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मोदी सरकार के तीन साल का ब्यौरा देते हुए डरा गए अरुण जेटली

जनवरी-मार्च तिमाही में जीडीपी ग्रोथ के महज 6.1 फीसद पर सिमटने के बाद अब भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था भी नहीं रह गया।

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 01 Jun 2017 05:39 PM (IST)Updated: Thu, 01 Jun 2017 05:45 PM (IST)
मोदी सरकार के तीन साल का ब्यौरा देते हुए डरा गए अरुण जेटली
मोदी सरकार के तीन साल का ब्यौरा देते हुए डरा गए अरुण जेटली

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। मोदी सरकार के तीन साल का कार्यकाल पूरा होने के मौके पर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान उन्होंने अपने मंत्रालय के कामकाज का ब्यौरा जनता के सामने रखा। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने डराने वाले कुछ शब्द भी कहे। वित्त मंत्री ने माना कि दुनियाभर में मंदी है और उसका असर भारत पर भी पड़ा है। बता दें कि 2016-17 में देश की विकास दर 7.1 फीसद रही। सात से ज्यादा की विकास दर को अच्छा माना जा सकता है, लेकिन 2015-16 की तुलना में यह 0.8 फीसद कम है। पिछले साल विकास दर का आंकड़ा 7.9 फीसद था।

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इतना ही नहीं 2016-17 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) के दौरान विकास दर सिर्फ 6.1 फीसद रही। जबकि पिछले साल इस दौरान जीडीपी विकास दर 7.1 फीसद थी। जनवरी-मार्च तिमाही में जीडीपी ग्रोथ के महज 6.1 फीसद पर सिमटने के बाद अब भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था भी नहीं रह गया। इस मामले में भारत को उसके पड़ोसी चीन ने पटखनी दी और इस दौरान चीन की जीडीपी विकास दर 6.9 फीसद रही। और भी चिंताजनक बात यह है कि 8 कोर सेक्टर्स की विकास दर भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। अप्रैल महीने में बीते साल की 8.7 फीसद के मुकाबले इस साल यह 2.5 फीसदी पर आकर थम गई।

विकास में अग्रणी रहने वाले सेक्टर पिछड़े

पिछले साल अप्रैल में 8 इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टरों- स्टील, सीमेंट, बिजली, कोयला, नैचुरल गैस, क्रूड ऑइल, रिफाइनरी प्रॉडक्ट्स और फर्टिलाइजर की विकास दर 8.7 फीसदी थी। लेकिन इस साल इन सेक्टरों की विकास दर पर ब्रेक लग गया और विकास दर 2.5 फीसदी तक आकर सिमट गई। विकास के मामले में अग्रणी रहने वाले विनिर्माण सेक्टर में सबसे तेज गिरावट दर्ज की गई। पिछले साल इस सेक्टर के विकास का आंकड़ा 6 फीसद था, जबकि इस साल यह शून्य से भी नीचे चली गई और -3.7 फीसद पर पहुंच गई।

मोदी सरकार के चुनौतीपूर्ण तीन साल

अरुण जेटली ने बताया कि बीते तीन साल अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी चुनौतीपूर्ण रहे हैं। उन्होंने कहा, एक ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षणवादी नीतियों को बढ़ावा मिल रहा है, दूसरी ओर घरेलू मोर्चे पर भी मानसून बीते साल बेहतर नहीं रहा। इन चुनौतियां के बाद भी पारदर्शिता बढ़ने से अर्थव्यवस्था में भरोसा लौटा है। वित्त मंत्री ने नोटबंदी का जिक्र करते हुए कहा कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। जेटली को जीएसटी से काफी उम्मीदें हैं और उनका कहना है कि GST लागू होने के बाद अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव आएगा।

संरक्षणवाद के साए में दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं

दुनियाभर की अर्थव्यस्थाएं संरक्षणवाद के साए में हैं। जबकि दुनियाभर के देश इस बात पर सालों पहले राजी हो चुके हैं कि उनके देश में किसी भी तरह के संरक्षणवाद को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा। लेकिन ऐसी घटनाएं भारत जैसे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। खासकर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद जिस तरह से स्थानीय निवासियों को रोजगार में तरजीह देने और वीजा नियम कठोर करने से भी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ रहा है।

