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जम्मू-कश्मीर: घुसपैठ के रास्ते खुलने और तालिबान-अमेरिकी समझौते का असर पड़ने की आशंका, सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट

सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी की माने तो गर्मियों में आतंकी गतिविधियों के बढ़ने की आशंका के पीछे कई कारण है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 01 Mar 2020 08:43 PM (IST)Updated: Mon, 02 Mar 2020 11:25 AM (IST)
जम्मू-कश्मीर: घुसपैठ के रास्ते खुलने और तालिबान-अमेरिकी समझौते का असर पड़ने की आशंका, सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट
जम्मू-कश्मीर: घुसपैठ के रास्ते खुलने और तालिबान-अमेरिकी समझौते का असर पड़ने की आशंका, सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट

नीलू रंजन, नई दिल्ली। आगामी गर्मियों में कश्मीर में सुरक्षा बलों को आतंकियों की नई चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। सुरक्षा एजेंसियों के आकलन के मुताबिक पहाड़ों पर बर्फ पिघलने और घुसपैठ के नए रास्ते खुलने के बाद आतंकी एक बार फिर से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए जोर लगा सकते हैं और इसके नाकाम होने के बाद ही कश्मीर में स्थायी शांति का मार्ग प्रशस्त होगा। जाहिर है सरकार और सुरक्षा एजेंसियां इन चुनौतियों से निपटने की तैयारी में जुटी हैं।

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गर्मियों में आतंकी गतिविधियां बढ़ने के कई कारण

सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी की माने तो गर्मियों में आतंकी गतिविधियों के बढ़ने की आशंका के पीछे कई कारण है। इसमें सबसे प्रमुख है पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के बाद आतंकियों के घुसपैठ के कई रास्ते खुल जाएंगे। यही कारण है कि कश्मीर में गर्मियों में सबसे अधिक हिंसा का इतिहास रहा है। लेकिन घुसपैठ बढ़ने के बाद भी आतंकी हमला करने में कितना कामयाब हो पाएंगे, यह कहना मुश्किल है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद आतंकी नेटवर्क की अहम कड़ी माने जाने वाले अधिकांश ओवरग्राउंड वर्कर को गिरफ्तार किया जा चुका है।

एनएसए के तहत गिरफ्तार इन ओवरग्राउंड वर्कर को देश के विभिन्न भागों में जेलों में रखा गया है। ऐसे में घुसपैठ करने के बाद आतंकियों के लिए खुद ही ठिकाना तलाशना पड़ रहा है और एक से दूसरे स्थान पर जाना मुश्किल साबित हो रहा है। यही नहीं, सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ के दौरान पत्थरबाजों की मदद से बच निकलने का विकल्प भी लगभग समाप्त हो गया है।

तालीबान-अमेरिका शांति समझौते का असर दिख सकता है

सुरक्षा बलों की माने तो पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के साथ ही अफगानिस्तान में तालिबान और अमेरिका के बीच शांति समझौते का असर भी कश्मीर के भीतर देखने को मिल सकता है। इसके बाद आइएसआइ तालिबान के अनुभवी लड़ाकों को कश्मीर में उतारने की कोशिश कर सकता है। लेकिन इस मामले में आइएसआइ के सामने दो समस्याएं आएंगी। स्थानीय नेटवर्क नहीं होने के कारण तालिबान लड़ाकों के लिए घाटी में पैर जमाना मुश्किल हो जाएगा। वहीं दूसरी ओर अमेरिका के साथ समझौते में तालिबान स्वीकार कर चुका है, वह दूसरे देशों के आतंकी गतिविधियों व आतंकी संगठनों से संपर्क नहीं रखेगा। जाहिर है इतनी जल्दी तालिबान के लिए समझौते का उल्लंघन आसान नहीं होगा।

पाकिस्तान को जून तक मिला समय

वहीं कश्मीर में पाकिस्तान के किसी भी दुस्साहस के रास्ते में एफएटीएफ का डर भी रोड़ा साबित हो सकता है। आतंकी फंडिंग पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए पाकिस्तान को जून तक समय मिला है। ऐसा नहीं करने पर उसके काली सूची में डालने का अल्टीमेटम दिया गया है। ऐसे में पाकिस्तान के लिए पहले की तरह लश्करे-तैयबा, जैश ए मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन के लिए खुलकर संसाधनों की व्यवस्था करना आसान नहीं होगा।

सुरक्षा एजेंसी से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार गर्मियों में आतंकी गतिविधियों में बढ़ोतरी देखी जा सकती है। लेकिन सुरक्षा बलों की तैयारी और घाटी की जमीनी हकीकत को देखते हुए इसके सीमित दायरे में ही रहने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां नई परिस्थितियों में आतंकियों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।


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