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अब डेंगू नहीं बनेगा महामारी, इस छोटे से टेस्ट से घर में ही चलेगा बीमारी का पता

बारिश के मौसम में सेहत के सबसे बड़े दुश्मनों में शामिल मच्छर आतंक फैलाना शुरू कर देते हैं। लेकिन बायोसेंसर के जरिए डेंगू से लड़ने का रास्ता नजर आ रहा है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Fri, 14 Jul 2017 02:50 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jul 2017 06:37 PM (IST)
अब डेंगू नहीं बनेगा महामारी, इस छोटे से टेस्ट से घर में ही चलेगा बीमारी का पता
अब डेंगू नहीं बनेगा महामारी, इस छोटे से टेस्ट से घर में ही चलेगा बीमारी का पता

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । मानसून के दस्तक देने के साथ ही मच्छरों की तादाद में इजाफा होना शुरू हो जाता है। हर शख्स खौफ के साथ जी रहा होता है कि न जाने कब और कहां वो मच्छरों का शिकार बन जाएगा। आमतौर पर डेंगू और चिकनगुनिया पहले किसी खास इलाके तक सीमित रहता था। लेकिन अब इनका फैलाव देश के अलग-अलग हिस्सों में भी हो रहा है। मच्छरों से लड़ने के लिए दवा के छिड़काव जैसे पारंपरिक तरीके नाकाफी साबित हो रहे हैं। अब डेंगू, जीका और मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के खात्मे के लिए रोबोटिक्स और क्लाउड कंप्यूटिंग का सहारा लिया जा रहा है। इस क्रम में दिग्गज आइटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने गूगल की डिजीज टेक्नॉलजी कंपनी वेरिली लाइफ साइंसेज से साझेदारी की है।

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मच्छरों की मार

17 फीसद संक्रामक बीमारियों में मच्छरजनित रोगों की हिस्सेदारी। 

मच्छरजनित बीमारियों से सालाना 10 लाख मौत ।

100 देशों में डेंगू के साये में 2.5 अरब आबादी रहती है।

मलेरिया से 4 लाख लोगों की सालाना मौत ।

बायोसेंसर  से डेंगू पर लगाम

डेंगू से होने वाली ज्यादातर मौतों के पीछे सबसे बड़ी वजह यह होती है कि इस बीमारी का समय पर पता नहीं लग पाता, लेकिन अब सिर्फ 20 मिनट में डेंगू का पता लगाया जा सकेगा। इसके लिए एमिटी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. जागृति नारंग ने बायोसेंसर नाम की विशेष मेडिकल डिवाइस तैयार की है।

बायोसेंसर की खासियत यह है कि यह सभी प्रकार के डेंगू का पता लगा लेगा। अभी तक डॉक्टर डेंगू का पता लगाने के लिए या तो मरीज की एंटी बॉडीज जांच करते हैं या फिर डेंगू का प्रकार (स्ट्रेन टेस्ट) पता लगाने के लिए अलग-अलग जांच की जाती है। स्ट्रेन टेस्ट में सबसे बड़ा खतरा यह है कि अगर किसी व्यक्ति को टाइप वन का डेंगू है और उसकी टाइप टू की जांच करा ली गई तो रिपोर्ट निगेटिव (फाल्स) आएगी। ऐसे में मरीज की जान को खतरा भी हो सकता है।

ऐसे आया आइडिया

एमिटी में नैनो टेक्नोलॉजी विभाग की प्रोफेसर डॉ. जागृति नारंग बताती हैं कि करीब दो साल पहले वह अपने बच्चे को लेकर हॉस्पिटल गई थीं। वहां सैकड़ों डेंगू के मरीज थे और जांच के लिए लाइन लगी थी। उसके बाद उनके दिमाग में डेंगू की जांच के लिए आसान और सस्ती डिवाइस तैयार करने का आइडिया आया। फिर महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के डॉ. सीएस पुंडीर और विवि की छात्र चेताली सिंघल के साथ इस पर काम शुरू किया। नारंग कहती हैं कि दो साल के शोध और करीब चार लाख रुपये खर्च करने के बाद हम बायोसेंसर तैयार कर पाए। अब इसे पेटेंट के लिए भेजा गया है। शोध पत्र में भी यह प्रकाशित हो चुका है।