ब्रेग्जिट से यूरोप ही नहीं दुनिया हिली

ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से अलग होने को ब्रेग्जिट कहा जाता है। इस पर हुए जनमत संग्रह में जनता ने ब्रेग्जिट के लिए मतदान किया और अब इस साल 8 जून को आम चुनाव के ब्रिटेन बाद विधिवत रूप से यूरोपीय यूनियन से अलग हो जाएगा। इससे यूरोपीय देशों के साथ ब्रिटेन के संबंध पहले जैसे नहीं रह जाएंगे और यूरो क्षेत्र से एक बड़ा देश बाहर होने का असर भी दुनिया पर पड़ना लाजमी है।

चीन की विकास की रफ्तार थमी तो दुनिया ठिठक गई

चीन पिछले कई सालों से तेजी आर्थिक विकास की गाड़ी पर सवार था। लेकिन पिछले 2-3 साल से चीन की रफ्तार पर ब्रेक लगा है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति माने जाने वाले चीन के विकास का पहिया थमने का असर भी दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ता है। हालांकि चीन अब भी तेज गति से विकास कर रहा है, गति पिछले करीब 1 दशक की निचले स्तर तक पहुंच चुकी है।

बिन मानसून सब सूना...

भारत की खेती और अर्थव्यवस्था पूरी तरह से मानसून पर निर्भर है। जब-जब मानसून अच्छा होता है, भारत तेज गति से विकास करता है। मानसून का आगे-पीछे होना या कम-ज्यादा होने से विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है। पिछले साल मानसून अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा और उसका असर विकास दर पर साफ दिख रहा है। हालांकि अच्छी बात यह है कि इस साल मानसून अच्छा रहने की उम्मीद है और उम्मीद की जा सकती है कि भारत के विकास का पहिया भी तेज रफ्तार से आगे बढ़ेगा।


अर्थव्यवस्था में निवेश घटने से भी बढ़ी चिंता

भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश आम तौर पर 30-31 फीसद रहता है। लेकिन पिछले साल यह घटकर 28 फीसद तक आ गया है। इसकी वजह से भी भारत की आर्थिक रफ्तार पर कुछ हद तक ब्रेक लगा है। इसके अलावा प्राइवेट सेक्टर में भी इंवेस्टमेंट में कमी आयी है।

नई नौकरियां पैदा नहीं हो रहीं

भारत में नई नौकरियां कम पैदा हो रही हैं। पीएम मोदी की 'मेक इन इंडिया' जैसी महत्वकांक्षी योजना के बावजूद देश में बड़ी कंपनियां विनिर्माण के क्षेत्र में नहीं आ रही हैं। ज्यादातर टेक्नोलॉजी कंपनियां यहां आ रही हैं और वह भी निर्माण करने की बजाय, असेंबलिंग का काम ज्यादा कर रही हैं। असेंबलिंग में उतने रोजगार पैदा नहीं होते, जितने निर्माण के क्षेत्र में होते हैं।

नोटबंदी का असर...

नोटबंदी के कारण लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा था। हालांकि सरकार ने तुरंत ऐसी व्यवस्था की, जिससे लोगों की परेशानियां जल्द ही कम होने लगीं। लेकिन कैश में लेन-देन की अपनी पुरानी आदतों की वजह से लोगों को ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा। वित्तमंत्री अरुण जेटली का कहना है कि नोटबंदी के फैसले से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है। नोटबंदी के बाद टैक्स से होने वाली आय में 18 फीसद का इजाफा हुआ है। वित्त मंत्री ने बताया कि नोटबंदी से तीन बड़े फायदे हुए। पहला, डिजिटाइजेशन को बढ़ावा मिला। दूसरा, टैक्स देने वालों की संख्या में इजाफा हुआ और तीसरा अर्थव्यवस्था में नकदी का इस्तेमाल कम हुआ है। बता दें कि सरकार न 8 नबंवर को नोटबंदी का फैसला लिया था, जिसके बाद 1000 और 500 रुपये के नोट चलन से बाहर कर दिए गए थे।

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