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फिर संकट में गरीबों का 'हिंदुस्तानी' दवाखाना

'सस्ते दवाखाने' के तौर पर पहचाने जाने वाले भारतीय जेनरिक दवा उद्योग के सामने एक नया संकट आ खड़ा हुआ है।

By anand rajEdited By: Published: Wed, 15 Jun 2016 01:01 AM (IST)Updated: Wed, 15 Jun 2016 01:57 AM (IST)
फिर संकट में गरीबों का 'हिंदुस्तानी' दवाखाना

नई दिल्ली। विकासशील देशों के गरीब मरीजों के लिए 'सस्ते दवाखाने' के तौर पर पहचाने जाने वाले भारतीय जेनरिक दवा उद्योग के सामने एक नया संकट आ खड़ा हुआ है। 16 देशों के व्यापार समझौते के लिए चल रही रीजनल कांप्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) की बैठक के दौरान सस्ती जेनरिक दवाओं की बिक्री से जुड़े नियमों को सख्त करने की कोशिश हो रही है। दुनिया भर के संगठनों ने खास तौर पर भारत से अपील की है कि वह समझौते में ऐसे प्रावधानों को लागू नहीं होने दे।

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स्वास्थ्य सुविधाओं को सभी के लिए पहुंचाने के लिए सक्रिय विभिन्न अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों का कहना है कि रीजनल कांप्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में जापान और दक्षिण कोरिया की ओर से कोशिश की जा रही है कि व्यापार समझौते में बौद्धिक संपदा नियमों के आधार पर जेनरिक दवाओं को बेचने से जुड़े कानून को बहुत सख्त कर दिया जाए।

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खास तौर पर नई जेनरिक दवा का बाजार में आना इससे बहुत मुश्किल हो जाएगा। दुनिया की लगभग आधी आबादी इस समझौते में शामिल 16 देशों में ही रहती है। ऐसे में अगर इस तरह के प्रावधान हो गए तो इस आबादी तक सस्ती जेनरिक दवाओं की पहुंच मुश्किल हो जाएगी। आरसीईपी समझौते में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के अलावा चीन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया की सरकारें भी शामिल हैं।

डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर (एमएसएफ) की ओर से चलाए जा रहे 'एक्सेस कैंपेन' की दक्षिण एशिया प्रमुख लीना मेंघाने कहती हैं कि पिछले हफ्ते ही भारत के स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा था कि सस्ती दवाओं को उपलब्ध करवाने के लिए भारत ट्रिप्स समझौते के लचीलेपन को जारी रखने के लिए कृत संकल्प है। ऐसे में यह हमारी सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उसकी ओर से इस समझौते में भाग ले रहे प्रतिनिधि हमारे इस वादे के पालन में कोई कसर नहीं छोड़ें।

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दुनिया भर के ऐसे संगठनों ने इस समझौते में शामिल सभी देशों की सरकारों को पत्र लिखकर जेनरिक दवाओं पर सख्ती लागू करने से बचने की अपील की है। पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन आफ ऑस्ट्रेलिया की बिलिंडा तावसेंड कहती हैं कि आरसीईपी समझौते से विकासशील देशों में सस्ती दवा सप्लाई करने के लिहाज से भारत और चीन की भूमिका पर चोट पहुंचने का खतरा पैदा हो गया है। विकासशील देशों के मरीजों को इलाज मुहैया करवाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि उन्हें सस्ती दर पर दवाएं उपलब्ध हों। खास तौर पर एचआइवी, टीबी, वायरल हेपेटाइटिस और विभिन्न गैर संक्रामक बीमारियों के इलाज में इन दवाओं की भूमिका बेहद अहम है।

इससे पहले अमेरिका और जापान सहित 12 देशों के ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप में भी ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिन्हें वापस लेने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।

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