आजादी के 70 वर्ष: जब चर्च बना था मिशन सेंटर और टॉयलेट बना डाटा सेंटर
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत केरल की एक छोटी सी जगह थुंबा से हुई थी। आज हम इस क्षेत्र में दुनिया को पछाड़कर काफी आगे निकल चुके हैं।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। आजादी के 70 वर्षों का जिक्र जहन में आते ही भारत की जिस कामयाबी का जिक्र सबसे पहले किया जाना चाहिए उसमें भारत के अंतरिक्ष में बढ़ते कदम हैं। इसका जिक्र इसलिए भी पहले किया जाना जरूरी है क्योंकि भारत ने अपना अंतरिक्ष का सफर जिस वक्त शुरू किया था उस वक्त अमेरिका और रूस इस क्षेत्र में अपने झंडे गाड़ चुके थे। लेकिन अब तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। आज भारत ने न सिर्फ इस क्षेत्र में अपनी काबलियत को साबित कर दिया है बल्कि आज इसरो के सामने रूस और अमेरिका दोनों ही नतमस्तक हैं। इसकी वजह एक यह भी है कि जिस मार्स मिशन पर अमेरिका ने अरबों डॉलर खर्च किए थे उसी मार्स मिशन को भारत ने इसकी आधी कीमत में ही पूरा कर दिखाया।
अंतरिक्ष में भारत का वर्ल्ड रिकॉर्ड
भारत के मार्स मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये (करीब 6 करोड़ 90 लाख डॉलर) है। यह नासा के पहले मंगल मिशन का दसवां और चीन-जापान के नाकाम मंगल अभियानों का एक चौथाई भर है। अमेरिका जिस खोज का जिक्र आज करता है उसे भारत पहले ही बता चुका है। अंतरिक्ष यात्रा के इस सफर में भारत ने एक मिशन में सबसे अधिक सैटेलाइट भेजकर वर्ल्ड रिकार्ड भी बनाया तो वहीं खुद का क्रायोजनिक इंजन बनाकर अमेरिका की चुनौती का सफल जवाब भी दिया। आज भारत इस सफर में सभी को पछाड़ चुका है।
थुंबा से हुई थी भारत के अंतरिक्ष मिशन की शुरुआत
भारत की अंतरिक्ष यात्रा को 54 वर्ष हो चुके हैं। लेकिन इसकी शुरुआत 21 नवंबर 1963 को हुई थी जब भारत ने केरल में मछली पकड़ने वाले क्षेत्र थुंबा से अमेरिकी निर्मित दो-चरण वाला साउंडिंग रॉकेट ‘नाइक-अपाचे’ का प्रक्षेपण किया था। यह अंतरिक्ष की ओर भारत का पहला कदम था। उस वक्त भारत के पास न तो इस प्रक्षेपण के लिए जरूरी सुविधाएं थीं और न ही मूलभूत ढांचा उपलब्ध था। चूंकि थुंबा रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन पर कोई इमारत नहीं थी इसलिए वहां के स्थानीय बिशप के घर को निदेशक का ऑफिस बनाया गया। प्राचीन सेंट मैरी मेगडलीन चर्च की इमारत कंट्रोल रूम बनी और नंगी आंखों से धुआं देखा गया। यहां तक की रॉकेट के कलपुर्जों और अंतरिक्ष उपकरणों को प्रक्षेपण स्थल पर बैलगाड़ी और साइकिल से ले जाया गया था।
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विक्रम साराभाई ने चुना था थुंबा
विक्रम साराभाई ने जब थुंबा को भारत के पहले राकेट प्रक्षेपण के लिए चुना तो इस चर्च के बिशप ने वहां के ईसाई मछुआरों को साराभाई की मदद के लिए तैयार किया। यही नहीं इस चर्च में राकेट प्रक्षेपण के शुरूआती काम हुए। वहां बैठकें हुआ करती थीं। आज इस चर्च को स्पेस म्यूजियक में बदल दिया गया है। शायद दुनिया का यह अकेला चर्च है जो इस तरह के शैक्षणिक कार्य के लिए समर्पित हो गया है। जब थुम्बा में पहला राकेट लांच किया गया तब उस समय केरल विधानसभा का सत्र चल रहा था। थोड़ी देर के लिए सत्र रोक दिया गया और सबकी नज़र लांच पर टिक गई। उसमें भारत के ग्यारवहें राष्ट्रपति डाक्टर ए पी जे कलाम भी युवा वैज्ञानिक के रूप में शामिल थे।
