एक दशक में बढ़ी है ऑपरेशन से होने वाले बच्चों की तादाद
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक देश में ऑपरेशन यानी सीजेरियन से जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या 17.2 प्रतिशत है।
[चंदन कुमार चौधरी]। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएचएफएस) के मुताबिक देश में ऑपरेशन यानी सीजेरियन से जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या 17.2 प्रतिशत है। पिछली रिपोर्ट में यह आंकड़ा 8.5 प्रतिशत था। करीब एक दशक में ऑपरेशन से होने वाले बच्चों की संख्या में यह करीब दोगुनी से भी अधिक की बढ़ोतरी है। यह आंकड़े संगठित अस्पतालों के हैं जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र पर नजर रखने वालों का मानना है कि वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक है। अगर इन्हीं आंकड़ों पर बात की जाए तो यह तस्वीर डरावनी है। इस विषय को सिर्फ बच्चा पैदा होने के दौरान होने वाले खर्च से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता है बल्कि इसे जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के रूप में भी देखा जाना चाहिए। आवश्यक होने पर अगर ऑपरेशन किया जाता है तो यह समझा जा सकता है, लेकिन यदि पैसा बनाने की नीयत से यह किया जाता है तो इसे अपराध कहा जाएगा। इस पर कार्रवाई होनी चाहिए।
सुर्खियां बनती डॉक्टरों की मनमानी और लापरवाही
दरअसल जिस डॉक्टर को हम भगवान समझते हैं, आज की तारीख में माना जाने लगा है कि वहां बहुत सारी गड़बड़ी आ गई हैं। आए दिन डॉक्टरों की मनमानी और लापरवाही सुर्खियां बनती हैं। अस्पताल प्रसव के दौरान के डर और मजबूरी का बेजा फायदा उठा रहे हैं। असल में, जब लोगों के घरों में नया मेहमान आने वाला होता है, उस समय हम बहुत खुश होते हैं, साथ ही अंदर से थोड़े बहुत डरे सहमे भी होते हैं। अस्पताल और डॉक्टर हमारे इस थोड़े बहुत डर को भयावह बना देते हैं और डरा कर मरीजों का शोषण करते हैं और लोगों का जेब ढीला कराने के चक्कर में उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। जब हम गर्भवती महिला को लेकर अस्पताल जाते हैं तो सब कुछ सामान्य रहता है। इलाज के दौरान यह सामान्य लगने वाली प्रक्रिया धीरे-धीरे गंभीर होने लगती है। डॉक्टर पहले महीने में एक बार आने को कहता है, अल्ट्रासाउंड कराने के लिए कहता है। बाद में यह आंकड़ा पंद्रह दिन पर और फिर यह आंकड़ा हर सप्ताह पर आकर टिक जाता है। कई अस्पतालों में डिलिवरी के लिए पहले से ही रजिस्ट्रेशन कराने का प्रावधान है।
डर पैदा करते डॉक्टर
हम सोचते हैं कि रात वगैरह में अगर अचानक प्रसव पीड़ा शुरू होगी तो क्या करेंगे अभी रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं। यहीं से डॉक्टर भयादोहन करना शुरू करते हैं। फिर मरीजों को बताया जाता है कि बच्चा उल्टा है, उसे सीधा करना पड़ेगा और अगर ऐसा नहीं होगा तो ऑपरेशन करना पड़ेगा। बच्चा का वजन कम है और आपके पेट में पानी कम है (एक तरल पदार्थ जिससे शिशुओं को पोषण मिलता है) आपको अस्पताल में भर्ती करा कर पानी चढ़ाना पड़ेगा। यह पाउडर है, इसे दूध में घोल कर लेना है। यह दवा आपको उसी अस्पताल के दवाखाना में मिलेगा और वह भी महंगे दर पर। मजबूर लोग डर कर यह दवा खरीदते हैं। जब हम प्रसव के लिए अस्पताल पहुंचते हैं तो हमें बताया जाता है कि देखिए आपका समय पूरा हो गया है और पेट में पानी बहुत कम रह गया है।
डॉक्टर एवं अस्पतालों की बल्ले-बल्ले
ऐसे में हम जोखिम मोल नहीं ले सकते, हमें ऑपरेशन करना ही पड़ेगा या बच्चा उल्टा है और मां की बेहद कमजोर है ऐसे में अगर हम देर करेंगे तो जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा हो सकता है। ऐसे में मरीज और उसके तीमारदार तुरंत डर कर ऑपरेशन की अनुमति दे देते हैं और डॉक्टर एवं अस्पतालों की बल्ले-बल्ले हो जाती है। ऐसे न जाने और कितने बातों का डर दिखा कर डॉक्टर और अस्पताल मरीजों का भयादोहन करते हैं। डॉक्टरी का पेशा सेवा का पेशा है और हम यहां लूट-खसोट करने नहीं आए हैं बल्कि सेवा करने आए हैं। यकीन मानिए सेवा एक धर्म है और यह धर्म बहुत ही कठोर है। वास्तव में सरकार को निश्चित रूप से चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधा से अपनी नजर नहीं चुराना चाहिए और हालात सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।