जानें ग्रांड ओल्ड लेडी की वजह से क्यों सुर्खियों में आया है गुजरात का अलंग, क्या है यहां खास
भारतीय नौसेना के गौरवमयी इतिहास का हिस्सा रहा आईएनएस विराट जहाजों की कब्रगाह के नाम से मशहूर अलंग के अपने अंतिम सफर पर निकल चुका है।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। आईएनएस विराट की वजह से गुजरात का अलंग शिप यार्ड एक बार फिर से सुर्खियों में है। दुनिया का ये सबसे बड़ा शिप ब्रेकिंग यार्ड है। यहां पर छोटे से लेकर विशाल जहाजों को काटा जाता है और इससे निकली चीजीं को बेचा जाता है। इस वजह से यहां पर दूर तक लोहे का कबाड़ और विशाल जहाज कटने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते नजर आते हैं। आईएनएस विराट को भी यहां पहुंचने के बाद हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा। भारतीय नौसेना का गौरव रहा ये एयरक्राफ्ट केरियर दुनिया में सबसे लंबी अवधि तक सेवा देने वाला जहाज रहा है। कभी इस पर 1500 नौसना कर्मियों का बसेरा हुआ करता था। 1959 में ये जहाज ब्रिटेन की रॉयलनेवी का हिस्सा बना था। 1983 में इसको रिटायर कर दिया गया और फिर 1987 में इसको भारत ने खरीद लिया था।
इसको इसकी विशालता की वजह से विराट नाम दिया गया था। 12 मई 1987 को इसे औपचारिक रूप से भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था 23 जुलाई 2016 को इसको सेवा से बाहर कर 6 मार्च 2017 को इसको डिकमीशंड कर दिया गया। इस लिहाज से इसकी पूरी सेवा की अवधि करीब 56 वर्ष की रही है। यही वजह है कि इसको ग्रांड ओल्ड लेडी कहा जाता है। इस जहाज के कमांडिंग ऑफिसर के रूप में एडमिरल माधवेंद्र सिंह, एडमिरल अरुन प्रकाश, एडमिरल एनके वर्मा और एडमिरल डीके जोशी ने अपनी सेवाएं दी और बाद में ये नौसेना प्रमुख बने। इस जहाज के गौरवमयी इतिहास को शब्दों में समेटना काफी हद तक मुश्किल है। मुंबई के चर्चित गेटवे ऑफ इंडिया से कुछ ही दूरी पर ये जहाज काफी समय से लंगर डाले हुए शांत खड़ा था। लेकिन अब ये यहां से जा चुका है।
इस जहाज को पहले म्यूजियम में बदलने का फैसला लिया गया था लेकिन ये संभव नहीं हो पाया। मेटल स्क्रेप ट्रेड कॉपरपोरेशन लिमिटेड द्वारा पिछले माह की गई एक ऑक्शन में इसको श्रीराम ग्रुप ने 38.54 करोड़ रुपये में खरीदा था। अब अलंग इसकी कब्रगाह बन जाएगा। अलंग को यूं भी जहाजों की कब्रगाह बुलाया जाता है। इसकी एक वजह ये भी है कि समुद्र पर राज करने वाले दुनिया के आधे जहाजों को यहां पर काटा जाता है। यहां पर आने वाले विशाल जहाजों को देखकर नहीं लगता है कि कभी इन्होंने समुद्र का सीना चीरकर हजारों किमी का सफर किया होगा। जब भी कोई जहाज अलंग की राह पकड़ता है तो वो उसका अंतिम सफर ही होता है।
यहां पर खड़ी विशाल क्रेन, स्टील कटर की मदद से जहाजों को काटकर इनमें इस्तेमाल की गई हर एक चीज को अलग कर दिया जाता है। कहा जाता है कि यहां पर केवल जहाजों के कटने की ही आवाज आती है। अलंग शिप ब्रेकिंग यार्ड की बदौलत यहां पर हजारों लोगों की रोजी-रोटी चलती है। हालांकि बीते कुछ समय में पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी इसी तरह के शिप ब्रेकिंग यार्ड वजूद में आए हैं लेकिन न तो वो यहां की तरह विशाल हैं और वाली कोई बात उनमें है। लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि इन्होंने कुछ प्रभाव तो यहां के धंधे पर डाला ही है।
31 दिसंबर 2005 को यहां पर फ्रांस के एयरक्राफ्ट केरियर Clemenceau को काटने के लिए लाया गया था। लेकिन यहां पर सुविधाओं के अभाव और टॉक्सिक वेस्ट को देखते हुए वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने इसको यार्ड में आने से रोक दिया था, जिसके बाद इसको ब्रिटेन के शिप ब्रेकिंग यार्ड ले जाया गया था। ये एयरक्राफ्ट केरियर 1961 से 1997 तक फ्रांस नौसेना की सेवा में था।
खंभात की खाड़ी स्थित गुजरात के भावनगर से करीब 50 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है ये अलंग शिप ब्रेकिंग यार्ड। यहां पर शिप ब्रेकिंग के काम में करीब 100 से अधिक यूनिट लगी हैं। यहां पर काटने के बाद जहाज से निकाली गई कई चीजों को दोबारा बेचा जाता है। हालांकि कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन का प्रभाव यहां पर भी साफतौर पर देखने को मिला था। यहां पर जहाजों के कटने की आवाज थम गई थी। यहां पर हर रोज ही एक नया जहाज कटने के लिए आता है और साल भर में करीब 350 से अधिक शिप रिसाइकिल किए जाते हैं। हालांकि अनलॉक की प्रक्रिया के दौरान यहां पर दोबारा काम शुरू हो चुका है, लेकिन पहले की अपेक्षा यहां पर काम करने वाले लोग कम ही बचे हैं। यहां पर काम करने वालों की हेल्थ इमरजेंसी के लिए यहां पर मल्टीस्पेशिलिटी अस्पताल भी बना है। जिसको गुजरात मेरिटाइम बोर्ड ने तैयार किया है और इंडियन रेडक्रॉस सोसाएटी यहां पर सेवा देती है।