अमेरिका का दावा- भारत से हमेशा के लिए हो सकता है मलेरिया का सफाया
मलेरिया प्लाज्मोडियम नाम के पैरासाइट से होने वाली बीमारी है। यह मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है। ये मच्छर गंदे पानी में पनपता है।
बेंगलुरु, आइएएनएस। अगर अनुमति मिल जाती है, तो भारत एक नई लेकिन विवादास्पद तकनीक के लिए परीक्षण का मैदान बन सकता है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि इससे मलेरिया का पूरी तरह से सफाया हो जाएगा। ये तकनीक अमेरिका द्वारा इजाद की गई है।
दरअसल, मलेरिया प्लाज्मोडियम नाम के पैरासाइट से होने वाली बीमारी है। यह मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होता है। ये मच्छर गंदे पानी में पनपता है। आमतौर पर मलेरिया के मच्छर रात में ही ज्यादा काटते हैं। कुछ मामलों में मलेरिया अंदर ही अंदर बढ़ता रहता है। ऐसे में बुखार ज्यादा ना होकर कमजोरी होने लगती है और एक स्टेज पर मरीज को हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है।
जीन संपादन प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसी) के शोधकर्ताओं ने अपने परिसर इरविन (यूसीआई) और सैन डिएगो (यूसीएसडी) में एनोफिलीज मच्छरों को संशोधित करने के लिए एक तनाव पैदा किया है जो प्लाज्मोडियम पैरासाइट द्वारा होने वाले संक्रमण को रोकता है, यही मलेरिया का कारण बनता है। इसे 'जीन ड्राइव' कहा जाता है। उन्होंने दिखाया कि जीन जो इन आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) मच्छरों में मलेरिया के संक्रमण को रोकता है, उनके वंश को पारित किया जा सकता है।
अमेरिकी शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को अपनी प्रयोगशाला में तो करके देख लिया है और वे सफल भी रहे हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये तकनीक किसी जंगल में काम करेगी, जहां सदियों से मलेरिया का मच्छर पनप रहा है और लोगों का शिकार कर रहा है। यही जांच करने के लिए शोधकर्ताओं ने भारत को चुना है। यहां अमेरिका टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर नई तकनीक पर प्रयोग करने की योजना बना रही है, जिसके लिए 460 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है।
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