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दुनिया को लुभा नहीं पा रहा भारतीय गेहूं, कड़ी मशक्कत के बाद भी नहीं बढ़ी प्रोटीन की मात्रा

वर्ष 1960-70 के दशक में आई हरितक्रांति के बाद से गेहूं की साढ़े चार सौ प्रजातियां विकसित की गई है लेकिन घरेलू गेहूं में प्रोटीन की मात्रा 12 फीसद की सीमा को नहीं छू पाई है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 17 Aug 2019 09:14 PM (IST)Updated: Sat, 17 Aug 2019 09:14 PM (IST)
दुनिया को लुभा नहीं पा रहा भारतीय गेहूं, कड़ी मशक्कत के बाद भी नहीं बढ़ी प्रोटीन की मात्रा
दुनिया को लुभा नहीं पा रहा भारतीय गेहूं, कड़ी मशक्कत के बाद भी नहीं बढ़ी प्रोटीन की मात्रा

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। भारतीय गेहूं की प्रजातियां दुनिया के दूसरे देशों को नहीं लुभा पा रही हैं। दशकों की मशक्कत के बाद भी गेहूं की घरेलू प्रजातियों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाये नहीं बढ़ पा रही है। यही वजह है कि बंपर पैदावार के बावजूद घरेलू गेहूं की अंतराष्ट्रीय बाजार में निर्यात मांग की संभावनाएं नहीं बन पा रही हैं। इसी महीने आयोजित होने वाले एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में गेहूं की गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां और रोगों के प्रकोप को थामने जैसे विषय पर चर्चा होगी।

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वर्ष 1960-70 के दशक में आई हरितक्रांति के बाद से गेहूं की साढ़े चार सौ प्रजातियां विकसित की गई है, लेकिन घरेलू गेहूं में प्रोटीन की मात्रा 12 फीसद की सीमा को नहीं छू पाई है। वैश्विक मानक के अनुरूप गुणवत्ता न होने की वजह से घरेलू गेहूं की निर्यात मांग न के बराबर है। कुछ एशियाई व अफ्रीकी देशों को छोड़कर और किसी देश में भारतीय गेहूं की मांग नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय गेहूं सम्मेलन

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि संस्थान के एग्रोनोमी क्षेत्र में जाने पहचाने वैज्ञानिक प्रोफेसर रमेश कुमार सिंह के मुताबिक अगस्त के आखिरी सप्ताह में इंदौर में होने वाले 'अंतरराष्ट्रीय गेहूं व जौ अनुसंधान कार्यकर्ता सम्मेलन' इन सारी चिंताओं पर गंभीर चर्चा होगी। घरेलू गेहूं में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाने के साथ कई और मुद्दे होंगे, जिन पर विचार-विमर्श होगा।

सम्मेलन में सीमित होते प्राकृतिक संसाधनों के बीच गेहूं की उत्पादकता को बढ़ाने और उसकी गुणवत्ता में सुधार की दिशा में किये जाने वाले प्रयासों पर चर्चा होगी। ज्यादातर प्रजातियों में प्रोटीन का मात्रा 12 फीसद से कम ही पाई गई है। इसे बढ़ाने को लेकर प्रयास जारी है।

सम्मेलन में संयुक्त राज्य अमेरिका की कर्नल यूनिवर्सिटी और नार्मन बोरलॉग फाउंडेशन के साथ घरेलू 29 अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिक हिस्सा लेंगे। गेहूं की क्वालिटी में सुधार लाने के अलावा जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाले रोगों की चुनौतियां भी विचार-विमर्श का हिस्सा होंगी। फिलहाल दुनियाभर में 'व्हीट ब्लास्ट' जैसे घातक रोग का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है।

व्हीट ब्लास्ट का प्रकोप

इस बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) के प्रोफेसर एनके सिंह के मुताबिक फिलहाल यह रोग भारत तक नहीं पहुंचा है, लेकिन भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में व्हीट ब्लास्ट के प्रकोप की सूचना है। इसीलिए सीमाई राज्य पश्चिमी बंगाल के नजदीकी तीन चार जिलों में गेहूं की खेती पर पाबंदी लगा दी गई है। इसे लेकर सरकार इसे लेकर पूरी मुस्तैदी बरत रही है।

गेहूं की कई प्रजातियां किसानों की पसंद नहीं

इंदौर सम्मेलन में गेहूं की ईजाद हुई प्रजातियों के किसानों तक न पहुंचने का मसला भी उठेगा। देश के विभिन्न गेहूं अनुसंधान संस्थानों व विश्वविद्यालयों में अब तक 448 प्रजातियां विकसित की गई हैं, लेकिन हैरानी इस बात की है कि केवल तीन दर्जन प्रजातियां ही किसानों की पसंद हैं। वैज्ञानिक ही मानते हैं कि इसमें तमाम प्रजातियां ऐसी हैं जो किसानों की पसंद नहीं बन पाई। ज्यादातर प्रजातियां ध्वस्त प्रसार प्रणाली के चलते खेतों तक नहीं पहुंच सकी हैं।

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समाप्त-------एसपी सिंह

दिनांक-17 अगस्त 2019


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