अंतरिक्ष में अलग नजर आती है भारत की हवा, वजह जानकर भूल जाएंगे खेतों में आग लगाना
यूरोप के नए उपग्रह सेंटनल-5पी ने भारत के ऊपर मौजूद वायुमंडल में काफी मात्रा में फॉर्मलडिहाइड मौजूद पाई है, जिससे भारत की हवा अलग नजर आती है।
नई दिल्ली (एजेंसी)। आपको जानकार हैरानी होगी कि अंतरिक्ष से भारत की हवा इसके आसपास के दक्षिण एशियाइ देशों से अलग नजर आती है। क्या ये बढ़ते प्रदूषण का नतीजा है, अगर नहीं तो ऐसा क्यों है? दरअसल, यूरोप के नए उपग्रह सेंटनल-5पी ने भारत के ऊपर मौजूद वायुमंडल में काफी मात्रा में फॉर्मलडिहाइड मौजूद पाई है। इस फॉर्मलडिहाइड के कारण भारत की हवा पड़ोसी देशों से भिन्न है। फॉर्मलडिहाइड एक रंगहीन यानी कलरलेस गैस है, जो वैसे तो प्राकृतिक तौर पर पेड़-पौधों और अन्य वनस्पतियों के जरिए छोड़ी जाती है। लेकिन इसके साथ-साथ प्रदूषण फैसलाने वाली गतिविधियों के कारण भी यह गैस पैदा होती है।
हवा की गुणवत्ता पर सेंटनल-5पी उपग्रह की नजर
सेंटनल-5पी उपग्रह ने ये पाया है कि भारत के ऊपर फॉर्मलडिहाइड गैस की मात्रा ज्यादा है। बता दें कि सेंटनल-5पी उपग्रह को पिछले साल अक्टूबर में दुनिया भर में हवा की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए लॉन्च किया गया था। ऐसा माना जा रहा है कि इस उपग्रह के जरिए जुटाई जा रही जानकारियों के माध्यम से वायुमंडल को साफ रखने के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।
जानिए क्या है फॉर्मलडिहाइड गैस?
- फॉर्मलडिहाइड एक रंगहीन यानी कलरलेस गैस है।
- वायमुंडल में नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसे अहम घटकों की तुलना में फॉर्मलडिहाइड (CH₂O ) का सिग्नल बहुत कमजोर होता है।
- फॉर्मलडिहाइड में कई तरह के अस्थिर जैविक यौगिक होते हैं। वनस्पति उनका प्राकृतिक स्रोत है मगर आग या प्रदूषण के कारण भी उनकी मात्रा बढ़ सकती है।
- कोयला जलाने या जंगल की आग के कारण फॉर्मलडिहाइड की मात्रा बढ़ सकती है।
- भारत में खेतों में आग लगाने की खबरें आम हैं, ऐसे में एक ये कारण भी फॉर्मलडिहाइड के बढ़ने का हो सकता है।
इससे क्या है खतरा
- ग्राउंड लेवल ओजोन बनने की संभावना। दरअसल, अस्थिर जैविक यौगिक जब जीवाश्म ईंधनों के जलने से पैदा होने वाली नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सूरज की रोशनी के संपर्क में आते ही प्रतिक्रिया के तौर पर ग्राउंड लेवल ओजोन बनती है।
- इससे सांस लेने में गंभीर दिक्कतें पैदा होगी हैं और स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
सेनिटल-5पी उपग्रह का महत्व
सेंटनल-5पी (S5P) को यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने यूरोपियन यूनियन के कॉपरनिकस अर्थ-मॉनिटरिंग कार्यक्रम के लिए लॉन्च किया था। इस उपग्रह में लगा ट्रोपोमी उपकरण वायुमंडल में फॉर्मलडिहाइड के अलावा नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन, सल्फर डाइऑक्साइड, मीथेन, कार्बन मोनॉक्साइड और एरोसोल्स (छोटे वाष्प या कण) के अंशों का पता लगा सकता है। ये सभी सांस लेने में दिक्कत पैदा करती हैं। इन्हें जलवायु परिवर्तन के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है।