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मुनि तरुण सागर ने जलेबी खाते हुए सुना प्रवचन, घर जाकर मां से बोले- मुझे भगवान बनना है

मुनि तरुण सागर ने जलेबी खाते हुए प्रवचन सुना। उन्होंने घर जाकर मां से बोला- मुझे भगवान बनना है।

By Arti YadavEdited By: Published: Sun, 02 Sep 2018 07:55 AM (IST)Updated: Sun, 02 Sep 2018 05:06 PM (IST)
मुनि तरुण सागर ने जलेबी खाते हुए सुना प्रवचन, घर जाकर मां से बोले- मुझे भगवान बनना है
मुनि तरुण सागर ने जलेबी खाते हुए सुना प्रवचन, घर जाकर मां से बोले- मुझे भगवान बनना है

दमोह (नईदुनिया)। विश्वभर में अपने कड़वे प्रवचन के लिए विख्यात राष्ट्रीय संत तरुण सागर को कभी जलेबी बहुत पसंद थी। वह रोजाना अपने गांव गुहंची से स्कूल जाते समय रास्ते में एक दुकान से जलेबी खाते थे। 13 वर्ष की आयु में इसी दुकान पर उनका धर्म के प्रति लगाव बढ़ा। एक दिन वह जलेबी खा रहे थे, तभी उनके कानों में आचार्यश्री पुष्पदंत सागर के प्रवचन सुनाई दिए। उन प्रवचनों में उन्होंने सुना कि इंसान चाहे तो अपने कर्मो से भगवान बन सकता है। फिर क्या था, मन में भगवान बनने की इच्छा लिए घर पहुंचे। उस अबोध बालक पवन ने माता-पिता के सामने अपनी इच्छा प्रकट कर दी। परिजन ने उन्हें रोकने के कई प्रयास किए, लेकिन अंतत: पवन जैन नहीं रुके और आचार्य श्री पुष्पदंत से दीक्षा लेकर तरुण सागर बन गए।

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मध्य प्रदेश के दमोह के तेंदूखेड़ा ब्लॉक में आने वाले छोटे से गांव गुहंची में 26 जून 1967 में प्रताप चंद जैन के यहां एक बेटे का जन्म हुआ, जिसे घर में मुन्ना और स्कूल के लिए पवन नाम दिया गया। तरुण सागर चार भाई व तीन बहनें हैं। वह चौथे नंबर के पुत्र थे।

सिर्फ तीन बार आए गांव और धर्मशाला में रुके 
अपने ब्रह्मचर्य जीवन में मुनिश्री केवल तीन बार ही अपने गांव आए। तीनों बार वह गांव की धर्मशाला में रुके। उनके बड़े भाई बृतेश जैन ने बताया कि जब उन्होंने आचार्यश्री पुष्पदंत महाराज से दीक्षा ली थी, उस समय अबोध बालक होने के कारण उन्हें तरुण सागर नाम दिया गया था।

20 साल में मुनि बने 
13 साल की उम्र में एलक के रूप में उन्होंने दीक्षा ली। 20 वर्ष की उम्र में उन्हें दिगंबर मुनि की उपाधि मिली। 33 साल की उम्र में उन्होंने लाल किले से देश को संबोधित किया। 38 वर्ष की उम्र में उन्होंने भारतीय सेना को संबोधित किया था। बेंगलुरु के राजभवन, मप्र की विधानसभा में भी उनका संबोधन हुआ था।

10 दिन छोड़ जाइए, हो सकता है बचपना हो 
तरुण सागर की बहन अनीता जैन का कहना है कि तरुण सागर ने जब मुनि बनने की इच्छा जाहिर की तो माता-पिता ने खूब समझाया, लेकिन वह नहीं माने। दोनों पवन को लेकर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर महाराज के पास पहुंचे और उनसे कहा कि वह उनके बेटे पवन से कह दें कि दीक्षा के लिए वह अभी छोटा है। पुष्पदंत महाराज ने कहा कि पवन को यहां दस दिन तक रहने दो, हो सकता है यह उसका बचपना हो और बाद में निर्णय बदल जाए, पर ऐसा नहीं हुआ।

जैन मुनि तरुण सागर की अंतिम यात्रा 
अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले 51 वर्षीय जैन मुनि तरुण सागर महाराज ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। कृष्णा नगर स्थित राधेपुरी में जैन मंदिर के पास महाराज ने अपने चातुर्मास स्थल पर शनिवार सुबह 3 बजकर 18 मिनट पर देह त्याग दी। महाराज काफी लंबे समय से तेज बुखार और पीलिया की बीमारी से जूझ रहे थे। देह त्यागने से एक दिन पहले महाराज ने औषधि त्याग दी थी। अन्य जैन मुनियों के कहने पर गत शुक्रवार को उन्हाेंने थोड़ा बहुत आहार लिया था।


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