यहां मौत के बाद बदल जाता है मृत देह का पता, अस्पताल-NGO आमने-सामने
मेडिकल कॉलेजों में मृत देह की जरूरत होती है, ताकि भविष्य के डॉक्टरों को प्रैक्टिकल जानकारी दी जा सके। लेकिन छत्तीसगढ़ में इसको लेकर एक अजीब मामला सामने आया है।
रायपुर, [सतीश पाण्डेय/ प्रशांत गुप्ता]। जिंदा रहते 'महेश' ने देहदान का संकल्प लिया। घोषणापत्र लिया और उस पर हस्ताक्षर कर दिए, देहदान के लिए पता लिखा- पंडित जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर, छत्तीसगढ़। 'महेश' की मौत हो गई, उसकी देहदान की ख्वाहिश का सम्मान हुआ। देहदान भी हो गया, मगर ये क्या, पता तो बदल गया!
मृत देह पंडित जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की जगह पहुंच गई ओडिशा। रायपुर का निवासी, रायपुर में ही मेडिकल कॉलेज...फिर ये क्या हुआ? दरअसल, रायपुर में देहदान के पीछे बड़ा खेल शुरू हो गया है। जिस मेडिकल कॉलेज का घोषणापत्र जिंदा रहते भरवाया जाता है, देह वहां न भेजकर एक सामाजिक संस्था के जरिए परिजन दूसरे मेडिकल कॉलेज को भेज रहे हैं। रायपुर की 'बढ़ते कदम' नाम की इस संस्था ने दस साल से देहदान का बीड़ा उठाया हुआ है, उद्देश्य तो बिल्कुल सेवाभाव का है फिर भी देहदान के मामले में सवालों के घेरे में आ गई है।
संस्था का तर्क है कि मेडिकल कॉलेज देह के लिए संपर्क नहीं करता, उधर मेडिकल कॉलेज इस गड़बड़ी पर गुस्से में है और वैधानिक कार्रवाई करने जा रहा है। रायपुर के पं.जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज और 'बढ़ते कदम' सामाजिक संस्था के बीच देहदान को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया है। कॉलेज का आरोप है कि उसके घोषणा पत्र के आधार पर कॉलेज को देहदान न करवाकर दूसरे कॉलेज को करा दिया गया, जिनमें ओडिशा, भोपाल और दुर्ग के निजी कॉलेज शामिल हैं, तो वहीं 'बढ़ते कदम' की तरफ से कहा गया है कि जिन कॉलेज को जरूरत थी, उन्हें मृतक परिवार की सहमति से देहदान करा दिया गया।
हालांकि इसमें सबसे गंभीर बात यह है कि दूसरे कॉलेज, संस्था को देहदान देने से पहले न तो मेडिकल कॉलेज रायपुर की अनुमति ली गई और न उन्हें सूचना दी गई। कॉलेज इसलिए भी परेशान है कि भविष्य में कोई आपत्ति आती है तो जवाब उसे देना होगा, क्योंकि घोषणा पत्र में पं.जेएनएम मेडिकल कॉलेज रायपुर लिखा है। बताना जरूरी है कि देहदान को लेकर कई राज्यों में बडे-बड़े फर्जीवाड़े, लेन-देन सामने आ चुके हैं।
जानकारी के मुताबिक यह पूरा मामला पिछले 8 महीने के भीतर का है और चार देह को दूसरे कॉलेज को देने का खुलासा अब जाकर हुआ है। मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने इसकी शिकायत पुलिस में करने की भी तैयारी की है।
प्रदेश में ये हैं जरूरतमंद कॉलेज
- पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर - 150 एमबीबीएस सीट, सालाना - 10 देह की जरूरत।
- रिम्स रायपुर - 150 सीट (निजी कॉलेज है जिसे पिछले साल नहीं मिली मान्यता), सालाना 5 देह चाहिए।
- सिम्स बिलासपुर - 150 सीट, सालाना 10 देह चाहिए।
- स्व. बली राम कश्यप मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, जगदलपुर - 100 सीट, 5 देह चाहिए।
- स्व.लखीराम कश्यप मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, रायगढ़ - 50 सीट, कम से कम 3 देह चाहिए।
- राजनांदगांव शासकीय मेडिकल कॉलेज, राजनांदगांव - 100 सीट, 10 देह चाहिए।
- चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज, दुर्ग - 150 सीट, 10 से अधिक देह चाहिए।
- शंकराचार्य मेडिकल कॉलेज, भिलाई - 150 सीट, 10 देह चाहिए।
(नोट- हालांकि इतनी देह नहीं मिलती, कम में ही कई बैच को प्रैक्टिकल कराया जाता है। इनके अलावा चैसज रायपुर, आयुर्वेद कॉलेज को भी देह चाहिए होती है)
तीन बड़े सवाल
1- आखिर क्यों नहीं ली कॉलेज की अनुमति- जब घोषणा पत्र मेडिकल कॉलेज रायपुर के नाम से भरवाए गए तो देहदान पर पहला अधिकार कॉलेज का है, अगर कॉलेज कहे कि उन्हें अभी जरूरत नहीं है और संस्था किसी अन्य जरूरतमंद कॉलेज को देह दान दे सकती है, ये अनुमति क्यों नहीं ली जा रही?
