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साक्षी ने पूरे गांव का बनाया खुले में शौच से मुक्त, जहां सड़क-बिजली नहीं, वहां हर घर में शौचालय

टीवी-रेडियो पर गांव-शहरों में शौचालय के अभियान के बारे में सुना था। पंचायत सचिव ने घर में शौचालय के बारे में पूछा तो शर्मिंदगी महसूस हुई। घर में शौचालय बनाने की ठानी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 24 Mar 2018 01:14 PM (IST)Updated: Sat, 24 Mar 2018 01:14 PM (IST)
साक्षी ने पूरे गांव का बनाया खुले में शौच से मुक्त, जहां सड़क-बिजली नहीं, वहां हर घर में शौचालय
साक्षी ने पूरे गांव का बनाया खुले में शौच से मुक्त, जहां सड़क-बिजली नहीं, वहां हर घर में शौचालय

जबलपुर (अतुल गुप्ता)। तीन तरफ कई किमी तक सिर्फ पानी। चौथी दिशा में चार किमी तक घना जंगल। गांव के 10 परिवारों के अलावा दूर-दूर तक आबादी का निशान नहीं। सड़क तो दूर खरंजा (सड़क का छोटा सा भाग) भी नहीं। बिजली के खंभे अब लगना शुरू हो रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ, यह गांव 11 साल की साक्षी यादव की मेहनत और जिद के कारण ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) हो गया है।

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सुनने में अजीब लगता है लेकिन यह जबलपुर जनपद के ग्राम पंचायत मगरा के गांव मिढ़की की हकीकत है। 28 साल पहले बरगी डेम बनने से आसपास का क्षेत्र डूब में आया तो आय के साधन खत्म हो गए। पलायन के कारण मात्र 10 परिवारों के 50-55 लोग ही गांव में हैं। वे भी मछली पालन कर गुजारा करते हैं।

इसी गांव की 11 साल की कक्षा 7 में पढ़ रही साक्षी राशन लेने 10 किमी बरगी डेम में नाव चलाकर मगरा आती थी। पंचायत सचिव रूपराम सेन ने एक बार मुलाकात में उससे पूछा कि तुम्हारे घर में शौचालय है या नहीं। साक्षी ने मना किया तो उसे शौचालय के फायदे समझाए। सरकारी मदद मिली तो मगरा से ही सीमेंट-ईंट खरीदकर नाव से अपने गांव ले गई और शौचालय बनवाना शुरू किया। अपने घर का शौचालय बना तो उसने गांव के अन्य लोगों को भी समझाया। धीरे-धीरे पूरे गांव के घरों में शौचालय बन गए।

गांव पहुंचना मुश्किल

स्वच्छ भारत मिशन की ब्लाक समन्वयक सुषमा सरफरे बताती हैं कि गांव में पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक मंडला जिले से होते हुए और दूसरा 10-12 किमी नाव चलाकर बरगी डेम को पार करते हुए। मंडला जिले से आना मुश्किल है क्योंकि सड़क कठौतिया तक ही बनी है। वहां से 4 किमी तक घने जंगल के रास्ते पगडंडी ही है।

सरकारी अधिकारी रोजाना गांव नहीं जा सकते थे इसलिए गांव की ही पढ़ी-लिखी लड़की साक्षी को जागरुक करने के लिए चुना था। जिला समन्वयक अरुण सिंह बताते हैं कि साक्षी की समझाइश और सरकारी अनुदान की वजह से 3 महीने में पूरा गांव ओडीएफ हो गया।

गांव की भलाई

टीवी-रेडियो पर गांव-शहरों में शौचालय के अभियान के बारे में सुना था। पंचायत सचिव ने घर में शौचालय के बारे में पूछा तो शर्मिंदगी महसूस हुई। घर में शौचालय बनाने की ठानी। इसके फायदे समझे तो सबको बताया। आज पूरे गांव में शौचालय बन गए हैं तो ग्रामीणों को भी अच्छा लगता है- साक्षी यादव, प्रेरक लड़की

युवाओं को जोड़ रहे हैं

मगरा के 4 गांव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह दुर्गम क्षेत्र है। मगरा के एक युवक ने अपने दोस्त की शादी में टायलेट गिफ्ट किया था तो कठौतिया में राजा पचौरी नामक युवक शहर से साइकिल से सामग्री लाया और घर में शौचालय बनाया। हमारी कोशिश खासकर युवाओं को जागरुक करने की भी है जिससे गांव सही अर्थों में ओडीएफ बन सकें। जागरुकता की वजह से इन शौचालयों का उपयोग भी हो रहा है - हर्षिका सिंह, सीईओ, जिला पंचायत, जबलपुर 


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