रूस को लेकर भारत पर नहीं चलेगा कोई दबाव, रक्षा मंत्री सीतारमन का अमेरिका को दो टूक जवाब
अमेरिका को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि भारत अपनी रक्षा तैयारियों के लिए जिस तरह से रूस पर निर्भर है उसे कुछ वर्षों में नहीं बदला जा सकता।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। सोमवार को दहेज (गुजरात) में रूस से एलएनजी की पहली खेप प्राप्त करने के साथ ही भारत ने यह ऐलान किया है कि वह अगले 20 वर्षों में भारत 25 अरब डॉलर मूल्य की एलएनजी की खरीद करेगा। मंगलवार को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो टूक कहा कि रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने को लेकर बातचीत अंतिम चरण में है और जल्द ही इस पर फैसला होगा।
भारत की तरफ से उक्त एलान तब किये गये हैं जब अमेरिका की तरफ से परोक्ष तौर पर धमकी दी गई है कि उसे अमेरिका और रूस में से किसी एक को चुनना होगा। पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ सोची में अनौपचारिक बैठक करके पहले ही यह जता दिया था कि भारत रूस के साथ रिश्तों में आई शिथलता को तोड़ने जा रहा है। भारतीय अधिकारियों की मानें तो सोमवार को प्रीटोरिया (दक्षिण अफ्रीका) में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के बीच हुई मुलाकात और अगले हफ्ते शंघाई सहयोग संगठन (सीएसओ) की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी व राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से संभावित मुलाकात भी रिश्तों को ज्यादा प्रायोगिक बनाने में मददगार साबित होगी। दोनों देशों के बीच उच्च स्तर पर हाल के दिनों में ज्यादा मुलाकातों के पीछे एक वजह यह भी है कि रूस पर अमेरिकी प्रतिबंध से अपने हितों को बचाने के उपाय खोजे जा रहे हैं।
सीतारमण से जब यह पूछा रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों से क्या भारत की रक्षा खरीद पर असर पड़ेगा तो उनका जवाब था, 'हमने अमेरिका को भारत व रूस के रिश्तों के बारे में साफ साफ बताया है कि कितना पुराना और हर मौके पर खरा उतरने वाला रिश्ता है। भारत अपने रक्षा तैयारियों के लिए अभी भी बहुत हद तक रूस पर निर्भर है। अमेरिका की तरफ ले लगाये जा रहे प्रतिबंध (काटसा- अमेरिका के विरोधियों पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून) से इस पर कोई असर नहीं होगा।' रूस पर अमेरिका ने जनवरी, 2018 से प्रतिबंध लगाना शुरू किया है। इससे भारत की रक्षा खरीद पर असर पड़ने की बात कही जा रही है। हाल ही में भारत के दौरे पर आये अमेरिकी आर्म्स सर्विस कमिटी के चेयरमैन मैक थार्नबेरी ने कहा था कि रूस से मिसाइल खरीदने के फैसले को अमेरिका अपने हितों के खिलाफ मानेगा। अमेरिका को सबसे ज्यादा एस-400 मिसाइल सिस्टम का सौदा लग रहा है, क्योंकि इसके जरिए रूस को 40 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की आय होगी।
सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि भारत अपनी रक्षा तैयारियों के लिए जिस तरह से रूस पर निर्भर है उसे कुछ वर्षों में नहीं बदला जा सकता। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि तकरीबन 15 वर्ष पहले भारत अपनी कुल रक्षा जरुरतों का 80 फीसद अमेरिका से खरीदता था, लेकिन अब 60 फीसद ही लेता है। इस दौरान अमेरिका भी भारत को रक्षा उपकरणों का एक प्रमुख निर्यातक बन कर उभरा है। माना जा रहा है कि जुलाई, 2018 में भारत व अमेरिका के बीच होने वाली पहली रणनीतिक वार्ता (दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की अगुवाई में) में रूस एक अहम एजेंडा रहेगा।