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21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में छा गया भारत और खेल के नक्शे पर उभरे कई राज्य

देश के बाकी राज्यों को मणिपुर और हरियाणा से प्रेरणा लेनी चाहिए। आज इन दोनों राज्यों की तरह ही अखिल भारतीय स्तर पर खेल संस्कृति विकसित करने की आवश्यकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 23 Apr 2018 12:32 PM (IST)Updated: Mon, 23 Apr 2018 04:15 PM (IST)
21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में छा गया भारत और खेल के नक्शे पर उभरे कई राज्य
21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में छा गया भारत और खेल के नक्शे पर उभरे कई राज्य

[विवेक शुक्ला] भारत को 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में पहला गोल्ड मेडल महिला भारोत्ताेलक मीराबाई चानू ने दिलवाया। उन्होंने 48 किलोग्राम भारवर्ग स्पर्धा में भारत को गोल्ड दिलाया। दूसरा गोल्ड वेटलिफ्टर संजीता चानू ने 53 किलो ग्राम कैटेगरी में जीता। उसके बाद तो मानो भारत की झोली में पदकों की बरसात चालू हो गई। और इसी क्रम में मैरी कॉम ने मुक्केबाजी में गोल्ड जीता। ये तीनों बेटियां मणिपुर से हैं। मणिपुर देखते ही देखते देश की खेल राजधानी के रूप में उभर चुका है। हालांकि हरियाणा भी पीछे नहीं है। वह भी खेलों में झंडे गाढ़ रहा है।1पर पहले बात मणिपुर की। यद्यपि लगभग 27 लाख की जनसंख्या वाला मणिपुर निर्धनता, बेरोजगारी, पृथकतावादी आंदोलन वगैरह से जूझता रहा है, पर साथ ही यह क्रिकेट से इतर खेलों में भी निरंतर आगे बढ़ रहा है।

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फुटबॉल, मुक्केबाजी, हॉकी, वेटलिफ्टिंग जैसे खेलों में मणिपुर के पुरुष और महिला खिलाड़ी देश का नाम बुलंदियों पर लेकर जा रहे हैं। देश को झोलीभरकर पदक दिलवा रहे हैं। मणिपुर का शाब्दिक अर्थ ‘आभूषणों की भूमि’ है। भारत की स्वतंत्रता के पहले यह रियासत थी। पहले मणिपुर के लोग संगीत तथा कला में प्रवीण होते थे। अब ये खेलों के मैदान में भी झंड़े गाढ़ रहे हैं। इसी मणिपुर से देश को मैरी कॉम (मुक्केबाजी), कुंजारानी देवी (वेटलिफ्टिंग), डिंको सिंह (मुक्केबाजी), रैंडी सिंह (फुटबॉल) सरीखे विभिन्न खेलों के चोटी के खिलाड़ी मिले हैं। यह भी लगता है कि चूंकि अब खेलों में पैसा आ गया है तो मणिपुर में युवा खेलों के जरिये अपना करियर चमका रहे हैं। वहां पर खेल शौकिया अंदाज से नहीं खेले जाते। बच्चे शुरू से ही खेलों के मैदानों में कुछ कर गुजरने के भाव से कदम रखते हैं।

पिछले वर्ष भारत में खेली गई फीफा अंडर-17 विश्व कप फुटबॉल चैंपियनशिप में प्राकृतिक संसाधनों से प्रचुर मणिपुर के आठ खिलाड़ी 21 सदस्यीय भारतीय टीम में थे। ये सभी गरीब परिवारों से संबंध रखते थे। इनमें से कई खिलाड़ियों के माता-पिता के पास जूते खरीदने के पैसे भी नहीं थे। इसके बावजूद वहां के प्रतिभाशाली किशोर भारतीय टीम में जगह बना पाए। निश्चित रूप से रंग-बिरंगे फूलों वाले पौधों, दुर्लभ वनस्पतियों और हमेशा बहने वाली नदियों वाला मणिपुर खेलों में देश के बाकी राज्यों के सामने उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। फुटबॉल का क्रेज तो मणिपुर में अद्भुत है। मणिपुर में फुटबॉल के जुनून को देखकर बंगाल, केरल और गोवा जरूर रश्क करते होंगे। क्रिकेट से दूर मणिपुर की जनता को लगता है कि फुटबॉल इसलिए पसंद आती है, क्योंकि ये महंगा खेल नहीं है। सस्ते में बात बन जाती है। अपने विहंगम सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध मणिपुर के खेलों के पहले बड़े आइकन डिंको सिंह थे।

