नई दिल्ली, कुमार जितेंद्र ज्योति। आजादी के 75 साल...देश-विभाजन के भी 75 साल। आजादी के साथ देश-विभाजन को याद करना इसलिए भी मौजूं है क्योंकि उससे देश की बुनियाद हिल गई थी। इन्फ्रास्ट्रक्चर का हर गणित बिखर गया था। रेल का तो 40% हिस्सा पाकिस्तान चला गया था। विकास के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत होना पहली शर्त है, लेकिन आजादी के समय इन्फ्रास्ट्रक्चर के हर पैमाने पर भारत काफी पीछे था। आजादी के बाद भारत ने इस ओर ध्यान दिया, जिसका सुफल है कि आज हम दुनिया के शीर्ष देशों में स्थान रखते हैं। भारत का रोड नेटवर्क अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा है। भारतीय रेल के अनुसार (एक मैनेजमेंट के तहत) हमारा रेल नेटवर्क भी दूसरा सबसे बड़ा है। हमारी बिजली उत्पादन क्षमता चीन और अमेरिका के बाद तीसरी सबसे बड़ी हो गई है। सदियों से समुद्र के रास्ते व्यापार करने वाले भारत के पास आज 13 बड़े और करीब 200 छोटे बंदरगाह हैं। सात दशक पहले (1951) भारतीय बंदरगाहों की कार्गो हैंडलिंग क्षमता महज दो करोड़ टन थी, आज यह 256 करोड़ टन सालाना तक पहुंच गई है। सरकार ने 2020 में नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) की घोषणा की थी। इसके तहत 2025 तक इन्फ्रा सेक्टर में 111 लाख करोड़ रुपए निवेश किए जाएंगे। वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में भी सरकार ने ट्रांसपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर देते हुए करीब दो लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

सड़क और बिजली- किसी भी देश की बुनियाद यही हैं। और, 75 साल पहले जाएं तो करीब 30 करोड़ की आबादी और 32.87 लाख वर्ग किलोमीटर वाले देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर केवल 40 हजार किलोमीटर सड़क थी और महज 1362 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता। माना जाता है 1 प्रतिशत सड़क का विस्तार हो तो उत्पादकता 0.25 प्रतिशत बढ़ जाती है। हो भी क्यों नहीं! जहां पहली बार नई सड़क पहुंची हो या कोई पुराना-जर्जर रास्ता सड़क के रूप में तैयार हुआ हो, वहां फर्क साफ दिख जाता है। अचानक घर बसने लगते हैं, बाजार निखरने लगता है, उद्योगों की संभावना बनने लगती है, अस्पताल की जरूरत दिखने लगती है, गाड़ियों की आवाजाही होने लगती है, बिजली समेत जरूरत की सारी सुविधाएं जुड़ने लगती हैं।

सड़क के इसी महत्व को समझ कर हमने 75 साल में अपना रोड नेटवर्क 150 गुना कर लिया है। सबसे तेज गति से सड़क बनाने का रिकॉर्ड भारत अपने नाम कर चुका है। रोड नेटवर्क के मामले में हम दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं। भारत से तीन गुना बड़े अमेरिका में 68.03 लाख किमी लंबी सड़क है और हम 2018-19 के रिकॉर्ड के मुताबिक 63.31 लाख किलोमीटर सड़क बना चुके थे। दूसरी तरफ, इन 75 वर्षों में देश की आबादी करीब चार गुना हुई तो भारत ने बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 403 गीगावाट कर ली, मतलब आजादी के समय के मुकाबले 317 गुना। प्रति व्यक्ति बिजली की खपत जो 1947 में 16.4 यूनिट थी, अब 1208 यूनिट पहुंच चुकी है। हम नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार जैसे पड़ोसियों को भी 8000 मिलियन यूनिट तक बिजली बेचते हैं। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं, “बिजली हमारे घर से बाहर तक की बुनियाद है। आजादी से अबतक इन्फ्रास्ट्रक्चर के माइलस्टोंस की बात करें तो हाई-वे, रेल, एयरपोर्ट जैसी दिखने वाली चीजों से ज्यादा बिजली ने हमारी जिंदगी बदली है। प्रति व्यक्ति खपत ही भारत की बुलंदी दिखाने के लिए काफी है।”