टॉयलेट को बनाया डाटा रिसीविंग सेंटर
इसके करीब 12 वर्ष बाद भारत ने अपने पहले प्रायोगिक उपग्रह आर्यभट्ट के साथ अंतरिक्ष युग में प्रवेश किया जिसे 1975 में रूसी रॉकेट पर रवाना किया गया। उस वक्त भी इस तरह के प्रक्षेपण के लिए मूलभूत सुविधाओं की कमी थी और उस वक्त बैंगलोर के एक शौचालय को डाटा प्राप्त करने के केंद्र में तब्दील कर दिया गया था। थुंबा से सफर शुरू करने के बाद भारत की अंतरिक्ष यात्रा अब काफी आगे निकल चुकी है। भारत ने चंद्रमा संबंधी रिसर्च शुरू करने, उपग्रह बनाने, अन्य देशों के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने और मंगल तक पहुंचने में सफलता अर्जित कर दुनियाभर में अपनी पहचान बना ली है।
मंगलयान की सफलता: एक एतिहासिक बढ़त
16 नवंबर 2013, को अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में भारत ने एक नया अध्याय लिखा। इस दिन 2:39 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से PSLV C-25 मार्स ऑर्बिटर (मंगलयान) का अंतरिक्ष का सफर शुरू हुआ। 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुंचने के साथ ही भारत इस तरह के अभियान में पहली ही बार में सफल होने वाला पहला देश गया। इसके साथ ही वह सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद इस तरह का मिशन भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है।
2014 का सर्वश्रेष्ठ अविष्कार
एशिया में भारत पहला देश है जिसने इस तरह का अभियान सफलतापूर्वक शुरू किया है। इससे पहले चीन और जापान अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे प्रतिष्ठित 'टाइम' पत्रिका ने मंगलयान को 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया है। 1960 में रूस ने पहली बार इसके लिए कोशिश की थी जिसे कोराब्ल 4 नाम दिया गया था। हालांकि यह मिशन फेल हो गया था। इससे पहले 26 नवंबर 2011 में अमेरिका ने क्यूरियोसिटी रोवर को लॉन्च किया था, जिसकी 6 अगस्त 2012 में मंगल की सतह पर सफल लैंडिंग हुई थी।
जी सेट 19 का सफल प्रक्षेपण
उच्च-तकनीक वाले सबसे वजनी भू-स्थैतिक संचार उपग्रह, जी-सैट-19 को 05 जून 2017 को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर कक्षा में सफलतापूर्वक छोड़े जाने के बाद भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में एक बड़ी सफलता हासिल की है। इस उपग्रह को सबसे शक्तिशाली देसी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-III द्वारा छोड़ा गया।
अमेरिका से इंकार के बाद स्वयं बनाया क्रायोजनिक इंजन
जीएसएलवी मार्क-III 18 दिसंबर, 2014 को पहली प्रायोगिक उड़ान के साथ एक प्रोटोटाइप क्रू कैप्सूल ले गया था। उपकक्षीय मिशन ने वैज्ञानिकों की यह समझने में मदद की कि यह यान वायुमंडल में कैसे काम करता है। साथ ही कैप्सूल का परीक्षण भी किया गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए इस वर्ष यह तीसरी उपलब्धि थी। इसने खुद के किफायती लेकिन प्रभावी क्रायोजनिक इंजन और अंतरिक्ष में 36,000 किलोमीटर पर कक्षा में 4 हजार किलोग्राम तक के भारी भरकम भू-स्थैतिक उपग्रहों को विकसित करने की देश की चाहत को पूरा किया।
पड़ोसी देशों को भी दी सौगात
