पहुंचाया, बल्कि उसका दो तिहाई हिस्सा सरकारी राजस्व और कंपनियों के लाभ को बढ़ाने के लिए हस्तगत कर लिया गया हो तो क्या यह सही नहीं होगा कि कीमतों को बढ़ने न दिया जाए और कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि को सरकारी राजस्व और पेट्रोलियम कंपनियों के लाभों में ही समायोजित किया जाए।

पेट्रोल डीजल की कीमतें जरिए सरकार काट रही ग्राहकों की जेब

लग रहा है कि पेट्रोलियम कंपनियां अपने फायदे को किसी भी हालत में कम करने के लिए तैयार नहीं हैं। तेल की कीमतों में हर दिन परिवर्तन की व्यवस्था ने उन्हें ग्राहकों के शोषण के लिए एक नया हथियार दे दिया है। वास्तव में पेट्रोल, डीजल की कीमतों में बदलाव की नई व्यवस्था ग्राहकों, उद्योग और कृषि के लिए सही नहीं है। यह आम जनता के लिए अस्थिरता का कारण बन रहा है, लेकिन यदि यह तर्क दिया जाता है कि चूंकि अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में रोज बदलाव होता है, इसलिए पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी रोज बदलनी चाहिए तो यह तर्क सही नहीं होगा, क्यांेकि बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा तेल के सौदे अग्रिम तौर पर ही कर लिए जाते हैं। इसलिए तेल की कीमतों में बदलाव उन्हें प्रभावित नहीं करता।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.