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मुश्किलों के बाद मिलेंगी मंजिल, अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने के ये हैं कुछ उपाय

भले ही कोरोना से अर्थव्‍यवस्‍था को नुकसान हुआ है लेकिन इसको कुछ उपायों के जरिए दोबारा पटरी पर लाया जा सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 07 Jun 2020 08:30 AM (IST)Updated: Sun, 07 Jun 2020 08:30 AM (IST)
मुश्किलों के बाद मिलेंगी मंजिल, अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने के ये हैं कुछ उपाय
मुश्किलों के बाद मिलेंगी मंजिल, अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने के ये हैं कुछ उपाय

विवेक कौल। पूर्वानुमान बताते हैं कि इस वर्ष में अर्थव्यवस्था पिछले साल के मुकाबले ज्यादा सिकुड़ने वाली है। इसका मुख्य कारण आर्थिक गतिविधियों का गिरना है। सिर्फ अप्रैल महीने के सकल कर संग्रह में इसकी झांकी देखी जा सकती है। पूरे महीने में केंद्र सरकार केवल 67,557 करोड़ रुपये एकत्र कर सकी। सबसे बुरी मार वस्तु और सेवा कर पर पड़ी। इसमें उसके खाते में सिर्फ 5,934 करोड़ रुपये ही आए जो पिछले साल के मुकाबले 87 फीसद कम रहा। आयकर और सीमा शुल्क की कमाई भी 32 और 70 फीसद गिरी। उत्पाद शुल्क पूरे महीने में महज 80 करोड़ रुपये रहा। आर्थिक गतिविधियों का अप्रैल महीने में ठप रहने के चलते कमाई के मोर्चे पर सरकार की यह दुर्गति हुई है।

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अब जब लॉकडाउन खुला है तो लोग शारीरिक दूरी जैसे तमाम एहतियात बरतते हुए निकल रहे हैं और खरीदारी वगैरह कर सकते हैं, लेकिन ऐसा होना बहुत संभव नहीं दिख रहा। लॉकडाउन की वजह से काफी लोगों की नौकरियां चली गयी है या फिर कमाई काफी गिर गयी है। ऐसी स्थिति में लोग बचत पर ध्यान देते हैं। लिहाजा लोग गैर जरूरी चीजों की खरीदारी से कतराएंगे। इस वजह से व्यापार पहले जैसा नहीं रहेगा तो अर्थव्यवस्था पर मार पड़ना लाजिमी है। ऐसे में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जा सकता है? एक उपाय यह है कि सरकार वाहनों पर वस्तु और सेवा कर घटाने का निर्णय ले।

ये कटौती कम से कम दस प्रतिशत की होनी चाहिए। इससे वाहनों के दाम में खासी गिरावट आएगी और लोगों के वाहन खरीदने की संभावना बढ़ जाएगी। अगर सरकार ऐसा करती है तो वो हर वाहन पर पहले से कम माल और सेवा कर कमाएगी, लेकिन पहले से ज्यादा वाहन बिक सकते हैं तो कुल मिलाकर सरकार की आय ज्यादा होगी। इसके अलावा माल और सेवा कर कम करने के और भी कई फायदे हैं। अगर बिक्री ज्यादा होगी तो वाहनों का उत्पादन भी बढ़ेगा। अगर उत्पादन बढ़ेगा तो सरकार ज्यादा उत्पाद शुल्क भी कमाएगी। ज्यादा बिक्री होने से फायदा केवल सरकार तक ही नहीं सीमित रहेगा, इससे लोगों का भी फायदा होगा। कोई भी वाहन कंपनी सबकुछ अपने कारखाने में नहीं बनाती है।

पहिए कोई और बनाता है, स्टीयरिंग कोई और। शीशा कहीं और बनता है तो स्टील कहीं और से आता है। जब ज्यादा वाहन बिकेंगे तो इन कंपनियों का भी फायदा होगा। इसके अलावा ऑटो और ऑटो सहयोगी क्षेत्र में बहुत ज्यादा संविदा कर्मी काम करते हैं। इन कर्मियों का भी फायदा होगा। जब ये पैसे कमाएंगे तो उससे खर्च भी करेंगे, और इससे सरकार के वस्तु और सेवा कर संग्रह में और भी इजाफा होगा। जब ऑटो और ऑटो सहायक क्षेत्र की कंपनियां ज्यादा व्यापर करेंगी तो मुनाफा भी कमाएंगी और इस मुनाफे पर आयकर भरेंगी। बढ़ती आर्थिक गतिविधि का हमेशा एक गुणक प्रभाव पड़ता है।

कठिन आर्थिक परिस्थिति में यह माना जाता है कि सरकार ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च करे और इससे लोगों की आमदनी बढ़े और अर्थव्यवस्था पटरी पर वापस आ जाये। भारतीय सरकार की अभी जो स्थिति है वो एक निश्चित सीमा से बाहर पैसा खर्च नहीं कर सकती है। ऐसा करने से अर्थव्यवस्था को और भी झटका पहुंच सकता है। इसलिए ये बहुत जरूरी हो गया है कि खर्च और कराधान में एक संतुलन बना रहे। इसका एक तरीका है वस्तु और सेवा कर में कटौती करना और लोगों को वाहन खरीदने के लिए प्रोत्साहित करना। और अंत में, जैसाकि मैंने पहले भी लिखा है, सितंबर 2019 में कारपोरेट आयकर घटाने से ज्यादा जरूरी था व्यक्तिगत आयकर को घटाना।

वहां सरकार एक बहुत बड़ा मौका खो बैठी। पर इस गलती का सुधार अब भी हो सकता है। अगर व्यक्तिगत आयकर कटौती का कोई निर्णय लिया जाए तो ये बहुत जरूरी हो जाता है कि सरकार पैसा कमाने के लिए और भी नए तरीकों की तरफ ध्यान दे। सरकार और सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्यमों के पास काफी जमीन है। इस जमीन को धीरे धीरे बेचा जा सकता है और पैसा कमाया जा सकता है। चीन में, राज्यसरकारें अक्सर ऐसा करती है।

(वरिष्ठ अर्थशास्त्री और इजी मनी ट्राइलॉजी के लेखक हैं)

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