आधी आबादी पर जबरन थोपा जा रहा फैसला, क्या महिलाओं को अपने शरीर के लिए खुद निर्णय लेने का अधिकार नहीं...!
महिलाओं से गर्भपात का अधिकार छीनने का अधिकार कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। कई बार परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि गर्भपात करना मजबूरी हो जाता है। अमेरिका में भले गर्भपात पर रोक लग गई हो लेकिन भारत जैसे देशों में अभी इसकी इजाजत है।
नई दिल्ली, डा. मोनिका शर्मा। अमेरिका में हाल में आया सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है। सर्वोच्च अदालत ने महिलाओं के गर्भपात के अधिकार को खत्म कर दिया है। गर्भपात पर प्रतिबंध लगाए जाने का यह फैसला आने के बाद अमेरिकी समाज में इसे लेकर प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। आमजन आक्रोश जता रहे हैं कि यह कहीं न कहीं 16.75 करोड़ अमेरिकी महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन है। आधी आबादी पर जबरन थोपा जा रहा निर्णय है।
दरअसल, किसी भी महिला या उसके परिवार द्वारा गर्भपात करवाने का फैसला सिर्फ बच्चा न चाहने की वजह से ही नहीं लिया जाता। कई बार परिस्थितियां मां बनने जा रही महिला और गर्भस्थ बच्चे के अस्वस्थ होने के हालात से भी जुड़ी होती हैं। ऐसे में वहां आम लोगों का भी मानना है कि महिलाओं को अपने शरीर के लिए खुद निर्णय लेने का अधिकार मिलना ही चाहिए।
दुनिया के कई परंपरागत माने जाने वाले देशों में भी विशेष परिस्थितियों में महिलाओं को गर्भपात का कानूनी हक मिला हुआ है। हमारा देश भी ऐसे ही मुल्कों की फेहरिस्त में शामिल है। गौरतलब है कि हमारे यहां विशेष परिस्थितियों में चिकित्सक से अनुमति लेकर 20 सप्ताह तक के गर्भ का गर्भपात करवाया जा सकता है। मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के तहत चिकित्सकों को कुछ विशिष्ट पूर्व निर्धारित स्थितियों में गर्भपात करने की अनुमति होती है।
इतना ही नहीं दुष्कर्म या व्यभिचार की शिकार बनने वाली महिलाओं के लिए तो गर्भपात कराने की सीमा को बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है। अगर किसी स्त्री का जीवन सहेजने के लिए गर्भपात नहीं किया जाता है, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के अंतर्गत अपराध माना जाता है।
चिंतनीय है कि गर्भपात न करवाने की कानूनी बाध्यता महिलाओं की सेहत के साथ खिलवाड़ करने वाली साबित होगी। अमेरिका में इस कानूनी कठोरता के चलते महिलाओं में न केवल गर्भनिरोधक गोलियों को खाने का चलन बढ़ सकता है, बल्कि असुरक्षित तरीके से गर्भपात करवाने का मार्ग चुनने वाली महिलाओं का आंकड़ा भी बढ़ेगा। यकीनन दोनों ही स्थितियां स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा जोखिम बन जाएंगी।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि हर साल दुनिया भर में गर्भावस्था के 12 करोड़ से कुछ अधिक मामले अनियोजित होते हैं। ऐसे में स्त्रियों के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े सबसे अहम निर्णय को कानूनी प्रक्रियाओं और बंदिशों द्वारा संचालित करने के हालात बनाना वाकई चिंतनीय है। इस तरह की कानूनी सख्ती असुरक्षित गर्भपात के मामलों में इजाफा ही करेगी।
(लेखिका सामाजिक मामलों की जानकार हैं)