2- यह मान भी लिया जाए कि जिस समय 'बढ़ते कदम' ने देहदान करवाने की शुरुआत की उस समय शहर में सिर्फ रायपुर मेडिकल कॉलेज था, इसलिए घोषणा पत्र में मेडिकल कॉलेज रायपुर का नाम प्रिंट करवाया गया, लेकिन नए कॉलेज खुले तो सबके अलग-अलग घोषणा पत्र क्यों नहीं बनवाए गए।
3- मृतक के परिजनों को नहीं पता होता कि किस कॉलेज को देहदान की जरूरत है, ये संस्था वाले बताते हैं। ऐसे में इसके क्या मायने होंगे... ये शक पैदा करने वाली स्थिति है।
क्यों जरूरी है मृत शरीर
मेडिकल, आयुर्वेद कॉलेज में प्रथम वर्ष की पढ़ाई के साथ ही शव विक्छेदन शुरू हो जाता है, जो एनाटोमी विभाग के अंतर्गत होता है और सबसे महत्वपूर्ण विषय है। छात्रों की एक-एक अंग की जानकारी दी जाती है, इसलिए कॉलेज को डेथ बॉडी की जरूरत होती है। देहदान न मिलने की स्थिति में कई कॉलेज की मान्यता मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) भी छीन चुकी है।
'बढ़ते कदम' से नहीं मिला देहदान तो मेडिकल कॉलेज पहुंचने लगा मृतक के घर
पं. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल और 'बढ़ते कदम' संस्था के बीच देहदान को लेकर विवाद गहरा गया है। इसकी शुरुआत सालभर पहले हुई, कॉलेज प्रबंधन को पता चला कि उनके घोषणा-पत्र पर देहदान कॉलेज में न करवाकर दूसरे राज्य में करवा दिया गया। जब ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति शुरू हो गई तो कॉलेज को खटका कि गलत हो रहा है। किसी भी स्तर पर गड़बड़ी होने पर कॉलेज ही दोषी होगा, इसलिए कॉलेज प्रबंधन ने अपना सिस्टम विकसित कर लिया। 'बढ़ते कदम' की राह देखने के बजाय अपना संपर्क नंबर जारी किया, ताकि लोग देहदान के लिए संपर्क कर सकें। एंबुलेंस में मृतक के घर पहुंचने से लेकर देहदान की पूरी प्रक्रिया शुरू कर दी गई। डेढ़ साल में 10 देह इसी सिस्टम के जरिए मिलीं।
एनाटॉमी विभागाध्यक्ष डॉ. मानिक चटर्जी ने कहा कि संस्था ने नियमों का उल्लंघन किया है, मैं एमसीआई निरीक्षण में राज्य से बाहर हूं। लौटकर जिला प्रशासन से इसकी शिकायत करेंगे।
मृत्यु होने के बाद देहदान के लिए पं. जेएनएम मेडिकल कॉलेज के इन नंबरों पर करें संपर्क- 0771 2890001, 2890005, 2890006 मोबाइल नं- 9425214257।
देहदान के लिए 3 प्रमाण पत्र अनिवार्य
1- मृत्यु प्रमाण पत्र
2- परिवार का घोषणा पत्र/सहमति पत्र
3- देहदान से पहले पुलिस का अनापत्ति प्रमाण पत्र, बाद में स्थानीय पुलिस थाने को सूचना।
डॉ. चटर्जी कहते हैं, मरीजों ने अपनी वसीयत में मेडिकल कॉलेज रायपुर को देहदान का जिक्र किया है, ऐसे में कॉलेज की बिना सहमति के किसी अन्य संस्था को कैसे बॉडी दी जा सकती है। ये गलत है, हम इस पर प्रशासन को जानकारी देने जा रहे हैं।
कॉलेज संपर्क ही नहीं कर रहा है
'बढ़ते कदम' संस्था के प्रभारी प्रेम छाबड़ा कहते हैं, मेडिकल कॉलेज रायपुर में पर्याप्त डेथ बॉडी हैं, जिन कॉलेज में नहीं हैं मृतक के परिजन की सहमति से उन कॉलेज को दी जा रही है। अगर नहीं देंगे तो वहां के छात्र कैसे प्रैक्टिकल करेंगे। इसी उदे्श्य से निर्णय लिया गया है, और हमारे पास हर बॉडी का रिकॉर्ड है। वैसे भी मेडिकल कॉलेज रायपुर ने हमसे सम्पर्क ही नहीं किया है, आप बताएं कि जरूरत उन्हें है या हमें।
पुलिस की बात
रायपुर के एसपी डॉ. संजीव शुक्ला कहते हैं, देहदान संबंधी किसी तरह की शिकायत की जानकारी नहीं है। अगर शिकायत मिलेगी।
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