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भारतीय रेल की समय सारणी की विश्वसनीयता बनी रहे इसके लिए विलंब के विविध कारणों पर लगे लगाम

दरअसल रेल तो केवल एक माध्यम है एक जरिया है सामग्री का आदान-प्रदान मालगाड़ी द्वारा एवं मानव संसाधनों का आदान-प्रदान यात्री सेवाओं द्वारा। लेकिन यह भी सही है कि समय सारणी की विश्वसनीयता बनी रहे इसके लिए विलंब के कारणों को दूर करना बहुत जरूरी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 05 Oct 2021 12:43 PM (IST)Updated: Tue, 05 Oct 2021 12:43 PM (IST)
भारतीय रेल की समय सारणी की विश्वसनीयता बनी रहे इसके लिए विलंब के विविध कारणों पर लगे लगाम
भारतीय कृषि उत्पाद का ग्लोबल फूड सप्लाई चेन में प्रवेश करना संभव हो पाएगा।

विनीता श्रीवास्तव। रेल सेवाएं कृषि जगत की नसें और धमनिया हैं। खेती के लिए जरूरी सामग्रियों की ढुलाई रेलवे रियायती दरों पर करती है। साथ ही रियायती दरों पर किसान के अनाज की ढुलाई करते हुए उसे मंडियों और गोदामों तक पहुंचाती है। थोड़ा अतीत में चलें तो अंग्रेजों के शासनकाल में जब देश के बड़े हिस्से में रेल बिछाई गई तो उद्देश्य कुछ और था। पूर्वी भारत से जूट व नील और पश्चिमी भारत से कपास समेत अन्य निर्यात सामग्रियों को रेल द्वारा समुद्री मार्ग तक पहुंचाना, यही था उनका स्वार्थ, जिसके चलते रेलमार्गो को वहीं बिछाया गया जहां स्वार्थ सिद्ध होता। स्वतंत्रता के बाद रेल भी देश की थी और उसके निर्णय देश को समर्पित थे। लगभग हर शहर और कस्बे तक रेल पहुंची और उस क्षेत्र की प्रगति में सहायक हुई।

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कृषि उत्पादों के निर्यात से जुड़ा अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण भी इस संदर्भ में मायने रखता है। फलों को खराब होने से बचाए रखते हुए त्वरित गति से सुदूर क्षेत्रों तक पहुंचाना अब मुश्किल नहीं है। लेकिन ग्लोबल फूड सप्लाई चेन में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है। ऐसे में कृषि उत्पाद मंडी, रेल और समुद्री मार्ग तथा बड़े सुपरमार्केट को एकीकृत व्यवस्था के तहत जोड़ते हुए भारतीय किसान के उत्पादों को अधिक से अधिक मूल्य दिलाया जा सकता है। केंद्र, राज्य और रेल प्रणाली की साझेदारी से ही भारतीय कृषि उत्पाद का ग्लोबल फूड सप्लाई चेन में प्रवेश करना संभव हो पाएगा।

किसान को उसके पैदावार की सही कीमत मिले, यह निर्णय राज्य और देश के कानून के तहत संभव है। इस संबंध में किसान रेल स्पेशल अंतरराज्यीय स्तर पर कृषि उत्पादों की आवाजाही को संभव बनाती है। समय सारणी से चलने वाली इन रेल सेवाओं का संचालन सुनियोजित रूप से लंबे समय तक बनाए रखना आसान नहीं है। कड़े निर्णय और समय की पाबंदी से जुड़ी जुर्माने की दर, इस व्यवस्था को मजबूत बनाए रखने में सहायक होते हैं।

मालूम हो कि राज्य और केंद्र सरकारें कृषि संबंधी कानून बनाती हैं। कानून बनने के बाद इन पर आधारित नियमों के तहत कृषि उत्पादन और निर्यात का कारोबार चलता है। देशभर में आलू, मक्का, अनाज, चावल आदि एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया जाता है। इन तमाम परिस्थितियों के बीच देशभर में कृषि जगत में नई ऊर्जा लाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से जो पहल की गई, उनमें कई महत्वपूर्ण कदम शामिल हैं। राज्य सरकार के स्तर पर एकीकृत मंडी और कोल्ड चेन के लिए माल गोदाम की व्यवस्था के अलावा मंडियों का निजीकरण और बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के कृषि उत्पादन का आदान-प्रदान, डायरेक्ट मार्केटिंग यानी किसानों से सीधी खरीद, ई-ट्रेडिंग (इलेक्ट्रानिक माध्यम) से कृषि उत्पादन की बिक्री आदि की व्यवस्था की गई।

लेकिन मंडियों का एकीकरण जैसे कुछ कार्य अभी शेष हैं। इस प्रकार समग्रता में देखा जाए तो राष्ट्रव्यापी किसान स्पेशल रेल सेवाएं भारत में एकीकृत कृषि मंडी व्यवस्था को विकसित करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। देखा जाए तो कृषि संबंधित उद्योग और वाणिज्य को संतुलित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच की इस खींचातानी में फंस गई लगती है रेल। मामले को सुलझाना संभव है या नहीं, यह तो समय बताएगा, परंतु समुचित समीकरण के अभाव में माध्यम को दोष देना उचित नहीं होगा। 

(ये लेखिका के निजी विचार हैं)

[कार्यकारी निदेशक (धरोहर), रेलवे बोर्ड]


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