कारगिल युद्ध में पाकिस्तान से लोहा लेने वाली गुंजन सक्सेना पर बन रही फिल्म, जानें कब होगी रिलीज
कारगिल युद्ध में पाकिस्तान से लोहा लेने वाली गुंजन सक्सेना के जीवन पर फिल्म बन रही है। इसके बाद से चारों तरफ गुंजन सक्सेना की चर्चा में आ गई हैं।
जेएनएन, नई दिल्ली। वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध को ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है। पाकिस्तान के साथ दो माह तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना ने अदम्य साहस का ऐसा उदाहरण पेश किया, जिस पर हर देशवासी को गर्व है। इस युद्ध ने देश को कई हीरो दिए। इन्हीं में से एक नाम है गुंजन सक्सेना, जिन्होंने इस युद्ध में अहम भूमिका निभाई। बीते दिनों उन पर बनी बायोपिक के पोस्टर रिलीज किए गए और वह एक बार फिर से चर्चा में आ गईं। भले ही यह फिल्म अगले साल 13 मार्च को रिलीज होने वाली हो, लेकिन गुंजन इन दिनों इंटरनेट से लेकर मीडिया तक में सुर्खियों में बनी हुई हैं और देशवासी एक बार फिर उनकी वीरगाथा से रूबरू हो रहे हैं।
दिल्ली से ग्रहण की शिक्षा
गुंजन सक्सेना का जन्म जिस परिवार में हुआ वह पूरी तरह से देश को समर्पित था। इनके पिता और भाई दोनों ही भारतीय सेना का हिस्सा थे। उनसे प्रेरित होकर गुंजन ने भी सेना में भर्ती होने का मन बनाया। अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद दिल्ली के हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन में दाखिला लिया। इसी के साथ उन्होंने सफदरजंग फ्लाइंग क्लब से विमान उड़ाने के बेसिक टिप्स सीखने शुरू कर दिए।
वायुसेना में हुई शामिल
कुछ महीनों बाद गुंजन वायुसेना में शामिल हो गईं। 1994 में गुंजन उन 25 युवा महिलाओं के दल में शामिल की गईं, जिन्हें वायुसेना ने पहली ट्रेनी पायलट के रूप में चुना। गुंजन को सबसे पहले तैनाती उधमपुर में मिली। वह देश की सेवा के लिए सही मौके के इंतजार में थीं। फिर आई 1999 की वह जंग जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान के दांत बुरी तरह से खट्टे कर दिए। इस जंग में गुंजन सक्सेना को श्री विद्या राजन के साथ अपना उत्साह और जुनून साबित करने का मौका मिला। इस तनावपूर्ण युद्ध में भारतीय सेना को अपने हरेक पायलट की जरूरत थी।
कारगिल में घायलों को बचाने का किया काम
फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना और फ्लाइट लेफ्टिनेंट श्रीविद्या राजन ने अपने छोटे चीता हेलिकॉप्टर के साथ युद्ध क्षेत्र में दवाओं की आपूर्ति करने, पाकिस्तानी सेना की स्थिति का पता लगाने और युद्ध में घायल हुए सैनिकों को बचाने का काम किया। उनका चीता हेलिकॉप्टर ऐसी आशा बनकर पहुंचता था, जो घायल सैनिकों और जरूरतमंद साथियों के लिए संजीवनी से कम नहीं था। गुंजन और राजन ऐसी जगह पर उड़ान भरती थीं, जहां उनका हेलिकॉप्टर पाक सेना की जद में आता था। इस दौरान पाकिस्तानी सेना की ओर से उनके हेलिकॉप्टर पर कई हमले किए गए। एक बार यह हमला सीधा था। उनके हेलिकॉप्टर पर एक मिसाइल दागी गई, लेकिन किसी तरह वे हमले से बच गईं और मिसाइल हेलिकॉप्टर के पीछे पहाड़ी से जा टकराई। इन सबके बावजूद गुंजन का हौसला कायम रहा और उन्होंने अपनी साथी राजन के साथ अपना काम जारी रखा।
2004 में पाक पायलट के रूप में समाप्त हुआ कार्यकाल
युद्ध के अंत तक घायल सैनिकों को बचाने में लगी रहीं। 2004 में गुंजन का कार्यकाल एक हेलिकॉप्टर पायलट के रूप में समाप्त हुआ। कारगिल युद्ध में अपने साहस और उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए इन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। साथ ही सेना में यह सम्मान प्राप्त करने वाली पहली महिला बन गईं। इसके बाद से ही इन्हें कारगिल गर्ल के
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