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यह समय कांग्रेस को ‘भारत जोड़ो’ यात्रा करने से ज्यादा आत्ममंथन करने का है

इस पदयात्रा के बहाने फिर कांग्रेस उसी चेहरे पर दांव चल रही है जो लगातार असफल रहा है। यह समय कांग्रेस को यात्रा करने से ज्यादा आत्ममंथन करने का है। नीति नेतृत्व और निर्णय के चौतरफा संकट कांग्रेस को घेरे हुए हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 17 Sep 2022 04:18 PM (IST)Updated: Sat, 17 Sep 2022 04:18 PM (IST)
यह समय कांग्रेस को ‘भारत जोड़ो’ यात्रा करने से ज्यादा आत्ममंथन करने का है
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा विरोधाभासों से भरी

शिवानंद द्विवेदी। भारत की राजनीति में राहुल गांधी एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन पर कांग्रेस पार्टी ने सर्वाधिक समय खर्च किया है। वह एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन्हें निरंतर असफलताओं के बावजूद नेता साबित करने में कांग्रेस पार्टी पूरी शिद्दत से जुटी हुई है। पहली बार वर्ष 2004 में राजनीति में प्रवेश करने वाले राहुल गांधी को नेहरू-इंदिरा परिवार से होने का भरपूर लाभ मिला। पार्टी-परिवार की पारंपरिक सीट से लोकसभा सदस्य चुने गए। अपनी मां सोनिया गांधी की अध्यक्षता में राहुल गांधी पार्टी के महासचिव बना दिए गए।

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कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी बने, फिर उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया। अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस कमजोर ही हुई। एक जुझारू जननेता के रूप में लड़ने के बजाय राहुल गांधी ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया। अपनी पारिवारिक सीट अमेठी से वह स्वयं भी चुनाव हार गए। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से उनके त्यागपत्र देने के बाद पार्टी ने एक बार फिर सोनिया गांधी को अध्यक्ष बना दिया। तबसे लेकर अब तक नए अध्यक्ष के निर्णय पर कांग्रेस पार्टी आंतरिक द्वंद्व से जूझ रही है।

अब इस पदयात्रा के बहाने फिर कांग्रेस उसी चेहरे पर दांव चल रही है, जो लगातार असफल रहा है। यह समय कांग्रेस को यात्रा करने से ज्यादा आत्ममंथन करने का है। नीति, नेतृत्व और निर्णय के चौतरफा संकट कांग्रेस को घेरे हुए हैं। परिवार की छत्रछाया में कांग्रेस का एक धड़ा छटपटा रहा है तो वहीं एक धड़ा ऐसा है कि वह इस आभा से बाहर निकलना ही नहीं चाहता। इंदिरा-नेहरू परिवार की विरासत की यह बहस यहीं थमने वाली नहीं है। यह बहस दूर तक जाएगी।

यह बहस राहुल बनाम प्रियंका की बहस तक भी जा सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर अनिर्णय व अस्पष्टता का परिणाम राज्यों पर पड़ना स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में अंतिम पायदान की पार्टी बन चुकी कांग्रेस के लिए भविष्य में अन्य राज्यों में भी संकट कम नहीं होने वाला। आए दिन राज्यों में कांग्रेस के नेताओं का उनकी पार्टी से मोह टूट रहा है। वे दूसरे दलों में जा रहे हैं। गोवा में हुई टूट इसका ताजा उदाहरण है। आज कांग्रेस नेताओं की प्राथमिकता पदयात्रा नहीं, बल्कि पार्टी में गहराते भरोसे के संकट को समाप्त करना है। आंतरिक संवाद कायम करना है।

[राजनीतिक विश्लेषक]


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