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इनसाइड स्टोरी: पर्दे पर कितनी बदल गई है भाई-बहन की जोड़ी, आप भी डालिए एक नजर

हिंदी सिनेमा हमेशा से भाई-बहन की जोड़ी को बड़ी खूबसूरती से दर्शाता आया है। बदलते वक्त के साथ इनके रिश्ते में नए रंग तो जुड़े मगर उसकी मिठास आज भी वैसी ही है...

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 04:08 PM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 04:08 PM (IST)
इनसाइड स्टोरी: पर्दे पर कितनी बदल गई है भाई-बहन की जोड़ी, आप भी डालिए एक नजर
इनसाइड स्टोरी: पर्दे पर कितनी बदल गई है भाई-बहन की जोड़ी, आप भी डालिए एक नजर

स्मिता श्रीवास्तव। फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में देव आनंद की बहन जसबीर उर्फ जैनिस जैसा बड़ा और केंद्रीय भूमिका वाला किरदार निभाने वाले कलाकार को लेकर काफी संशय था। देव आनंद ने इस किरदार के लिए भारतीय दिखने वाली और विदेश में पली-बढ़ी नवोदित अभिनेत्री को कास्ट करने के बारे में सोचा, जो अपने रहन-सहन और पहनावे को लेकर दुनिया से बेफिक्र हो। तब एक पार्टी में उनकी मुलाकात मिस एशिया का खिताब जीतने वाली जीनत अमान से हुई। उन्हें जीनत में अपनी जैनिस नजर आई। इस फिल्म ने जीनत को पहचान दी। इसी फिल्म का भाई-बहनों की भावनाओं को उकेरता गाना ‘फूलों का तारों का सबका कहना है’ हर रक्षाबंधन पर जरूर सुनाई देता है। यह किरदार हिंदी सिनेमा में बहन के बदलते किरदार की बानगी था जो घिसी-पिटी लीक से बेहद अलग था। वरना बहनों को अबला दिखाने के साथ अगवा करना, हत्या और जबरदस्ती करना जैसे घटनाक्रम या चंद दृश्यों तक सीमित कर दिया जाता था।

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सैकड़ों कहानियों का रिश्ता

सिल्वर स्क्रीन पर बेचारी, दुर्बल और बेसहारा की तरह चित्रित इन बहनों का वक्त के साथ न सिर्फ चित्रण बदला बल्कि बहन की भूमिका निभाने को लेकर अभिनेत्रियों की हिचक भी मिटी। ‘फिजा’ में ऋतिक रोशन और करिश्मा कपूर, ‘जोश’ में शाह रुख खान और ऐश्वर्या राय बच्चन, ‘काय पो छे’ में सुशांत सिंह राजपूत और अमृता पुरी, ‘दिल धड़कने दो’ में प्रियंका चोपड़ा-रणवीर सिंह की ऑनस्क्रीन भाई-बहन की जोड़ी काफी पसंद की गई। बड़े कलाकारों के ऑनस्क्रीन भाई-बहन बनने को लेकर ‘जोश’ के निर्देशक मंसूर खान कहते हैं, ‘मुझे ‘जोश’ का यह आइडिया पसंद आया कि भाई-बहन ही एक-दूसरे के लिए और एक-दूसरे के साथ हैं। लड़की का भाई उसके प्रेमी से रंजिश रखता है। इस किरदार को आमिर खान करना चाहते थे हालांकि शाह रुख खान ही मेरे दिमाग में थे। उस समय ऐश्वर्या ने सिर्फ एक फिल्म की थी। मैंने उन दोनों को भाई-बहन के तौर पर इसलिए कास्ट किया क्योंकि मेरा मानना है कि कहानी अच्छी हो तो उन्हें आप जिस किरदार में कास्ट करें, उन्हें पसंद किया जाएगा। ‘जोश’ में भाई -बहन की भूमिका कैसी होगी? उनकी बॉडी लैंग्वेज कैसी होगी? यह सब मेरे दिमाग में था। कहानी गोवा में थी इसलिए हमने उसे समकालीन रखा था। हमने उन्हें दोस्त की तरह दिखाया। अगर हम रुढ़िवादी परिवार दिखाते तो उस तरह काम करना दिखाते। बहरहाल, भाई-बहन का रिश्ता ऐसा है जिस पर सैकड़ों कहानियां आ सकती हैं।’

उभरकर आया नया पहलूू

‘जोश’ फिल्म के बाद शाह रुख और ऐश्वर्या राय बच्चन ‘मोहब्बतें’ में इश्क करते दिखे। ‘दिल धड़कने दो’ में एक-दूसरे के मन की बात समझने वाले भाई-बहन का किरदार निभाने वाले रणवीर सिंह और प्रियंका चोपड़ा ‘बाजीराव मस्तानी’ में पति-पत्नी की भूमिका में अपनी अमिट छाप छोड़ने में कामयाब रहे। बहराल फिक्शन के साथ पिछले कुछ अर्से में असल बहनों के संघर्ष को भी सिनेमा के पर्दे पर उतारा गया है। इनमें ‘भाग मिल्खा भाग’, अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की बहन की जिंदगानी पर बनी ‘हसीना पार्कर’, पाकिस्तान की जेल में बंद अपने भाई सरबजीत की रिहाई को लेकर संघर्षरत दलबीर कौर की कहानी ‘सरबजीत’ आदि उन बहनों की फिल्में रहीं जो असल जिंदगी में अपने भाई की जिंदगी का सपोर्ट सिस्टम बनीं। इन कहानियों में बहनों का एक नया पहलू उभरकर आया। इस संबंध में फिल्म ‘सरबजीत’ के निर्देशक ओमंग कुमार कहते हैं, ‘ऐसी कहानियां समाज से ही निकलती हैं। सरबजीत एक बहन की अपने भाई को पड़ोसी देश से रिहा करवाकर लाने की जिद पर थी। भाई-बहन के ऐसे लगाव की कहानी पहले कभी नहीं सुनी गई। यह निश्चित तौर पर प्रेरणादायक भी है। उन्हें बनाने में फिल्ममेकर की दिलचस्पी होना स्वाभाविक है। ऐसी कहानियों को पर्दे पर और लाने की जरूरत है।

जोर सशक्त चित्रण पर

‘भाग मिल्खा भाग’ में मिल्खा सिंह की बहन की भूमिका दिव्या दत्ता ने निभाई थी। यह उनके यादगार किरदारों में से एक है। इस किरदार को लेकर दिव्या कहती हैं, ‘मेरे लिए किरदार सबसे अहम होता है। पुरानी फिल्मों में एक ही कलाकार को टाइपकास्ट कर दिया जाता था। अब वो दौर नहीं रहा। अब कहानियां भी अलग तरीके से लिखी जा रही हैं। ‘भाग मिल्खा भाग’ मेरे कॅरियर का यादगार रोल रहेगा। कई भाई-बहनों को इस फिल्म ने जोड़ने का भी प्रयास किया था। अब हिंदी सिनेमा भाई-बहनों के सशक्त चित्रण पर जोर देने लगा है।’


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