आबादी के मुताबिक इन्फ्रा पर काम

1947 से अबतक भारत की विकास यात्रा के 75 वर्षों में सड़क और बिजली को बुनियाद बताते हुए मशहूर अर्थशास्त्री भारत भूषण कहते हैं, “आजादी के तत्काल बाद हमारे पास उतनी बड़ी आबादी को संभालना बड़ा काम था। इसके लिए इन्फ्रा डेवलपमेंट के जो शुरुआती काम हुए, उन्हें आज हम नवरत्न-महारत्न कंपनियों के रूप में देखते हैं। वैसे, इन्फ्रा डेवलपमेंट का सीधा अर्थ है सड़क और बिजली। सड़क बनेगी तो मार्केट, घर, शॉपिंग, इंडस्ट्री सभी का विकास होगा और लेबर फोर्स का उपयोग होगा। यह सब होगा, तभी स्किल्ड फोर्स तैयार भी होगी। इसी तरह इन सभी के लिए बिजली की उपलब्धता जरूरी है। आज हम बिजली में 99% पहुंच रखते हैं और सड़कों का जाल तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए, जीडीपी का असल विकास अब दिखेगा। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में औद्योगिकीकरण के पीछे सड़क-बिजली ही असल वजह है। यह दोनों हुआ तो मकान, मार्केट, बाजार आदि का विकास हुआ।”

पिछली शताब्दी में शहरी आबादी तेजी से बढ़ी। गांवों में अब जाकर सड़क-बिजली जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी हो रही हैं। इसलिए शहरी जनसंख्या में बढ़ोत्तरी पहले के मुकाबले स्थिर हो रही है। जनसंख्या के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो 1962 में शहरी आबादी में अचानक तेजी देखी गई। 1961 के मुकाबले यह 3.06 प्रतिशत बढ़ी थी। इसके बाद बड़ा उछाल 1972, 1973 और 1974 में आया, जब पिछले साल के मुकाबले शहरी आबादी क्रमश: 3.94%, 3.95% और 3.96% बढ़ी।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह शहरी आबादी की जन्म-दर वृद्धि से नहीं हुआ, बल्कि ग्रामीण आबादी ने शहरों की ओर पलायन में तेजी दिखाई। शहरी आबादी बढ़ने का यह ट्रेंड 1980 से रिवर्स होने लगा। एक समय यह वृद्धि दर 2.54% तक आ गई। फिर, एक बार 2002 में अचानक 2001 के मुकाबले शहरी आबादी में 2.85 प्रतिशत तेजी दिखी। इसके बाद शहरी आबादी बढ़ने की दर 2.3 प्रतिशत के आसपास रही है, जो जनसंख्या वृद्धि दर के करीब है। 1960 में शहरी आबादी महज 17.92 प्रतिशत थी, वहीं 2021 में 35.39% जनसंख्या शहरी है। वर्ल्ड बैंक के डाटा के अनुसार, 2021 में भारत की शहरी आबादी 49.31 करोड़ थी।

फोर्ब्स 30 अंडर 30 में शामिल रहे विख्यात सामाजिक उद्यमी और डेक्सटेरिटी ग्लोबल के संस्थापक शरद विवेक सागर कहते हैं, “गांवों तक पहले सड़क-बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं बहुत कम पहुंची थीं, इसलिए शहरों की ओर पलायन स्वाभाविक था। जहां-जहां ऐसी सुविधाएं तेजी से बढ़ीं, उन इलाकों का शहरीकरण भी हुआ। आबादी के हिसाब से बाजार, अस्पताल, उद्योग आदि का विस्तार हुआ। उदाहरण के तौर पर दिल्ली से सटा नोएडा, गुड़गांव हो या फिर फरीदाबाद; या इसी तरह गांधीनगर-अहमदाबाद, जहां भी सड़क-बिजली का इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा, उसका विस्तार तेजी से हुआ। खेत-किसान के गांवों का शहरीकरण तेजी से होता गया। अब पिछले कुछ वर्षों में जिस गति से देश में सड़कों का नेटवर्क बढ़ा है, उससे बहुत जल्द विकास की अलग गति दिखेगी।”

