प्रदीप। चंद्रयान और मंगलयान के बाद भारत ने शुक्रयान पर काम करना शुरू कर दिया है। इसरो चेयरमैन एस. सोमनाथ के मुताबिक, भारत शुक्र ग्रह का बारीकी से अध्ययन करने के लिए दिसंबर 2024 तक शुक्रयान को अंतरिक्ष में भेजेगा। मिशन की शुरुआत के लिए यह समय इसलिए चुना गया है, क्योंकि उस समय शुक्र पृथ्वी के काफी नजदीक होगा। इससे शुक्र तक आर्बिटर को पहुंचाने में ईंधन की खपत कम होगी।
पृथ्वी के अलावा कहीं और जीवन की मौजूदगी को लेकर अंतरिक्ष विज्ञानियों का अब तक सारा ध्यान चंद्रमा और मंगल पर ही केंद्रित था। उन्होंने इन दोनों के अध्ययन-अन्वेषण पर विपुल ऊर्जा और संसाधन व्यय किए। हालांकि विज्ञानियों ने शुक्र ग्रह को लेकर चंद्रमा और मंगल जितनी दिलचस्पी नहीं दिखाई, क्योंकि शुक्र बेहद गर्म और नारकीय ग्रह है, जिसके वातावरण में 96 प्रतिशत कार्बन डाईआक्साइड है और वहां लगातार सल्फ्यूरिक एसिड की बारिश होती रहती है। लिहाजा ऐसी विषम परिस्थितियों में वहां जीवन की मौजूदगी की कोई संभावना नहीं दिखाई देती।
इसरो का मिशन शुक्रयान शुक्र ग्रह की विषम परिस्थितियों का गहराई से अध्ययन करेगा, जिससे पता चलेगा कि शुक्र इतना गर्म और नारकीय ग्रह कैसे बना। इसके तहत शुक्र की सतह पर मौजूद ज्वालामुखियों, लावा के विशाल फव्वारों और जीवन की संभावनाओं पर अध्ययन किया जाएगा। कई अध्ययनों में यह दावा किया गया है कि शुक्र के वातावरण में मौजूद अमोनिया ऐसी कई घटनाओं को संचालित कर रही है, जिससे वहां जीवन के अनुकूल परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं। इस खोज के बरक्स यहां तक अनुमान लगाया जाता रहा है कि हो सकता है शुक्र ग्रह के घने अम्लीय बादलों में सूक्ष्म जीव तैर रहे हों! शुक्रयान द्वारा शुक्र के अम्लीय बादलों के अध्ययन से इन दावों की भी पड़ताल की जाएगी।
शुक्रयान का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण उसका डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार होगा, जिसे इसरो ने चंद्रयान-2 मिशन के लिए विकसित किया था। यह रडार अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा द्वारा 1989 में प्रक्षेपित किए गए मैगलन आर्बिटर मिशन के रडार से चार गुना अधिक रेजोल्यूशन का है। शुक्रयान के लिए जीएसएलवी मार्क-2 अथवा उससे भी शक्तिशाली जीएसएलवी मार्क-3 प्रक्षेपण यान का प्रयोग किया जा सकता है।
सूर्य का दूसरा सबसे करीबी ग्रह शुक्र रात के समय आसमान में चांद के बाद दूसरी सबसे चमकदार और खूबसूरत चीज के रूप में नजर आता है। शुक्र को अक्सर पृथ्वी का जुड़वां भी कहा जाता है, क्योंकि इन दोनों का आकार, द्रव्यमान और घनत्व लगभग एक जैसा है। चूंकि पृथ्वी और शुक्र की जड़ें एक हैं, इसलिए अधिकांश विज्ञानियों का ऐसा मानना है कि पृथ्वी की तरह जीवन योग्य परिस्थितियां कभी शुक्र पर भी जरूर मौजूद रही होंगी।
(लेखक विज्ञान के जानकार हैं)
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