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फौलादी इरादों का दस्तखत होगा स्वदेशी विक्रांत

प्रणय उपाध्याय, कोच्चि। कोचीन शिपयार्ड में बीते चार सालों की अनवरत मेहनत से खड़ा हुआ आइएनएस विक्रांत का ढांचा भारत की फौलादी ताकत का नया और बेमिसाल नमूना है। सोमवार को जब स्वदेशी विमानवाहक पोत पहली बार अरब सागर के पानी पर उतरेगा तो भारतीय पोत निर्माण क्षमताओं का भी नया परचम लहराएगा। पूरी तरह स्वदेशी डिजाइन और अधिकतम द

By Edited By: Published: Sun, 11 Aug 2013 08:14 PM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2013 08:16 PM (IST)
फौलादी इरादों का दस्तखत होगा स्वदेशी विक्रांत

प्रणय उपाध्याय, कोच्चि। कोचीन शिपयार्ड में बीते चार सालों की अनवरत मेहनत से खड़ा हुआ आइएनएस विक्रांत का ढांचा भारत की फौलादी ताकत का नया और बेमिसाल नमूना है। सोमवार को जब स्वदेशी विमानवाहक पोत पहली बार अरब सागर के पानी पर उतरेगा तो भारतीय पोत निर्माण क्षमताओं का भी नया परचम लहराएगा। पूरी तरह स्वदेशी डिजाइन और अधिकतम देशी तकनीक से विकसित इस विमान के निर्माण के साथ भारत उन चंद मुल्कों की कतार में खड़ा हो जाएगा जिनके पास समंदर के सीने पर अपना चलता-फिरता लड़ाकू हवाई अड्डा बनाने की क्षमता है। इससे भारतीय नौसेना दुनिया के किसी भी हिस्से में अपने हितों की हिफाजत की ताकत हासिल कर सकेगी। नौसेना को इस साल के अंत तक रूस से खरीदा गया विमानवाहक पोत गोर्शकोव मिलेगा। आइएनएस विक्रांत अगले पांच साल में तैनाती के लिए तैयार होगा।

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विक्रांत अभी सिर्फ ढांचे की शक्ल में खड़ा है। इस पोत पर तैनाती के लिए स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान एलसीए का निर्माण का काम वक्त से काफी पीछे चल रहा है। इस पर लगाई जाने वाली लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल का विकास इजराइल की मदद से किया जा रहा है।

पोत का निर्माण कर रहे सार्वजनिक उपक्रम कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक कमोडोर के सुब्रमण्यम उत्साहित भी हैं और आशावादी भी। वे कहते हैं कि फरवरी 2009 में शुरुआत से लेकर अगस्त 2013 में पहले चरण की समाप्ति को रिकार्ड तेजी से पूरा किया गया है। महत्वपूर्ण है कि इसके निर्माण के लिए खास किस्म का जंगरोधी और तोप के गोलों को बेअसर साबित करने वाला इस्पात भी देश में बनाया गया है।

12 अगस्त 2013 को पोत का जलावतरण रक्षा मंत्री एके एंटनी की पत्‍‌नी एलिजाबेथ एंटनी के हाथों होगा। गौरतलब है कि कोचीन शिपयार्ड ने पहले विमानवाहक पोत के लिए अपनी क्षमताओं में भी खासा इजाफा किया है।

भारतीय नौसेना के पहले विमानवाहक पोत का नाम भी आइएनएस विक्रांत ही था। सरकार ने इसके निमार्ण की स्वीकृति जनवरी 2003 में दी थी और इसे 2011 तक समुद्र में उतारने की योजना थी। स्टील आयात की अड़चनों और गियर बाक्स की परेशानी और कुछ अन्य तकनीकी कारणों से जलावतरण तक के पहले चरण को पूरा करने में दो साल की देरी हो गई। रक्षा मंत्री ने 28 फरवरी 2009 में इस पोत के निर्माण की विधिवत शुरुआत की थी जबकि स्टील काटने का काम 2007 में ही शुरू हो चुका था। रक्षा मंत्री ने स्वदेशी विमानवाहक पोत के 2014 में नौसेना में शामिल होने की उम्मीद जताई थी। ताजा अनुमानों के तहत यह 2018 तक नौसैनिक बेड़े में शामिल हो सकेगा।

ऐसा है आइएनएस विक्रांत

-16 हजार टन फौलाद को काटकर बना है

- सतह से 50 फीट ऊंचा, 262 मीटर लंबा और 60 मीटर चौड़ा

-1550 नौसेनिक एक वक्त में होंगे तैनात

-यह विमानवाहक पोत अपने साथ 35 लड़ाकू विमान लेकर चल सकेगा।

- दो रनवे होंगे जिससे हर तीसरे मिनट विमान उड़ान भर सकेंगे

- मिग-29 के, स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान व कामोव 31 हेलीकॉप्टरों से लैस होगा

- सतह से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी की एलआर सैम मिसाइलें भी होंगी तैनात

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