उत्पादकता में सबसे प्रभावी सड़क

अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) दुनिया के तमाम देशों का रिकॉर्ड जुटाकर उसपर काम करती है, जिसमें से कुछ डाटा को वह द वर्ल्ड फैक्टबुक के रूप में भी रखती है। यह डाटा इस बात की तसदीक करता है कि भारत रोड नेटवर्क के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। खास बात यह है कि एजेंसी ने अमेरिका के रोड नेटवर्क का डाटा 2012 का ही सार्वजनिक किया है, जबकि भारत का वर्ष 2021 का दिख रहा है। इस डाटा के अनुसार, 65.86 लाख किमी के साथ अमेरिका पहले, 63.71 लाख किमी के साथ भारत दूसरे और 52 लाख किमी रोड नेटवर्क के साथ चीन तीसरे नंबर पर है। क्षेत्रफल में अमेरिका और चीन हमसे करीब 3 गुना बड़े हैं, इस नजरिए से हम रोड नेटवर्क के घनत्व के मामले में उनसे आगे हैं।

भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के परिवहन अनुसंधान विंग की ओर से प्रकाशित ‘बुनियादी सड़क सांख्यिकी’ ने वर्ष 2018-19 में भारत का कुल रोड नेटवर्क 63,31,757 किलोमीटर बताने के साथ इस मामले में खुद को दुनिया में नंबर 2 माना है। इस रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक मीट्रिक्स GVA में योगदान के मामले में परिवहन के अन्य क्षेत्रों से सड़क काफी आगे है। वर्ष 2019-20 के GVA में परिवहन क्षेत्र का कुल योगदान 4.58% है, जिसमें अकेले 3.06 प्रतिशत का योगदान सड़क का है। रेलवे की हिस्सेदारी 0.74%, हवाई परिवहन का 0.12% और जल परिवहन का 0.08% है। 75 साल पहले जिस देश में कुल सड़क ही 40 हजार किलोमीटर थी, वहां हम अब दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं।

सड़कों के इस विशाल नेटवर्क में पिछले कुछ वर्षों की गति का सबसे बड़ा योगदान है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार अप्रैल 2014 में एनएच की लंबाई 91,287 किलोमीटर थी, जो दिसंबर 2021 तक 1.41 लाख किलोमीटर तक हो गई। हर दिन जहां 12 किलोमीटर एनएच निर्माण होता था, वह 37 किलोमीटर प्रतिदिन तक पहुंच चुका है। 24 घंटे में ढाई किलोमीटर लंबा 4 लेन हाइवे तैयार करना भी रिकॉर्ड है और 18 घंटे में 25.54 किमी सिंगल लेन पिच रोड तैयार करना भी उपलब्धि है।

पवन ऊर्जा में भी दुनिया में नंबर- 4

ग्लोबल डाटा के क्षेत्र में अग्रणी इनरडाटा के अनुसार, कुल ऊर्जा खपत में भी भारत 10 साल से तीसरे नंबर पर है। वर्ष 1990 में यह छठे नंबर पर था और 1995 में पांचवें नंबर पर आ गया। 12 साल बाद 2007 में इसे चौथा और 2012 में तीसरा स्थान हासिल हुआ। तब से यह लगातार अपनी जगह पर कायम है। चीन पहले और अमेरिका दूसरे स्थान पर है।

