Move to Jagran APP

क्या EVM से छेड़छाड़ हो सकती है? यहां पढ़ें अपने हर सवाल का जवाब

विपक्ष बार-बार ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगा रहा है तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में ईवीएम टेंपरिंग हो सकती है?

By Digpal SinghEdited By: Published: Wed, 26 Apr 2017 03:48 PM (IST)Updated: Wed, 26 Apr 2017 07:09 PM (IST)
क्या EVM से छेड़छाड़ हो सकती है? यहां पढ़ें अपने हर सवाल का जवाब
क्या EVM से छेड़छाड़ हो सकती है? यहां पढ़ें अपने हर सवाल का जवाब

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के नगर निगम चुनाव में भाजपा को मिली बड़ी जीत के बाद एक बार फिर ईवीएम पर सवाल उठ रहे हैं। खासतौर पर दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है। आप नेताओं आशुतोष और परिवहन मंत्री गोपाल राय ने MCD में बीजेपी की जीत को मोदी लहर नहीं ईवीएम से पैदा की गई लहर बताया। 

loksabha election banner

इससे पहले ईवीएम पर हाल में हुए यूपी, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा चुनाव में भी उंगली उठ चुकी है। मायावती अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, हरीश रावत और अखिलेश यादव सहित कई बड़े राष्ट्रीय नेता भी ईवीएम को विलन के तौर पर पेश कर चुके हैं। ईवीएम पर उठते इतने सवालों के बीच चलिए जाने असल में ईवीएम क्या है? कैसे काम करती है और क्या इसमें टेंपरिंग हो सकती है? 

ईवीएम क्या? 

भारत में चुनावों के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पहले बैलेट पेपर का इस्तेमाल करके चुनाव प्रक्रिया को पूरा किया जाता था। लेकिन 1980 के दशक में प्रायोगिक तौर पर शुरू होने के बाद पिछले करीब दो दशक से लगभग हर चुनाव में ईवीएम का ही इस्तेमाल होता है। बैलेट पेपर के मुकाबले ईवीएम प्रणाली ज्यादा तेज और सुरक्षित मानी जाती है। इसके अलावा पर्यावरण के लिहाज से भी इसके इस्तेमाल को उचित ठहराया जाता है, क्योंकि इसमें पेपर का इस्तेमाल नहीं होता। यही नहीं पेपर बैलेट के मुकाबले ईवीएम के माध्यम को सस्ता भी समझा जाता है। 

ईवीएम को भारत में दो जगहों पर बनाया जाता है - 

1. भारत इलेक्ट्रॉनिक लीमिटेड (बेंगलुरु)। 

2. इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (हैदराबाद)। 

कैसे काम करती है ईवीएम? 

ईवीएम के दो हिस्से होते हैं, बैलेटिंग यूनिट और कंट्रोल यूनिट। बैलेटिंग यूनिट दरअसल वह हिस्सा होता है जो एक मतदाता के सामने होता है। इसमें अलग-अलग प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह होते हैं। उनके सामने बटन होते हैं। मतदाता अपनी पसंद के जिस भी प्रत्याशी को वोट देना चाहता है उसके सामने वाले बटन को दबाता है, जिसके बाद प्रत्याशी के सामने लाइट जलती है और एक बीप की आवाज भी आती है। एक मशीन में अधिकत्तम 16 प्रत्याशियों के नाम हो सकते हैं। 16 से ज्यादा प्रत्याशी होने पर ज्यादा से ज्यादा 4 मशीनें एक साथ लगाई जा सकती हैं यानि 64 प्रत्याशियों तक को ईवीएम से जोड़ा जा सकता है। 

इस बैलेटिंग यूनिट को एक कंट्रोल यूनिट के साथ कनेक्ट किया जाता है। जब भी कोई नया वोटर मतदान के लिए आता है तो सारी जांच प्रक्रिया पूरी करने का बाद चुनाव अधिकारी कंट्रोल यूनिट पर बैलेट बटन को दबाता है, जिससे बैलेटिंग यूनिट एक्टीवेट हो जाती है और मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। एक बार चुनाव अधिकारी द्वारा बैलेट बटन दबाने पर बैलेटिंग यूनिट से एक वोट मिलने के बाद वह फिर से डिएक्टिवेट हो जाती है। एक बार इतने वोट पड़ जाने के बाद मशीन को क्लोज का बटन दबाकर बंद कर दिया जाता है। बाद में टोटल का बटन दबाकर चुनाव अधिकार कुल वोट की जांच करके क्षेत्र में हुए कुल मतदान की जानकारी चुनाव आयोग को देता है। कुल वोट की गिनती करने के बाद मशीन को मतगणना की तारीख तक के लिए सील कर दिया जाता है। 

ईवीएम में टेंपरिंग हो सकती है? 

