Positive India : भारतीय वैज्ञानिक अमेरिका में कोरोना से जुड़े परीक्षणों में निभा रही हैं खास भूमिका
कोरोना से लड़ाई के लिए देश-दुनिया में भारतीय वैज्ञानिक लगे हुए हैं। इसी क्रम में कोलकाता की शोध वैज्ञानिक शुभार्थी दास अमेरिका के सबसे बड़े इम्यूनिटी टेस्ट से जुड़ी हैं।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। कोरोना से लड़ाई के लिए देश-दुनिया में भारतीय वैज्ञानिक लगे हुए हैं। इसी क्रम में कोलकाता की शोध वैज्ञानिक शुभार्थी दास अमेरिका के इम्यूनिटी टेस्ट से जुड़ी हैं। इस टेस्ट से 300 से अधिक शोधकर्ता, डॉक्टर और हेल्थ वर्कर्स जुड़े हुए हैं। स्टैनफोर्ड के नेतृत्व में यूएसए के इस पहले बड़े सामूहिक एंटीबॉडी-परीक्षण अध्ययन के परिणाम जल्द प्रकाशित होने वाले हैं।
शुभार्थी दास के अनुसार, मैं इस समय दुनिया भर के वैज्ञानिकों के साथ कुछ सहयोगी परियोजनाओं पर एक स्वतंत्र सलाहकार के रूप में काम कर रही हूं, जो COVID-19 डायग्नोस्टिक्स में क्रांति लाने के लिए काम कर रहे हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में SARS-CoV-2 वायरस के प्रसार से निपटने के लिए एक सटीक, तीव्र, सस्ती और आसानी से उपलब्ध तकनीक के विकास की काफी आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि हम इंफेक्शन वेव्स का संभावित टाइमलाइन तलाशने में भी लगे हैं। उन्होंने कहा कि आईजीएम और आईजीजी एंटीबॉडी की उपस्थिति से इंफेक्शन पैटर्न को समझने में मदद मिल सकती है। उन्होंने कहा कि अब तक के अनुसंधान के अनुसार यदि कोई व्यक्ति लगभग सात दिनों के अंदर वायरस से संक्रमित है तो उसके शरीर में आईजीएम एंटीबॉडी एक समुचित मात्रा में होगी। अगर व्यक्ति का प्राथमिक एक्सपोजर उससे अधिक दिन से पहलेॉ होगा, तो उसके शरीर में आईजीजी होगा।
शुभार्थी दास ने बताया कि मैं स्वैच्छिक प्रयोगशाला वैज्ञानिक के रूप में स्टैनफोर्ड मेडिकल सेंटर के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर एंटीबॉडी-परीक्षण से जुड़े प्रयोगशाला परीक्षण करती रही हूं। हालांकि, एंटीबॉडी, जो वायरल संक्रमण के जवाब में शरीर में उत्पन्न होने वाले कण हैं, हमेशा संक्रमण की सक्रिय स्थिति को मान्य नहीं करते हैं। वे बेहद उपयोगी जानकारी दे सकते हैं, जैसे संक्रमित और प्रतिरक्षा जनसंख्या का प्रतिशत, सही महामारी संबंधी आंकड़े, बेहतर महामारी विज्ञान मॉडल और चिकित्सीय और वैक्सीन विकास के फायदे और नुकसान। इन सबके अलावा, एंटीबॉडी-पॉजिटिव व्यक्ति चिकित्सीय प्लाज्मा के दाता बन सकते हैं।
इससे भी जुड़ी रहीं शुभार्थी
शुभार्थी दास ने कहा कि मैं एक दशक से फैटी लीवर रोग, मादक हैपेटाइटिस और फाइब्रोसिस पर प्रमुख रूप से ध्यान देने के साथ ही लीवर, गुर्दे और आंत जैसे अंगों में रोग प्रगति और उसके विविध पक्षों पर व्यापक शोध कर रही हूं। इस वैश्विक महामारी के मद्देनजर मुझे इम्यूनोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, आणविक जीव विज्ञान, और रीयल-टाइम पीसीआर, एलिसा, वायरल वेक्टर डिलीवरी, इम्यूनो-स्टेनिंग और एडवांस इमेजिंग जैसी तकनीकों में अपने प्रशिक्षण को नियोजित करना पड़ा। शुभार्थी दास ने बताया कि मेरे पिता ने विभिन्न कारोबार किए और मेरी मां गृहिणी हैं। वे हमेशा मेरी अकादमिक गतिविधियों के बड़े समर्थक रहे हैं। मेरे माता-पिता दोनों मूल रूप से पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के बावाली नामक एक गांव से हैं। मैंने अपना शुरुआती बचपन वहीं बिताया। हालांकि मुझे कोलकाता के प्रीमियर स्कूल में भर्ती करने के लिए वे बेहाला मूव हुए। शुभार्थी दास ने बताया कि मैं सामाजिक और आर्थिक तौर पर वंचित युवाओं की फ्रीडम इंग्लिश एकेडमी के तहत सहायता करती हूं। इसके साथ ही मैं 16 से 17 बच्चों की एक क्लास लेती हूं और उन्हें जीवन और जीविका की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करने में लगी हूं।