डिंको सिंह ने एशियाई और कॉमनवेल्थ खेलों के मुक्केबाजी मुकाबलों में कई पदक जीते। डिंको की सफलता से प्रभावित होकर मैरी कॉम और दर्जनों युवाओं ने खेल मैदानों का रुख किया। मैरी कॉम अब महिला मुक्केबाजी की दुनिया का सबसे बड़ा नाम हैं। पिछले करीब डेढ़ दशक में मैरी कॉम पांच बार विश्व विजेता बनी हैं। उन्होंने 2012 के लंदन ओलंपिक खेलों में भी पदक जीता। मणिपुर के चोटी के खिलाड़ियों का उल्लेख होगा तो कुंजारानी देवी की भी बात करनी ही होगी। वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी ने देश का एशियाई खेलों से लेकर कॉमनवेल्थ खेलों में प्रतिनधित्व किया है। उन्होंने एशियाई खेलों में दो बार कांस्य के पदक जीते हैं। पांच फीट से छोटे कद की कुंजारानी की उपलब्धियां वास्तव में बहुत शानदार रही हैं।

उन्होंने 2006 के कॉमनवेल्थ खेलों की 48 किलोग्राम स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता था। इसके साथ ही महिला हॉकी स्टार सुशीला चानू का भी जिक्र करना जरूरी है। वह भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रही हैं। उन्होंने भारत की ओर से रियो में आयोजित 2016 के ओलंपिक खेलों में भाग लिया था। इनके अलावा मणिपुर से और भी तमाम खिलाड़ी निकल रहे हैं। कॉमनवेल्थ खेलों में भारत के बेहतरीन प्रदर्शन में हरियाणा के खिलाड़ियों ने भी जानदार-शानदार प्रदर्शन किया। भारत ने कॉमनवेल्थ खेलों में कुल 66 पदक जीते, जिनमें से हरियाणा के खिलाड़ियों ने 22 पदक हासिल किए। हरियाणा के खिलाड़ियों ने 9 स्वर्ण, 6 रजत और 7 कांस्य पदक जीते। ये साबित करता है कि अब मणिपुर की राह पर चलने लगा है हरियाणा भी।

हरियाणा से शेष हिंदी भाषी राज्यों के युवाओं को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। वे भी खेलों की दुनिया में उम्दा प्रदर्शन करके देश के साथ-साथ अपने और अपने परिवार का कल्याण कर सकते हैं। अगर बात पिछले रियो ओलंपिक खेलों की करें तो हरियाणा को छोड़कर शेष हिंदी भाषी राज्यों के गिनती के ही खिलाड़ी ओलंपिक खेलों भाग लेने के लिए गई भारतीय टोली में थे। रियो ओलंपिक खेलों में गई भारतीय टोली में 66 पुरुष और 54 महिलाएं थे। इनमें हरियाणा से 23, उत्तर प्रदेश से 8, राजस्थान से 3, मध्य प्रदेश से 2, उत्तराखंड से 2,जम्मू-कश्मीर से 1, छत्तीसगढ़ से 1, झारखंड से 3 और दिल्ली से 1 खिलाड़ी थे। जाहिर है इन सभी राज्यों की सरकारों को खेलों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर और अधिक ध्यान होगा।

युवाओं को भी खेलों में करियर तलाशना होगा। अब भी देश के अधिकतर युवाओं और उनके अभिभावकों को लगता है कि खेलों का मतलब क्रिकेट है। बेशक क्रिकेट भारत में धर्म का स्थान ले चुका है, पर क्रिकेट में अपने लिए जगह बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं है। इसलिए उन खेलों में हाथ आजमाए जा सकते हैं, जिन्हें कम लोग खेलते हैं। सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार या मध्य प्रदेश में खेलों की संस्कृति क्यों विकसित नहीं हो पा रही है। हालांकि कॉमनवेल्थ खेलों में वेटलिफ्टिंग में एक गोल्ड बनारस की बेटी पूनम यादव ने जीता है, पर यह पर्याप्त नहीं है। इन सब राज्यों को मणिपुर और हरियाणा से प्रेरणा लेनी होगी। आज मणिपुर और हरियाणा की तरह खेलों की संस्कृति अखिल भारतीय स्तर पर विकसित करने की आवश्यकता है।

[वरिष्ठ पत्रकार]


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