उत्पादन क्षमता में भी फिलहाल चीन और अमेरिका ही पहले और दूसरे स्थान पर हैं। भारत 2014 से तीसरे स्थान पर है। 2020 तक के यूएस इनर्जी इनफॉरमेशन एडमिनिस्ट्रेशन के आंकड़े बताते हैं कि चीन 2217.93 मिलियन किलोवाट उत्पादन क्षमता रखता है, जबकि अमेरिका 1143.27 और भारत 432.77 मिलियन किलोवाट।

नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं, “भारत को आजादी के समय महज 1362 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता मिली थी, लेकिन आज हम शहर से गांव तक 99% से ज्यादा बिजली उपलब्धता की गारंटी देने की स्थिति में हैं। पारंपरिक स्रोतों के साथ नई तकनीकों के उपयोग और गैर-पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों के विकास में भी हम काफी आगे निकल चुके हैं। यह भारत की मजबूत बुनियाद का पर्याय है।”

भारत आज कुल क्षमता का करीब 40.1% यानी 157.32 गीगावाट ऊर्जा गैर-जीवाश्म आधारित उत्पादन कर रहा है। यही कारण है कि भारत में गैर-परंपरागत ऊर्जा क्षेत्र को 2020-21 के दौरान 797.21 मिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) हासिल हुआ। आजादी के बाद से करीब 2010 तक कोयले को लेकर गतिरोध और इसके वैश्विक संकट के साथ कार्बन उत्सर्जन जैसे मानकों के मद्देनजर देश में 30 नवंबर 2021 तक 14 राज्यों में 37.92 गीगावाट की संचयी क्षमता वाले 52 सौर पार्कों को मंजूरी दी जा चुकी है। सबसे बड़ी पवन ऊर्जा क्षमता वाले देशों की सूची में चौथा स्थान हासिल करने वाला भारत अब पवन सौर हाइब्रिड नीति बनाकर पड़ोसी देशों से बहुत आगे की सोच दिखा चुका है।

तबाही लाने वाली बाढ़ को बांधों के जरिए नियंत्रित कर हम पनबिजली उत्पादन में अग्रणी हो रहे हैं। हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स से ऊर्जा उत्पादन की हमारी क्षमता 4.8 गीगावाट पहुंच चुकी है। इसी तरह हम सूर्य से ऊर्जा ग्रहण करने वाले प्रोजेक्ट खड़े कर 40.1 गीगावाट बिजली ले रहे हैं।

आईटी इन्फ्रा ने बदल डाली तकदीर

75 साल पहले जिस देश के रेल यातायात का 40 प्रतिशत हिस्सा दूसरे देश में चला गया हो, उसका इस तरह खड़ा होना एक बड़ी उपलब्धि है। आज 1.26 लाख किलोमीटर लंबे रेल ट्रैक के साथ हम एशिया में सबसे आगे और दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं। हेल्थ इन्फ्रा की बात भी करें तो हमारे पास इस बात के अनेक प्रमाण हैं कि कोरोना के दौरान भारत मिसाल बना। चाहे वैक्सीन बनाना हो या दूसरे देशों को भेजना हो।

विश्वप्रसिद्ध सुपर 30 के संचालक आनंद कुमार कहते हैं, “यहां रहते हुए पता नहीं चलता था, लेकिन जब विदेश से लेक्चर देकर लौटता था तो नई दिल्ली या मुंबई एयरपोर्ट उतरने पर भी 20-25 साल पहले अच्छा फील नहीं होता था। लगता था कि कहां आ गए! और अब देखिए कि हम हांगकांग और बैंकॉक से दिखने में कहीं पीछे नहीं हैं। अब मुंबई सिर्फ फिल्मों की बदौलत नहीं, कई तरह की इंडस्ट्री के कारण बहुत आगे बढ़ गई है। दरअसल, अब ज्ञान की रोशनी ने हमारी सोच बदली और उस सोच के कारण ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा हुआ है कि हम सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में दुनिया के सिरमौर हैं। बेंगलुरू, हैदराबाद, गुड़गांव, नोएडा, पुणे आदि के जरिए देश में धन आने लगा। यह एक उदाहरण है कि जहां ज्ञान और टेक्नोलॉजी का विकास होगा, वहां कंपनियां आएंगी। इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ेगा ही। जहां यह रोशनी नहीं पहुंची है, वहां सबसे पहले शिक्षा को लेकर लोगों को आगे बढ़ना होगा। इसी तरह, सरकार को भी स्किल डेवलपमेंट और रोजगार आधारित वोकेशनल कोर्स पर फोकस करना होगा।”

