इसरो के मानव मिशन में सुरक्षा के लिहाज से अहम प्रणालियों के होंगे कई बैकअप, GSLV रॉकेट का होगा इस्तेमाल
इसरो के मानव अंतरिक्ष उड़ान रॉकेट में सुरक्षा के लिहाज से अहम प्रणालियों के कई बैकअप होंगे। इसरो के ही अंग विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के निदेशक एस. सोमनाथ ने बताया कि गगनयान के लिए जीएसएलवी का इस्तेमाल किया जाएगा।
चेन्नई, आइएएनएस। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मानव अंतरिक्ष उड़ान रॉकेट में सुरक्षा के लिहाज से अहम प्रणालियों के कई बैकअप होंगे। इसरो के ही एक अंग विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक एस. सोमनाथ ने बताया कि मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन या गगनयान के लिए जीएसएलवी का इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें अहम प्रणालियों के लिए चार बैकअप बनाए जाएंगे।
इसरो के एक पूर्व अधिकारी ने इसका उदाहरण देते हुए बताया कि किसी विशेष काम के लिए उसमें कई सेंसर लगे होंगे। अगर उनमें से कोई एक खराब होता है तो दूसरे काम करेंगे। सोमनाथ ने बताया कि तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जाने वाले जीएसएलवी एमके-3 रॉकेट के डिजायन में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है, सिर्फ जरूरत के हिसाब से मामूली बदलाव किए गए हैं।
बता दें कि भारत एक हफ्ते के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को कक्षा में भेजने की योजना बना रहा है। इसका पहला मानव रहित परीक्षण अगले साल किए जाने की संभावना है। यही नहीं इसरो नवंबर या दिसंबर, 2020 में किसी समय अपने रीयूजेबल लांच व्हीकल (आरएलवी) या स्पेस शटल की लैंडिंग परीक्षण की योजना भी बना रहा है। इसरो का लक्ष्य अमेरिकी स्पेस शटल की तर्ज पर आरएलवी का निर्माण करना है जो सेटेलाइट को कक्षा में पहुंचाकर अगले मिशन के लिए धरती पर वापस आ सके।
बताया जाता है कि इससे सेटेलाइट लांच करने की लागत में कमी आएगी। सोमनाथ ने बताया कि हम कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में आरएलवी की लैंडिंग के परीक्षण की योजना बना रहे हैं। आरएलवी को हेलीकॉप्टर के जरिये ऊपर ले जाया जाएगा और चार किमी की ऊंचाई से उसे छोड़ा जाएगा। हेलीकॉप्टर से छोड़े जाने के बाद आरएलवी रनवे की ओर उड़ान भरेगा और अपने पैराशूट के जरिये चित्रदुर्ग की हवाई पट्टी पर खुद लैंड करेगा। बता दें कि 2016 में आरएलवी के वातावरण में पुन:प्रवेश का सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है।