1999 से काफी बदल चुकी है भाजपा, अब दिखाई दे रही है पार्टी की 'पावर पॉलिटिक्स'
भाजपा आज जिस मुकाम पर पहुंची है उससे पहले उसने काफी मशक्कत भी की है। 1999 में महज एक वोट से भाजपा सरकार के गिरने के बाद उसकी रणनीति और नेताओं दोनों में ही आज बदलाव हाे चुका है।

नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। तीन और तेरह के फेर में फंसी भाजपा को 1999 में महज एक वोट की बदौलत केंद्र से हटना पड़ा था। उस वक्त लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि जो लोग आज उनके कम नंबरों पर हंस रहे हैं, उन्हें आने वाले समय में अपनी हंसी पर अफसोस होगा। उन्होंने तब सदन में खड़े होकर कड़े स्वरों में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने की भविष्यवाणी कर दी थी। वह दौर गुजर गया, लेकिन तीन वर्ष पहले भाजपा ने जिस विजय रथ को पूदे देश में दौड़ाना शुरू किया वह आज तक जारी है। आज भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है और उसके पास 11 करोड़ से अधिक सदस्य हैं।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की भविष्यवाणी को अनदेखा करना आज नामुमकिन है। हालांकि अटल से लेकर मोदी तक के सफर में भाजपा ने काफी उतार-चढ़ाव देखे। कई बार अपनी रणनीति में बदलाव किया तो शीर्ष नेतृत्व में भी कई बदलाव हुए़। लेकिन आज भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में जिन दो चेहरों ने भाजपा को इतना आगे तक पहुंचाने का काम किया है उसमें नरेंद्र मोदी और अमित शाह का कुशल नेतृतव और उनकी रणनीति ही शामिल है।
शाह-मोदी की इस जोड़ी ने उन जगहों पर भाजपा की सरकार बनवाई जहां पर वह नंबर दो की भूमिका में आई थी। इसमें गोवा और मणिपुर भी शामिल है, जहां इसी वर्ष चुनाव हुए थे। उत्तराखंड और असम से भी विपक्षी नेताओं ने भाजपा की कश्ती को आगे बढ़ाने में मदद की। जनवरी में भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में तब सरकार बनाई जब पीपल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल के 43 में से 33 विधायकों ने पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया। इनमें सीएम पेमा खांडू भी शामिल थे।
पिछले 13 सालों में यह दूसरा मौका है जब भाजपा चीन की सीमा से लगे इस संवेदनशील राज्य में सत्ता में है। यूपी में भी दलबदलू नेताओं ने भाजपा की काफी मदद की। यह सब पार्टी की बदली रणनीति का ही नतीजा थी। बिहार में दो साल बाद ही सही भाजपा ने फिर सरकार बनाने में सफलता पा ही ली। बदली रणनीति के तहत अब भाजपा की निगाह पश्चिम बंगाल समेत दक्षिण में अपने पैर पसारने पर लगी है। इसके लिए भाजपा कोशिश भी पूरी कर रही है।
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भाजपा की बदली रणनीति की वहज से ही कि उसने कांग्रेस को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के बड़े नेता अहमद पटेल को हराने के लिए राजनीतिक चौसर बिछाई थी। हालांकि इसमें वह कामयाब नहीं रही और चुनाव आयोग से पटेल को विजयी उम्मीदवार घोषित कर दिया गया, लेकिन यहां भी कोशिश पूरी की गई थी। गुजरात की बात करें तो यहां पर पार्टी को धोखा देने का इतिहास नया नई है। अहमद पटेल को जिताने के लिए कांग्रेस ने अपने सभी विधायकों को ऐसे समय में राज्य से बाहर बेंगलुरू भेज दिया था जब राज्य के कई जिलों में बाढ़ आई हुई थी। लेकिन 2014 के आम चुनाव में महज 44 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस के सदस्य अहमद पटेल जब गुजरात से राज्य सभा का चुनाव जीते तो उनके वोटों की संख्या भी 44 ही थी।
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गुजरात हो या कोई और राज्य या फिर देश में होने वाला कोई भी चुनाव, भाजपा की रणनीति बनाने वाले शीर्ष नेतृत्व के आगे दूसरी पार्टियां काफी हद तक विफल साबित हुईं। अब जबकि भाजपा के राज्य सभा में भी सबसे अधिक सांसद हैं और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अपनी राजनीति की एक नई पारी राज्यसभा से ही शुरु करने वाले हैं तो आने वाले दिनों में इसकी धार और तेज होने के पूरे आसार हैं। लेकिन यहां पर यह नहीं भूलना चाहिए कि 1996 में भाजपा को भी कुछ ऐसा ही करना पड़ा था जब वाघेला ने भाजपा सरकार के खिलाफ भी बगावत की थी और भाजपा की सुरेश मेहता सरकार को गिराकर कांग्रेस के समर्थन से खुद मुख्यमंत्री बने थे। उस समय भाजपा ने अपने विधायकों को टूट के डर से रिजॉर्ट में ठहरा दिया था।

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