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जागरण विशेष: गांव व गरीबों की आवाज हैं चिट्ठी वाले गुरुजी

चिट्ठी वाले गुरुजी ने गांव और गरीबों की बेहतरी के लिए ढेरों पत्र शासन-प्रशासन को लिखे।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 20 Aug 2018 07:00 PM (IST)Updated: Tue, 21 Aug 2018 12:31 AM (IST)
जागरण विशेष: गांव व गरीबों की आवाज हैं चिट्ठी वाले गुरुजी
जागरण विशेष: गांव व गरीबों की आवाज हैं चिट्ठी वाले गुरुजी

Vinod Singh, Jagdalpur  The importance of knowledge only when it is useful The teacher Rajaram Yadav understood this verse only in youth, that the voice of the village and the poor remained the same for the last 56 years by writing chithees (letter-papers). He believes that this is the most powerful medium of governance-governance. If the subject is reasonable then there is a delay in hearing. Alam says that there is a crowd of people who write an application to Rajaram Yadav daily. From Prime Minister to Patwari, he writes the application, he is also free. Paper, envelope and ticket expenses are also borne by themselves. People lovingly call him- Guruji, a girl with a finger.

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उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में 1943 में जन्मे राजाराम यादव मैट्रिक की पढ़ाई करने के बाद बस्तर (छत्तीसगढ़) आ गए थे। 1962 में उन्हें ग्राम नगरनार के सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी भी मिल गई। राजाराम जी बताते हैं कि बस्तर में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, आवागमन के साधनों और अन्य सुविधाओं का काफी अभाव था। दक्षिण बस्तर के तब के अति पिछड़े कोंटा या गादीरास क्षेत्र हो या फिर उत्तर बस्तर के कथित रूप से विकासशील क्षेत्र, इनकी बेहतरी के लिए गांव वालों के आग्रह पर वह शासन-प्रशासन को पत्र भेजते रहते थे। पत्र लिखने का यह सिलसिला आज भी जारी है। 2005 में सेवानिवृत्ति के बाद तो यह काम और तेज हो गया।

नगरनार में निर्माणाधीन स्टील प्लांट की चहारदीवारी से सटे उनके आवास पर प्रतिदिन जरूरतमंदों की भीड़ जुटती है। इनमें ज्यादातर अशिक्षित या अल्प शिक्षित लोग होते हैं। लोगों को अपनी बारी आने का घंटों इंतजार भी करना पड़ता है। इन सबका उद्देश्य राजाराम यादव से शिकायती, समस्याग्रस्त, मांग संबंधी, व्यक्तिगत अथवा सामूहिक दिक्कतों से जुड़ा आवेदन तैयार करवाना होता है। राजाराम भी किसी को निराश नहीं करते। कभी-कभी वह खुद गांव और गांव वालों की समस्याओं और शिकायतों से जुड़ा आवेदन लिखकर संबंधित दफ्तर तक पहुंचा आते हैं।

वह कहते हैं कि उनके पत्र कभी-कभी रद्दी की टोकरियों में भी डाल दिए जाते हैं, लेकिन वह इसकी परवाह किए बिना सतत पत्र लिखते रहते हैं। वह इस बात पर भरोसा करते हैं कि यदि वाजिब विषय पर बार-बार शासन-प्रशासन को पत्र लिखा जाए तो देर से ही सही, कार्रवाई जरूर होती है।

कर्मचारी भी पहुंचते हैं पत्र लिखवाने

ऐसा नहीं कि राजाराम यादव के पास गरीब तबके के लोग ही पत्र लिखवाने आते हैं। विभिन्न प्लांटों में कार्यरत कर्मचारी भी पत्र लिखने का आग्रह लेकर उनके पास पहुंचते हैं। नगरनार स्टील प्लांट के भू-प्रभावितों के पुनर्वास व विस्थापन से जुड़ी मांगों, शिकायतों और समस्याओं पर 18 वर्षों में उन्होंने हजारों पत्र लिखे। पुनर्वास मामलों में उनके लिखे पत्रों पर कार्रवाई भी हुई। प्रभावितों को पुनर्वास नीति से अलग हटकर भी कई लाभ मिले।

लोगों की राह की है आसान: पूर्व सरपंच

Lakhan Baghel, a former Sarpanch of Nagar Nair, says that the letter holder has written a lot of letters to the government and administration for the betterment of the village and the poor, the people have made the road easier. Mahendra John, secretary of Joint Labor Steel Association who works in the steel plant, says he has learned a lot from Yadav Guruji. In order to bring justice to the landed people, a series of letters and papers run by them came in handy. There are many similar experiences of people in the area.


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