बायोसेंसर ऐसे काम करेगा

बायोसेंसर में एक इलेक्ट्रोड पर डेंगू का कॉमन डीएनए लगा है। अभी किसी व्यक्ति के डीएनए को इस इलेक्ट्रोड पर रखेंगे तो वह बता देगा कि व्यक्ति को डेंगू है या नहीं। डॉ. जागृति नारंग कहती हैं कि अभी हम बायोसेंसर को और विकसित कर रहे हैं, ताकि डीएनए की जगह इसमें सिर्फ रक्त रखकर डेंगू का पता लगाया जा सके। इसमें करीब एक साल और लगेगा। वह कहती हैं कि प्रोटोटाइप में ज्यादा पैसा खर्च हुआ, लेकिन बड़ी संख्या में उत्पादन में एक बायोसेंसर करीब सौ रुपये का पड़ेगा और एक डिवाइस से 10 से ज्यादा मरीजों की जांच की जा सकेगी।

डेंगू-चिकनगनिया के लक्षण

बुखार - तेज बुखार होना, डेंगू- चिकनगुनिया के प्रमुख और शुरुआती लक्षणों में शामिल है। अगर आपको सप्ताह भर से भी अधिक समय तक बुखार बना हुआ है और कम नहीं हो रहा, तो डॉक्टर के पास जाकर जांच अवश्य कराएं।

सिरदर्द - तेज बुखार के साथ सिर भारी होना और सिर में दर्द बना रहना भी डेंगू- चिकनगुनिया के लक्षणों में शामिल हैं। ऐसा होने पर लापरवाही बिल्कुल न बरतें और इलाज कराएं।

जोड़ों में दर्द - चिकनगुनिया होने पर शरीर के समस्त जोड़ों में तेज दर्द होता है और उनकी कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है। इस तरह का तेज दर्द जोड़ों में लंबे समय तक बना रहता है।

चकत्ते पड़ना - शरीर पर चकत्ते पड़ना या लाल निशान पड़ना डेंगू- चिकनगुनिया में आम है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर किसी को इस तरह की त्वचा समस्या हो, कभी-कभी ये काफी कम मात्रा में भी होते हैं।

मॉस्कीटो ट्रैप का परीक्षण

माइक्रोसॉफ्ट एक स्मार्ट मॉस्कीटो ट्रैप का परीक्षण कर रही है। यह ट्रैप डेंगू के एजेप्टाई मच्छर को पहचान कर पकड़ता है। इसी के जरिये कीट वैज्ञानिक पता लगाते हैं कि ये मच्छर बीमारी को महामारी में कैसे बदल देते हैं। अब तक जो ट्रैप मौजूद हैं वे मच्छरों, कीट-पतंगों में फर्क नहीं पहचान पाते हैं। लिहाजा मक्खी-मच्छर सभी उसमें फंस जाते हैं। ऐसे में कीट वैज्ञानिकों को उनमें बीमारी वाले मच्छर छांटने पड़ते हैं।

ऐसे करता है मदद

मच्छर ट्रैप के अंदर आता है, इसके दरवाजे खुद बंद हो जाते हैं। बीमारी फैलाने वाले मच्छरों को ट्रैप 85 फीसद सटीकता से पकड़ते हैं। बर्ड हाउस के बराबर का यह ट्रैप रोबोटिक्स, इंफ्रा रेड सेंसर, मशीन लर्निंग और क्लाउड कंप्यूटिंग से लैस है। माइक्रोसॉफ्ट प्रीमोनीशन प्रोग्राम के तहत ड्रोन जैसी उच्च तकनीक की मदद से मच्छरों पर काबू पर जोर दे रही है।

नियंत्रण पाने में करेगा मदद

ट्रैप के जरिए कीट विज्ञानी नमी, गर्मी और अन्य पर्यावरणीय दशाओं में मच्छरों के विकास पर नजर रखेंगे। यह पता लगाया जा सकेगा कि आखिर बीमारी वाले मच्छर सक्रिय कब होते हैं। इससे इनपर काबू पाने में मदद मिलेगी। 

साथ में प्रभात उपाध्याय

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