विपक्ष बार-बार ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगा रहा है तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में ईवीएम टेंपरिंग हो सकती है? क्या सच में आम लोगों के मत के खिलाफ ईवीएम से छेड़छाड़ करके परिणाम लाया जा सकता है। इसका जवाब यह है कि इंसान की बनाई कोई भी मशीन ऐसी नहीं है, जिसके साथ छेड़छाड़ नहीं हो सकती। हां, ईवीएम में इतने कड़े सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं कि इससे छेड़छाड़ लगभग ना मुमकिन है, फिर भी कुछ फीसद गुंजाइश बची रह जाती है। इससे पार पाने के लिए भारत वीवीपैट (वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) का इस्तेमाल करने की तरफ कदम बढ़ा चुका है। 

टेंपरिंग पर अमेरिकी विश्वविद्यालय का शोध 

साल 2010 में अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ईवीएम टेंपरिंग को साबित किया था। उन्होंने ईवीएम से एक डिवाइस जोड़कर अपने मोबाइल से एक टेक्स्ट मैसेज के जरिए इसके रिजल्ट को प्रभावित करके दिखाया था। इसमें उन्होंने कंट्रोल यूनिट की असली डिस्प्ले को बिल्कुल वैसी ही दिखने वाली नकली डिस्प्ले से बदल दिया था, जिसके अंदर उन्होंने ब्लूटूथ माइक्रोप्रोसेसर लगा दिया था। इसके बाद नकली डिस्प्ले ने असली रिजल्ट दिखाने की बजाय, जो रिजल्ट शोधकर्ता दिखाना चाहते थे वही दिखाया। शोधकर्ताओं का कहना था कि इस डिस्प्ले और माइक्रोप्रोसेसर को मतदान और मतगणना के बीच बदला जा सकता है। 

क्यों नहीं हो सकती है ईवीएम टेंपरिंग 

चुनाव आयोग बार-बार कह चुका है कि भारत में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं हो सकती। मशीन का कोड पूरी तरह से एमबेडिड है, उसे न तो निकाला जा सकता है और न ही डाला जा सकता है। पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने भी ऐसी किसी संभावना को नकारा है, हालांकि वे भी चुनाव प्रक्रिया को और ज्यादा पारदर्शी बनाने की हिमायत करते हैं। कुरैशी के अनुसार चुनाव से महीनों पहले राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों की देखरेख में ईवीएम की अच्छे से जांच की जाती है। चुनाव से 13 दिन पहले उम्मीदवारों के नाम तय होने के बाद एक बार फिर प्रत्याशियों या पार्टी प्रतिनिधियों के सामने मशीनों का परीक्षण होता है। जब मशीन ठीक से काम करती हैं तो उनसे दस्तखत भी लिए जाते हैं। 

मशीन की सील पर भी पार्टियों के दस्तखत 

इसके बाद भी मशीन को बूथ पर भेजे जाने से पहले मशीनों को एक नाजुक से पेपर से सील किया जाता है। इस सील पर यूनीक सिक्योरिटी नंबर होता है। यह पेपर बहुत नाजुक होता है और हल्की सी छेड़छाड़ का भी पता चल जाता है। मशीन पर सील लगाने के बाद हर उम्मीदवार या पार्टी प्रतिनिधि के उस पर दस्तखत कराए जाते हैं। 

मतदान केंद्र पर गहन जांच 

मतदान केंद्र पर भी मतदान शुरू होने से पहले करीब एक घंटे तक वोटिंग की मॉक ड्रिल की जाती है। इस दौरान पोलिंग मशीन पर सभी बटनों को दबाते हुए 60-100 वोट डाले जाते हैं। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मशीन में कोई भी दो बटन एक ही पार्टी के पक्ष में मतदान न कर रहे हों। इसके अलावा किसी पार्टी के लिए कोई खास बटन तय नहीं है। क्षेत्र विशेष में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के नामों के आधार पर अल्फाबेटिक ऑर्डर से उनके नाम लिखे होते हैं। इस तरह से कभी निर्दलीय, कभी क्षेत्रीय तो कभी बड़ी पार्टी के उम्मीदवारों के नाम सबसे ऊपर होते हैं। 

क्या मतदान के बाद हो सकती है टेंपरिंग 

मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार दूसरा तरीका मशीन की मेमोरी को बदलने का है। उनके बताए गए दोनों तरीके इसलिए धराशायी हो जाते हैं, क्योंकि वोटिंग के बाद मशीनों को कड़ी त्रिस्तरीय सुरक्षा के बीच स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है। यहां बड़े से बड़े वीवीआईपी को भी एंट्री नहीं मिलती है। ऐसे में डिस्प्ले या मेमोरी बदलने की गुंजाइश लगभग खत्म हो जाती है। ईवीएम को मतदान केंद्र से स्ट्रांग रूम तक ले जाने के दौरान ऐसा हो सकता है, लेकिन इतने कम समय में ऐसा काम वह भी जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था को भेदते हुए आसान नहीं है। चुनावों में इतनी बड़ी संख्या में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम की मेमोरी या डिस्प्ले बदलना और उन्हें ब्लूटूथ डिवाइस से कंट्रोल करना एक असंभव जैसा काम लगता है। 

यह भी पढ़ें: दिल्ली नगर निगम में खिला कमल, कांग्रेस और आप में खलबली


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.