मिशन मार्स के लिए भारत भी तैयार
नासा के मिशन मंगल के बाद अब भारत ने भी मंगल पर पहुंचने की कवायद शुरू कर दी है। पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में इस भारत के मिशन मार्स को लेकर फैसला लिया गया। इसके तहत सरकार ने वर्ष 2013 में मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने को मंजूरी दे दी है। इस पर 450 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
नई दिल्ली। नासा के मिशन मंगल के बाद अब भारत ने भी मंगल पर पहुंचने की कवायद शुरू कर दी है। पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में इस भारत के मिशन मार्स को लेकर फैसला लिया गया। इसके तहत सरकार ने वर्ष 2013 में मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने को मंजूरी दे दी है। इस पर 450 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इस फैसले के बाद से इस मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों के चेहरे भी खिल गए हैं। हालांकि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर ने इससे इत्तफाक नहीं जताया है। उनके मुताबिक फिलहाल भारत को बेहतर राकेटों को विकसित करने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
भारत ने अंतरिक्ष की खोजबीन करने का कार्यक्रम 1962 में शुरू किया था। चार साल पहले भारत के उपग्रह चंद्रयान ने चाद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया था। भारत के मिशन मार्स के तहत इस ग्रह पर मौजूद वातावरण का अध्ययन किया जाएगा। सरकार के मुताबिक भारतीय इसरो द्वारा यह मिशन श्रीहरिकोटा से लाच किया जा सकता है। इसके लिए फिर से पीएसएलवी का अपग्रेडेड संस्करण इस्तेमाल किया जाएगा।
यदि इसरो अगले साल तक मंगल मिशन शुरू नहीं कर पाता है तो इसके अगले अवसर 2016 और 2018 में उपलब्ध होंगे। मंगल पर अब तक 42 मिशन भेजे जा चुके हैं। इनमें से आधे ही सफल हुए हैं। ये मिशन अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और कुछ दूसरे यूरोपीय देशों ने भेजे थे।
वहीं इसरो के पूर्व चीफ जी. माधवन नायर का कहना है कि फिलहाल भारत की प्राथमिकता मिशन मार्स नहीं होनी चाहिए। माधवन के मुताबिक, फिलहाल भारत का ध्यान राकेटों के विकास पर होना चाहिए ताकि अंतरिक्ष में भारतीयों को पहुंचाया जा सके।
नायर ने कहा कि उनके विचार में मिशन मार्स प्रोजेक्ट हमारे लिए इतना अहम नहीं है। हमें अपना पूरा ध्यान जीएसएलवी राकेटों के लिए क्रायोजनिक इंजन तैयार करने पर केंद्रित करना चाहिए ताकि इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।
नायर का कहना है कि अमेरिका के स्पेस शटल फेल हो चुके हैं और अब उनके पास कोई लांच व्हीकल नहीं है। केवल रूस के पास ही अपना एक आपरेटिंग सिस्टम है। वहीं चीन अंतरिक्ष में मिनी स्पेस स्टेशन बनाने की जुगत में लगा हुआ है।
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