पाकिस्तान को आईना दिखा इस्लामिक देशों ने भारत का किया समर्थन
भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि भंडारी की जीत के लिए भारत ने पिछले दो हफ्तों में जो कूटनीतिक कोशिशें की हैं वैसा कूटनीतिक उदाहरण मिलना मुश्किल है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पड़ोसी देश पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय भारत विरोधी मानसिकता से कब उबरेगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों के पैनल के लिए संपन्न चुनाव इसका एक ताजा तरीन उदाहरण है।
पाकिस्तान का न तो कोई प्रतिनिधि था और न ही उसका कुछ लेना देना था फिर भी भारतीय प्रतिनिधि दलवीर भंडारी को हराने के लिए उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने अपने कुछ करीबी देशों के साथ मिल कर इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) में भारत के खिलाफ और ब्रिटेन के पक्ष में हवा बनाने की कोशिश की। लेकिन जिस तरह का समर्थन भारत को मिला है उससे साफ है कि ओआईसी के भी बहुत सारे देशों ने भारत के पक्ष में वोटिंग की है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि भंडारी की जीत के लिए भारत ने पिछले दो हफ्तों में जो कूटनीतिक कोशिशें की हैं वैसा कूटनीतिक उदाहरण मिलना मुश्किल है। तकरीबन सौ देशों में फैले भारतीय राजदूत, उच्चायुक्त व मिशन के प्रतिनिधियों ने पूरी तरह से सुनिश्चित किया कि भारतीय प्रतिनिधि के पक्ष में वोटिंग में कोई कोताही न हो। पूरे मामले पर नजर नई दिल्ली स्थिति विदेश मंत्रालय के आला अधिकारी रख रहे थे। इन कोशिशों में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन की भूमिका सबसे अहम रही जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वोटिंग के समय दूसरे देशों के प्रतिनिधियों के स्तर पर कोई गड़बड़ी न हो। यह एक वजह है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अकबरुद्दीन को खास तौर पर धन्यवाद दिया है।
विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक यह एक बेमिसाल टीम वर्क का उदाहरण है। परिणाम निकलने के बाद मुकाबला भले ही आसान नजर आ रहा हो लेकिन शुरु से ही यह काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि सामने संयुक्त राष्ट्र का एक स्थाई सदस्य (ब्रिटेन) था जिसने आईसीजे में कभी मात नहीं खाई थी। अंत में इस्लामाबाद की तरफ से खेल में भंग डालने की पूरी कोशिश की गई।
पाकिस्तान के राजनयिकों ने संयुक्त राष्ट्र में ओआइसी के सारे प्रतिनिधियों के बीच लाबिंग की। लेकिन इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ। अंतिम राउंड की वोटिंग से पहले वाले राउंड में भारत के पक्ष में तकरीबन दो तिहाई सदस्य देशों ने मतदान किया था। ओआइसी के 56 सदस्य है जबकि अंतिम वोटिंग में ब्रिटेन को 61 वोट मिले है। ब्रिटेन के पक्ष में वोटिंग करने वाले यूरोपीय देशों की संख्या निश्चित तौर पर ज्यादा होगी। इसका साफ मतलब है कि ओआइसी के भी कई देशों ने भारत के पक्ष में वोटिंग की है।
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