मुशर्रफ के लौटने पर बदल सकती है पाकिस्तान की राजनीति
दुबई में स्वनिर्वासित जीवन जी रहे पाकिस्तान के पूर्व सैनिक तानाशाह और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने एक बार फिर स्वदेश लौटकर सियासी रूप से सक्रिय होने की मंशा जताई है।
डॉ. श्रीश पाठक
दुबई में स्वनिर्वासित जीवन जी रहे पाकिस्तान के पूर्व सैनिक तानाशाह और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने एक बार फिर स्वदेश लौटकर सियासी रूप से सक्रिय होने की मंशा जताई है। उनका कहना है कि वह सत्तारूढ़ ‘पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज)’ और पिछली बार सरकार बनाने वाली ‘पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी’ को देश को बर्बाद नहीं करने देंगे। बेनजीर भुट्टो हत्या मामले में न्यायालय ने मुशर्रफ को राजद्रोह का दोषी और भगौड़ा करार दिया था। न्यायालय और सरकार से काफी जद्दोजहद के बाद आखिरकार चिकित्सा का कारण बताने पर उन्हें मार्च 2016 में दुबई जाने की इजाजत मिली। तब से मुशर्रफ ने कई बार देश लौटकर राजनीति से देश सेवा करने की बात दोहराई है, लेकिन यह तमाम वजह से टलता रहा है।
मगर इस बार उनकी पूरी तैयारी दिख रही है। उन्होंने कुल 23 अन्य दलों के साथ मिलकर अपने नेतृत्व में महागठबंधन बनाने का एलान किया है, जिसका नाम ‘पाकिस्तान अवामी एतेहाद’ रखा है और जिसका मुख्यालय इस्लामाबाद में होगा। हालांकि महागठबंधन के ये घटक, कोई बड़ा प्रभाव नहीं रखते, लेकिन मुशर्रफ के अपने दल ‘आल पाकिस्तान मुस्लिम लीग’ सरीखे ही यत्र-तत्र प्रभाव अवश्य ही रखते हैं। नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज शरीफ ने मुशर्रफ की इस घोषणा पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया में उन्हें निशान-ए-इबरत (कलंक) की संज्ञा दे डाली है।
दिल्ली की पैदाइश मुशर्रफ पाकिस्तानी राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं और इस वक्त पाकिस्तान के किसी भी प्रभावी राजनीतिक हस्ती से केवल उम्र में ही नहीं बल्कि अनुभव में भी बीस पड़ते हैं। उनकी हालिया तैयारी एक ऐसे समय में है जब पनामा पेपर्स विवाद ने नवाज शरीफ को उनके पद से हटा दिया है और शरीफ परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप में न्यायालय का डंडा अभी और चलने को है। इस बीच, नवाज शरीफ के बाद दल में दूसरा प्रमुख चेहरा समझी जाने वालीं उनकी बड़बोली बेटी मरियम नवाज शरीफ ने परिवार के भीतर ही राजनीतिक उत्तराधिकार की बहस को बेवक्त ही सतह पर ला दिया है। नवाज शरीफ के ही चुने हुए सेना प्रमुख मुशर्रफ ने 1999 में सैनिक तख्तापलट करते हुए शरीफ सरकार को अपदस्थ कर दिया था और फिर आपातकाल के बाद फिर चुनाव कराकर स्वयं ही देश के राष्ट्रपति बन बैठे थे।
मुशर्रफ का कार्यकाल यों तो बेहद ही विवादों से भरा रहा है पर कारगिल के इस मास्टरमाइंड ने अपने देश पाकिस्तान को 9/11 की घटना के बाद अमेरिकी गुस्से से न केवल बचाया था बल्कि पाकिस्तानी पारंपरिक शक्ति- प्रतिष्ठान की पुरानी नीति में सहसा बदलाव लाते हुए पाकिस्तानी सेना को अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ झोंककर अमेरिकी सौगात भी बटोरी थी। अपनी तानाशाही में मुशर्रफ ने पाकिस्तान को वैश्विक पटल पर तो सुरक्षित रखा परन्तु लोकतंत्र की कमर ही तोड़ दी। वैश्विक परिदृश्य बदला और मुशर्रफ को लोकतांत्रिक दिखावा करने को मजबूर होना पड़ा।
2007 में निर्वासन से नवाज शरीफ भी आए और बेनजीर भुट्टो भी वापस लौटीं। पाकिस्तान में चुनावों की घोषणा हुई और बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद उनके दल ‘पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी’ ने 2008 में सरकार बनाई। पांच साल के बाद पाकिस्तान ने अपने इतिहास का पहला शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक सत्ता-परिवर्तन देखा और नवाज शरीफ के दल ने जून, 2013 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। कतिपय अपवादों को छोड़ दें तो इन दस सालों में मुशर्रफ पाकिस्तानी राजनीति में अप्रासंगिक रहे। बहरहाल पाकिस्तान की राजनीति में यदि मुशर्रफ फिर उभरते हैं तो इससे पाकिस्तान के भारत और अमेरिका से संबंधों पर तो असर होगा ही, क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरणों में भी सुगबुगाहट कुछ कम न रहेगी।
(लेखक गलगोटियाज यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)