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रिश्ते सामान्य करना अब भी चुनौतीपूर्ण, अगले हफ्ते मोदी-चिनफिंग द्विपक्षीय वार्ता

रिश्तों की गा़डी किस तरफ जाती है, यह बहुत कुछ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग में होने वाली वार्ता से तय होगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 29 Aug 2017 06:10 AM (IST)Updated: Tue, 29 Aug 2017 06:44 PM (IST)
रिश्ते सामान्य करना अब भी चुनौतीपूर्ण, अगले हफ्ते मोदी-चिनफिंग द्विपक्षीय वार्ता
रिश्ते सामान्य करना अब भी चुनौतीपूर्ण, अगले हफ्ते मोदी-चिनफिंग द्विपक्षीय वार्ता

 नई दिल्ली,[जयप्रकाश रंजन]। परिपक्व देशों की तरह भारत और चीन ने डोकलाम विवाद की गहरी छाया से अपने रिश्तों को तो बचा लिया है, लेकिन सवाल है कि क्या इससे द्विपक्षीय संबंधों में आई तल्खी दूर हो पाएगी? विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की मानें तो आपसी रिश्तों की गाड़ी किस तरफ जाती है, यह बहुत कुछ अगले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग के नेतृत्व में होने वाली द्विपक्षीय वार्ता से तय होगी।

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डोकलाम की वजह से आए तनाव का साया ब्रिक्स सम्मेलन पर भी प़़डने के कयास लगाए जाने लगे थे। कई जानकार यह मान रहे हैं कि ब्रिक्स में भारत और चीन के अलावा अन्य तीनों देशों [रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका] की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। ऐसे में अगर भारत व चीन के बीच ही मनमुटाव रहता तो ब्रिक्स को एक शक्तिशाली संगठन बनाने की सारी तैयारियों पर ही सवालिया निशान लग जाता। अब ब्रिक्स पर भारत व चीन ज्यादा ध्यान दे सकते हैं।
ब्रिक्स की पिछली बैठक में द्विपक्षीय शिखर वार्ता में दोनों देशों के बीच कई महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखे गए थे। डोकलाम को पीछे छोड़कर मोदी और चिनफिंग इन लक्ष्यों को हासिल करने की नई रणनीति बना सकते हैं। इसमें सबसे अहम होगा सीमा विवाद को निर्धारित समय सीमा के भीतर सुलझाने का रोडमैप बनाना। डोकलाम की वजह से सीमा विवाद सुलझाने के लिए नए सिरे से वार्ता की तैयारियां रोक दी गई थीं। अब इन पर बात फिर आगे ब़़ढ सकती है।

इसी तरह से पिछली शिखर बैठक में यह तय हुआ था कि भारत के खिलाफ जा रहे व्यापार संतुलन को कम करने के लिए चीन की तरफ से भारतीय आयात को ब़़ढाने की कोशिश होगी। इसको लेकर दोनों देशों की विशेषज्ञ समिति का गठन होना था, जो नहीं हो पाया है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत और चीन के बीच व्यापारिक घाटा ब़़ढकर 51 अरब डॉलर [3,264 अरब रुपए] का हो गया है। इसे कम करना भारत के लिए बेहद जरूरी है। अब देखना होगा कि मोदी और जिनपिंग की बैठक में इन दोनों जटिल मुद्दों पर आगे ब़़ढने की सहमति हो पाती है या नहीं।
भारतीय पक्ष मान रहा है कि पाकिस्तानी आतंकी मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने या परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत को इंट्री दिलाने के मुद्दे पर चीन के रवैये में नरमी नहीं आएगी। लेकिन, इस विवाद के निपटारे से यह साबित हो गया है कि चीन का आक्रामक रवैया अब काम नहीं आएगा। आगे शायद वह ज्यादा संतुलित कदम उठाए।
डोकलाम के समाधान ने भाजपा की भी बढ़ाई शक्ति, इसे जीत के रूप में भुना सकती है पार्टी

नई दिल्ली। डोकलाम विवाद पर खत्म होना भाजपा और सरकार के लिए ब़़डी जीत मानी जा सकती है। सर्जिकल स्ट्राइक पर लोगों का उत्साह और समर्थन देख चुकी पार्टी इसका प्रचार प्रसार भी कर सकती है।
पिछले दिनों में पाकिस्तान को कई मौकों पर भारत की ओर से करारा जवाब दिया जा चुका है। लेकिन, चीन को लेकर आशंका से भारत कभी पार नहीं पा रहा था।