इन्फ्रा डेवलपमेंट की गति और उसके साथ कदम मिलाकर चलने के कारण ही आज भारत भारत नॉमिनल जीडीपी के हिसाब से दुनिया की छठी और परचेजिंग पावर पैरिटी के हिसाब से तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है। आजादी के बाद 7 दशकों में अपनी इकॉनमी को 100 गुना करने में हम कामयाब रहे हैं।

India@100: यूरोप से मुकाबिल होंगे

आजादी के 75 साल पर जहां हम खड़े हैं, वहां हम अमूमन एशियाई देशों से अपनी तुलना करते हैं, लेकिन बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के बाद जिस तरह हम आईटी, एजुकेशन, दवा, हेल्थकेयर और हार्डवेयर समेत इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में खासकर आगे बढ़ रहे, उसे देखकर सिर्फ संभावनाएं दिखती हैं। सुपर30 के आनंद कुमार कहते हैं, “हमारा विकास अब सकारात्मक दिशा में है। सबसे बड़ी बात कि शिक्षा और इन्फ्रा के विकास का फायदा लोग न केवल देख रहे, बल्कि स्वीकार भी कर रहे हैं। अब विकासात्मक गतिविधियों पर प्रतिरोध की खबरें नहीं दिखती हैं। कोई नए एरिया में इंडस्ट्री लगाने जाता है तो उसका स्वागत किया जाता है। यह शुभ संकेत है। यह संकेत बताते हैं कि 25 साल बाद जब भारत की आजादी के 100 साल पूरे होने का जश्न मनाएंगे तो हम-आप इस देश की तुलना विकसित देशों से करेंगे और हम खुद को विकसित कहते हुए गौरवान्वित होंगे।”

अर्थशास्त्री भारत भूषण कहते हैं, “आज हम 100 से अधिक देशों को हार्डवेयर दे रहे हैं। दवा से लेकर अनाज और बिजली तक निर्यात कर रहे हैं। ब्रेन ड्रेन को रोकने में न केवल काफी हद तक कामयाब रहे हैं, बल्कि दूसरे देशों के युवाओं को रोजगार दे रहे हैं। अकेले ब्रेन ड्रेन रोकने से भी जीडीपी में ग्रोथ को सुधार जा सकता है तो अगले 25 साल बाद की सुखद स्थिति का सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है।”

फोर्ब्स 30 अंडर 30 में शामिल शरद विवेक सागर दो कदम आगे की बात करते हैं- “हमारे पास प्रतिभाओं का खजाना है। आने वाले समय में हम इन्हें निखारकर अलग तरह का भारत तैयार कर सकते हैं। वह भारत, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में सबसे आगे हो, जहां के बच्चे देश में रहकर जीडीपी में सीधा योगदान दें, जहां का हर आदमी नकारात्मक बातों पर कुछ पल गंवाने की जगह कुछ नया कर दिखाने के लिए तैयार होगा।”

अगले 25 साल की उम्मीदों को लेकर नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार थोड़ा अलग सोचते हैं। वह कहते हैं- “अप्रत्याशित रूप से 5जी पर निर्भर करेगा भारत के विकास के अगले 25 साल। हम 5जी को कितनी जल्दी गांव-गांव तक पहुंचा पाते हैं और इसके जरिए ज्ञानवर्धक सूचनाओं का कितना बेहतर प्रसार कर पाते हैं। यह दूसरे तरह की बुनियाद खड़ी करेगा। इससे इनोवेशन बढ़ेगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लोग आगे सोचने की कोशिश करेंगे, जो उसे और आगे बढ़ाएगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए फंड का मुद्दा बीच-बीच में आता है तो इसके लिए बाजार खुला है। बाजार रिटर्न चाहता है, बस यह गारंटी उसे दिखेगी तो वह निवेश करेगा। इसके अलावा, पेंशन फंड को इन्फ्रा डेवपलमेंट में खर्च करना अच्छा विकल्प है क्योंकि वहां ब्याज कम चुकाना पड़ेगा।”