इससे पहले 5 मई 2017 को भारत ने संचार सुविधा को बढ़ाने और पहला दक्षिण-एशिया उपग्रह (एसएएस) छोड़कर अपने 6 पड़ोसियों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका को अनमोल तोहफा दिया था। 2,230 किलोग्राम के संचार अंतरिक्ष यान ने क्षेत्र में नए द्वार खोल दिए और भारत को अंतरिक्ष कूटनीति में अपने लिए अनोखा स्थान बनाने में मदद की। इसरो द्वारा निर्मित और भारत द्वारा पूरी तरह वित्तपोषित, भू-स्थैतिक संचार उपग्रह-9 (जीसैट-9) अपने साथ जीएसएलवी-एफ 9 रॉकेट ले गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे अभूतपूर्व विकास बताते हुए एक संदेश में कहा कि जब क्षेत्रीय सहयोग की बात आती है तो आकाश भी कोई सीमा नहीं है।
कार्टोसेट 2 का सफल प्रक्षेपण
पृथ्वी की कक्षा में कार्टोसेट-2 श्रृंखला के उपग्रह सहित रिकॉर्ड-104 उपग्रहों के लिए पोलर सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी सी-37) का इस्तेमाल करने के बाद फरवरी में अंतरिक्ष एजेंसी दुनियाभर में सुर्खियों में आ गयी थी। इस मास्टर स्ट्रोक ने भारत को छोटे उपग्रहों के लिए प्रक्षेपण सेवा प्रदात्ता के रूप में स्थापित कर दिया। पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत अपने अंतरिक्ष मिशन में तेजी लाया है। 2016 की करीब दर्जनभर उपलब्धियों में दिसंबर में रिमोर्ट सेंसिंग उपग्रह रिसोर्ससैट-2 के सफलतापूर्वक कार्य करने और जून में अकेले अंतरिक्ष उपग्रह में 20 उपग्रहों, 3 नेवीगेशन उपग्रहों और जीसैट-18 संचार उपग्रहों का रिकॉर्ड प्रक्षेपण शामिल है।
जीसेट-15 संचार उपग्रह
2015 में इसरो ने नवंबर में जीसैट-15 संचार उपग्रह और सितंबर में मल्टी वेवलेंथ स्पेस ऑब्जरवेटर एस्ट्रोसेट छोड़ा। स्वदेश में विकसित उच्च प्रक्षेपक क्रायोजनिक रॉकेट इंजन का 800 सेकेंड के लिए जमीनी परीक्षण किया गया। इसके अलावा पीएसएलवी द्वारा जुलाई में पांच उपग्रह और मार्च में भारतीय क्षेत्रीय नेवीगेशन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) में चौथा उपग्रह आईआरएनएसएस-1डी छोड़ा गया।
चंद्रयान 2 भेजने की योजना
2014 में संचार उपग्रह जीसैट-16 दिसंबर में छोड़ा गया और कक्षा में स्थापित किया गया। आने वाले वर्षों में इसरो के वैज्ञानिकों ने उपग्रह प्रक्षेपण की श्रृंखला तैयार कर रखी है। अगली प्रमुख परियोजना भारत का चंद्रमा पर दूसरा अन्वेषण मिशन, चंद्रयान-2 भेजना है। इसके चंद्रमा की धरती का खनिज विज्ञान संबंधी और तात्विक अध्ययन करने की उम्मीद है। इसे 2018 की पहली तिमाही में छोड़ने की तैयारी है। 10 वर्ष पूर्व चंद्रयान-1 सफलतापूर्वक छोड़ा गया था।
इसरो की भावी योजनाएं
इसरो की अगली बड़ी योजना सौर प्रभामंडल (कोरोनाग्राफ के साथ – एक टेलीस्कोप), फोटोस्फेयर, वर्णमण्डल (सूर्य की तीन प्रमुख बाहरी परतें) और सौर वायु का अध्ययन करने के लिए सूर्य में वैज्ञानिक मिशन भेजना है। श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-एक्सएल द्वारा इसे 2020 में छोड़ा जाना है। आदित्य-एल1 उपग्रह कक्षा से सूर्य का अध्ययन करेगा जो पृथ्वी से करीब 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर है। आदित्य-एल1 मिशन इस बात की जांच करेगा कि क्यों सौर चमक और सौर वायु पृथ्वी पर संचार नेटवर्क और इलेक्ट्रॉनिक्स में बाधा पहुंचाती है। इसरो की उपग्रह से प्राप्त उन आंकड़ों का इस्तेमाल करने की योजना है ताकि वह गर्म हवा और चमक से होने वाले नुकसान से अपने उपग्रहों का बेहतर तरीके से बचाव कर सके। जल्द ही भारत पहली बार शुक्र ग्रह का भी उपयोग करेगा और संभवतः 2021-2022 के दौरान दूसरे मंगल ओर्बिटर मिशन के साथ लाल ग्रह पर लौटेगा। उसकी मंगल की धरती पर रोबोट रखने की योजना है।