घरों में काम करने वाली लड़कियों का संवार रहे भविष्य
पेशे से शिक्षक अनवर ने व्यक्तिगत योगदान कर ऐसी 350 बच्चियों को सुशिक्षित बनाया है। उनका प्रयास अनवरत जारी है।
इंदौर [अश्विन बक्शी]। गरीबी के कारण स्कूल छोड़ चुकीं या शिक्षा से वंचित रह जाने वाली बच्चियों को सुशिक्षित बना उनका जीवन संवारने का प्रेरक कार्य अनवर खान गत 18 वर्ष से कर रहे हैं। पेशे से शिक्षक अनवर ने व्यक्तिगत योगदान कर ऐसी 350 बच्चियों को सुशिक्षित बनाया है। उनका प्रयास अनवरत जारी है। अब तो पत्नी भी इस काम में हाथ बंटाती हैं।
इंदौर, मप्र निवासी अनवर ने 18 साल पहले घरों में झाडू-पोंछा करने वाली, पैसे के अभाव व सही दिशा नहीं मिलने से पढ़ाई अधूरी छोड़ चुकीं गरीब परिवार की लड़कियों की मदद शुरू की। पांचवीं, दसवीं, बारहवीं व कॉलेज की परीक्षाओं के फॉर्म भरवाए और नि:शुल्क पढ़ाई करवाई। ये सभी लड़कियां मुख्यधारा में शामिल हो चुकी हैं। इनमें से 40 से अधिक लड़कियां संतोषजनक नौकरी कर सम्मानजनक जिंदगी जी रही हैं। उनकी यह सफलता उनकी आने वाली पीढ़ियों की उन्नति की गारंटी है।
अनवर खान 1990 में ब्यावरा (राजगढ़) से इंदौर आकर गरीब बस्ती विजय पैलेस पहुंचे। यहां एक निजी स्कूल में प्राचार्य के तौर पर नौकरी शुरू की। लेकिन नौकरी से इतर एक समर्पित शिक्षक के रूप में उनके दायित्व बोध ने उन्हें अपनी भूमिका और प्रयास को विस्तार देने के लिए प्रेरित किया। दायरा बढ़ा तो इसमें गरीब बस्तियों से आने वाले बच्चों को अलग से पढ़ाना भी एक लक्ष्य बन गया।
एक समय आया जब इस लक्ष्य की पूर्ति में ही जीवन खपा देने का निर्णय लेकर साल 2000 में नौकरी छोड़ दी। झुग्गी के बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाना, कुछ को प्राइवेट परीक्षा का फार्म भर शिक्षा से जोड़ना और सभी को घर में ही कोचिंग देना शुरू कर दिया। यह काम इतना आसान नहीं था, लिहाजा जीविकोपार्जन के लिए पुन: पास के एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। लेकिन झुग्गी के बच्चों को घर में नि:शुल्क कोचिंग देना भी जारी रखा। घरों में काम करने वाली लड़कियों की पढ़ाई पूरी करवाने में वे हरसंभव मदद करते।
इस बीच, 2006 में उनकी साढ़े तीन साल की बेटी इल्मा की मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी (मांसपेशियों की कमजोरी की बीमारी) से मौत हो गई। उसकी मौत ने अनवर खान व उनकी पत्नी को तोड़कर रख दिया। ज्यादातर वक्त इसी बीमारी से पीड़ित दूसरी बेटी मिधत और सबसे बड़े बेटे की देखरेख में जाने लगा, लेकिन जब वे किसी मजबूर लड़की को देखते तो उन्हें उसमें इल्मा नजर आती। इस वजह से उन्होंने लड़कियों की मदद करने को ही ध्येय बना लिया। घरों में काम करने वाली लड़कियों के मातापिता से बात कर उनकी पढ़ाई पूरी कराने का जिम्मा उठाया।
2016 में ही उनकी दूसरी बेटी मिधत फातिमा की भी मृत्यु हो गई, लेकिन वे हारे नहीं, मदद का क्रम जारी रहा। यह क्रम अब भी जारी है। हर साल करीब 300 नए-पुराने बच्चे उनकी कोचिंग में नि:शुल्क शिक्षा व शिक्षा पूरी करने में हरसंभव मदद हासिल करते हैं। कुछ परिजन और सहयोगी अब इस मुहिम में अनवर को आर्थिक मदद पहुंचाने लगे हैं।