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Indian Railways: कोरोना और लॉकडाउन से रेलवे को लगी तगड़ी चोट, उबरना होगा मुश्किल

कोरोना ने रेलवे को कई ऐसे सबक सिखाए हैं जिनका असर लंबे समय तक रहेगा। लॉकडाउन से रेलवे को इतनी चोट लगी है कि उबरना मुश्किल होगा।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 25 Apr 2020 09:09 PM (IST)Updated: Sun, 26 Apr 2020 07:27 AM (IST)
Indian Railways: कोरोना और लॉकडाउन से रेलवे को लगी तगड़ी चोट, उबरना होगा मुश्किल
Indian Railways: कोरोना और लॉकडाउन से रेलवे को लगी तगड़ी चोट, उबरना होगा मुश्किल

संजय सिंह, नई दिल्ली। कोरोना ने रेलवे को कई ऐसे सबक सिखाए हैं जिनका असर लंबे समय तक रहेगा। लॉकडाउन से रेलवे को इतनी चोट लगी है कि उबरना मुश्किल होगा। इसके लिए उसे अपने फैसलों और तरीकों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। कोरोना के बाद रेलवे पहले जैसी नहीं रहेगी।जी हां, कोरोना लॉकडाउन के कारण रेलवे को 15 से 20 हजार करोड़ रुपये की तगड़ी चपत लगी है। 

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कहां-कहां हुआ रेलवे को नुकसान 

यात्री यातायात ठप पड़ने और माल यातायात आधा रह जाने के कारण लगभग रेलवे को लगभग 10 हजार करोड़ रुपये के राजस्व की क्षति हुई है। जबकि इतना ही नुकसान कारखानो में कोच, लोकोमोटिव व पहियों आदि का उत्पादन ठप पड़ने से हुआ है। ये स्थिति तब है जब रेलवे पहले से ही घाटे में थी। बीते वित्तीय वर्ष में 1.90 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुकाबले वो केवल 1.80 लाख करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित कर पाई थी और परिणामस्वरूप आपरेटिंग रेशियो 100 फीसद से ऊपर जाते-जाते बचा था। 

नए घाटे से उबरने की उम्मीद कम 

रेलवे बोर्ड के पूर्व अधिकारियों के अनुसार कोरोना के कारण चालू वित्तीय वर्ष की शुरुआत में ही हथौड़ा चल जाने से नए घाटे से उबरने की उम्मीद भी धूल-धूसरित हो गई है। यही नहीं, लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी लंबे अरसे तक सख्त नियम लागू रहने के चलते निकट भविष्य में भी रेल यातायात सामान्य होने की संभावना कम है। ऐसे में नुकसान की भरपाई और राजस्व बढ़ाने के लिए रेलवे को अभूतपूर्व उपाय अपनाने पड़ेंगे। पूर्व में लिए कुछ फैसलों पर उसे पुनर्विचार करना पड़ जाए। 

रेलवे के हालिया फैसलों ने समस्या को बढ़ाया

रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य (इंजीनियरिगं) सुबोध जैन के मुताबिक कोरोना ने यातायात साधनों में एयरलाइनों के बाद रेलवे को सर्वाधिक क्षति पहुंचाई है। इसकी भरपाई की कोई सूरत भी नजर नहीं आती। ऊपर से रेलवे के हालिया फैसलों ने समस्या को बढ़ा दिया है।

उदाहरण के लिए शत-प्रतिशत विद्युतीकरण का निर्णय। ये निर्णय शुरू से ही विवादास्पद था। परंतु अब इस पर पुनर्विचार की जरूरत पड़ सकती है। क्योंकि जिस तरह क्रूड की मांग के साथ दाम घट रहे हैं, उससे आने वाले वक्त में बिजली के मुकाबले डीजल ट्रेने चलाना सस्ता पड़ेगा। चूंकि अगले साल-दो साल तक यात्री और माल यातायात के सामान्य होने की उम्मीद कम है, लिहाजा खर्चों में कमी करना रेलवे की मजबूरी होगी। चूंकि वेतन और पेंशन के फिक्स खर्च घटाना संभव नहीं है, इसलिए रेलवे को ईधन जैसे प्रमुख आपरेटिंग खर्चों में ही कमी करनी पड़ेगी।

काडर विलय और निजी ट्रेन संचालन जैसे फैसले पड़ सकते हैं भारी

नई परियोजनाओं के लिए सरकार के बजटीय समर्थन के अलावा रेलवे के पास कोई चारा नहीं बचा है। इसी प्रकार रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य (रोलिंग स्टॉक ) राजेश अग्रवाल ने भी रेलवे के भविष्य को लेकर चिंता प्रकट की और कहा कि यहां बीमारी का तो सबको पता है, पर इलाज किसी को मालूम नहीं है। कॉडर विलय जैसे फैसलों के औचित्य तथा वंदे भारत और बुलेट ट्रेन जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के भविष्य पर भी रेलवे बोर्ड के दोनो पूर्व अफसरों ने आशंका प्रकट की। जहां जैन ने काडर विलय और निजी ट्रेन संचालन को भयंकर भूल बताते हुए कहा कि कोरोना के बाद दोनो फैसले रेलवे को भारी पड़ेंगे।

वहीं, अग्रवाल का कहना था कि जिस तरह देश की पहली स्वदेशी वंदे भारत ट्रेन की पूरी स्कीम और टीम को खत्म किया गया, उसके बाद अब इन ट्रेनों के चल पाने में संदेह है। बुलेट ट्रेन का भविष्य भी अनिश्चित दिखाई देता है।


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