चुनौती: हवा-पानी से लगी सेंध

जब हम सब अच्छा देख रहे हों और अच्छे की ही उम्मीद में आगे बढ़ रहे हों तो कमजोर कड़ी को नहीं भूलना चाहिए। इन्फ्रा में हमारी कमजोर कड़ी है- पानी और हवा। देश की आजादी के समय पेयजल की उपलब्धता 4000 घन मीटर थी, जो अब 1523 घन मीटर है। किसी देश की बुनियाद में पानी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और आज भारत के सामने सबसे बड़ा संकट पेयजल का ही है। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवॉयरमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण कहती हैं, “विनाश की शर्त पर विकास नहीं होना चाहिए और पानी को लेकर तो कुछ ऐसा ही हो रहा है। नागरिकों को पानी उपलब्ध कराना किसी भी शहरी प्राधिकार की प्राथमिकता होती है, लेकिन क्या ऐसी सोच है? जिस तरह से इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ देश में शहरीकरण हुआ है, यहां कंक्रीट के जंगल ही तैयार हुए हैं। ऐसे जंगल जहां बरसाती पानी के जमीन में सोखने की क्षमता ही खत्म हो गई है। भवनों और बुनियादी संरचनाओं ने ग्राउंड वाटर रिचार्ज की संभावना खत्म कर दी है। जिस देश में ज्यादातर शहर भूगर्भ जल पर निर्भर हैं, वहां इस हालत में पानी की जरूरत को पूरा नहीं किया जा सकता। दरअसल, अब तो ताल-तलैये भी कम ही बचे हैं, जहां पानी जमा होकर जमीन के अंदर जाए। टाउन प्लानर जमीन देखते हैं, पानी की उपलब्धता नहीं। जमीन के ज्यादातर हिस्से पर सीमेंट-बालू या तारकोल की परत बिछा देंगे तो बरसाती पानी जमीन के अंदर नहीं जाएगा। कई शहरों में बरसाती पानी से बाढ़ की जो तस्वीरें आती हैं, उसकी बड़ी वजह यही है। इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में इसका ध्यान रखना ही होगा।”

बुनियादी संरचनाओं के विकास के दरम्यान वायु प्रदूषण का मुद्दा भी सुर्खियों में रहा है। ईंट बनाने वाले इलाकों में वायु प्रदूषण, बालू-सीमेंट ढोकर ले जाने के दौरान सड़कों पर इसका गिरना और निर्माण के दौरान निर्माण सामग्री के हवा में उड़ने को लेकर न्यायालयों को कई बार स्वत: संज्ञान भी लेना पड़ा है। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवॉयरमेंट (CSE) की ही एक स्टडी के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा 5 साल घट जाती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के विश्लेषण में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर दिल्ली है और यहां वायु प्रदूषण जनित बीमारियों के कारण जीवन प्रत्याशा 10 साल तक घट जाती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सहजानंद सिंह कहते हैं, “पराली जलाने के कारण होने वाला प्रदूषण तो दिख जाता है, लेकिन निर्माण सामग्री की धूल तो हवा के जरिए हर समय हमारे शरीर के अंदर जा रही है। एलर्जिक इश्यूज इसी कारण बढ़ रहे हैं। कोरोना से कमजोर हुए फेफड़ों के लिए यह और भी खतरनाक है। इसलिए, इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के क्रम में निर्माण सामग्री के प्रदूषण से लोगों को बचाना एक बड़ी चुनौती है। वायु प्रदूषण जनित बीमारियों पर प्रति व्यक्ति खर्च भी इसी कारण बढ़ रहा है।”