डोकलाम ने ऐसा मौका दिया जब भारत चीन की आंखों में आंखें डालकर बात भी कर रहा था और सैनिक भी आमने सामने डटे थे। चीन ने घुड़की दी तो भारत की ओर से भी याद दिलाने में कसर नहीं रही कि भारत बदल चुका है। इससे पहले दलाईलामा के अरुणाचल प्रदेश दौरे के मामले में भी भारत डटा रहा था। दो महीने की खींचतान के बाद लड़ाई बराबरी पर छूटी है तो भारत के लिए यह जीत है।
उमर ने प्रधानमंत्री को सराहा
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम की सराहना की है। उन्होंने कहा, यथास्थिति की बहाली भारत और प्रधानमंत्री की जीत है। सबसे खास बात यह है कि यह बिना छाती ठोके और बिना जोर जबर्दस्ती के किया गया है।
वहीं, कांग्रेस ने भी ताजा घटनाक्रम का स्वागत करते हुए कहा कि दोनों पक्षों को भारत-भूटान और चीन के बीच 2012 में हुए त्रिपक्षीय समझौते की रोशनी में स्थायी समाधान के लिए बातचीत करनी चाहिए। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने भी ट्वीट कर तनाव खत्म होने का स्वागत किया।
डोकलाम से हटने के फैसले का रक्षा विशेषज्ञों ने किया स्वागत

नई दिल्ली। भारत और चीन के डोकलाम में पीछे हटने के फैसले का रक्षा विशेषज्ञों ने स्वागत किया है।
पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल [सेवानिवृत्त] वीपी मलिक का कहना है कि समस्या सिर्फ भारत और चीन के बीच नहीं है बल्कि इस तनाव में भूटान भी एक पक्ष रहा है। कारगिल युद्ध के दौरान सेना प्रमुख रहे जनरल मलिक ने कहा, 'डोकलाम की चरागाह भूमि भूटान की है और उनका इस क्षेत्र को लेकर चीन से विवाद है। भूटान और हमारी सबसे ब़़डी आपत्ति यह थी कि चीनी सेना को इस क्षेत्र में स़़डक का निर्माण नहीं करना चाहिए। इस कार्य को अब रोक दिया गया है क्योंकि भूटान सरकार के आग्रह पर हमारी सेना को वहां बुलाया गया था। मुझे खुशी है कि इस मसले को राजनयिक स्तर पर सुलझा लिया गया।' जाने-माने चीन मामलों के विशेषज्ञ मेजर जनरल [सेवानिवृत्त] एसएल नरसिम्हन ने कहा कि यही आगे ब़़ढने का सही तरीका है। उनका मानना है कि भविष्य में भी ऐसी घटनाओं के होने की संभावना है क्योंकि दोनों देशों के बीच सीमाओं का चिह्नांकन नहीं है।
भारत की बड़ी जीत
डोकलाम विवाद के हल पर चीन रणनीतिक और विदेशी मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी का कहना है चीन आधिकारिक तौर पर नहीं कह सकता कि वह डोकलाम से बाहर हो रहा है, क्योंकि उसका इस पर दावा है। नेशनल सिक्योरिटी कॉलेज [ऑस्ट्रेलिया] के प्रोफेसर और हिंद प्रशांत क्षेत्र के विशेषषज्ञ रोरी मेककाल्फ के मुताबिक अगर चीन वहां सड़क नहीं बनाने को तैयार हो गया है, तो यह भारत के लिए बड़ी जीत है।

भारत के एतराज की वजह
--विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि डोकलाम निश्चित तौर पर भूटान और चीन के बीच का मामला है।
--चीनी सैनिक पहले भी वहां पेट्रोलिंग करते रहे हैं, जिसको लेकर भारत को बहुत ज्यादा आपत्ति नहीं है।
--भारत की आपत्ति वहां स़़डक निर्माण से है, जो सीधे तौर पर भारत की सुरक्षा हितों को प्रभावित करता है।
--अगर चीन वहां निर्माण कार्य नहीं करता है, तो यह इस क्षेत्र में स्थायी शांति की सबसे ब़़डी गारंटी है।

यह भी पढें: डोकलाम मुद्दे पर भारत की बड़ी जीत : निर्मल सिंह


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