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साइबर हमले से निपटने के लिए कितना तैयार है भारत

इंटरनेट वायरस अथवा हैकिंग के जरिये सेंधमारी वह अपराध है जिसमें आमतौर पर अपराधी घटनास्थल से दूर होता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 16 May 2017 01:15 PM (IST)Updated: Tue, 16 May 2017 01:15 PM (IST)
साइबर हमले से निपटने के लिए कितना तैयार है भारत
साइबर हमले से निपटने के लिए कितना तैयार है भारत

शशांक द्विवेदी

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इतिहास के अब तक के सबसे बड़े साइबर हमले ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। इसे रैनसमवेयर अटैक कहा जा रहा है। यह ऐसा वायरस है जिससे डाटा लॉक हो जाता है। उसे अनलॉक करने के लिए हैकर्स फिरौती मांगते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में अभी जितने भी बड़े सर्वर मौजूद हैं, वे हैकिंग प्रूफ नहीं हैं। हम तभी जागते हैं, जब कोई बड़ा साइबर हमला हो। साथ ही हैकर्स के नए तौर-तरीकों का हल ढूंढ़ने में महीनों लग जाते हैं।

आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि पिछले पांच साल में साइबर हैकिंग के मामले तीन गुना तक बढ़ गए हैं। डिजिटल इंडिया और कैशलेस इकोनॉमी के हल्ले के बीच साइबर सुरक्षा को मजबूत करने में सरकार ज्यादा गंभीर नहीं है। गृह मंत्रलय की रिपोर्ट के मुताबिक गत पांच वर्षो की तुलना में इस वर्ष साइबर अपराध 60 फीसद की दर से बढ़ा है। गृह मंत्रलय के आंकड़ों के अनुसार देश में गत वर्ष 32 हजार से ज्यादा साइबर अपराध दर्ज किए गए, जबकि उसके पहले तीन सालों के दौरान यह आंकड़ा 96 हजार था। केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक देश में पिछले साल करीब 72 प्रतिशत कंपनियों पर साइबर हमले हुए और 63 प्रतिशत कंपनियों को इससे आर्थिक नुकसान भी हुआ।

मशहूर रिसर्च फर्म गार्टनर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक ऑनलाइन कारोबार करने वाली अधिकांश कंपनियों पर साइबर हमले का खतरा मंडराएगा, क्योंकि कारोबार की ज्यादातर चीजें डिजिटल हो जाएंगी। ऐसे में आइटी सिक्योरिटी फर्म्स पर उन्हें सुरक्षित रखने का बेहद दबाव होगा।1देश के सभी आइपी एड्रेस की निगरानी करने वाली साइबर सुरक्षा एजेंसी (सीईआरटी-इन) के मुताबिक 2016 की पहली तिमाही में ही 8056 वेबसाइट्स हैक की गई थीं। यानी हर दिन करीब 90 साइट्स। जिनमें से सबसे ज्यादा हमले फाइनेंशियल और इंश्योरेंस सेक्टर पर किए गए थे। नोटबंदी के बाद नरेंद्र मोदी सरकार लगातार कैशलेस लेन-देन को बढ़ावा देने की बात कर रही है, लेकिन इसमें साइबर हमले का खतरा भी काफी बढ़ गया है।

केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद माइक्रो-एटीएम और पीओएस काउंटर के बढ़ते इस्तेमाल के मद्देनजर देश की प्रमुख साइबर सुरक्षा एजेंसी सीईआरटी-इन ने ग्राहकों, बैंकरों और व्यापारियों को आगाह किया है। साथ ही किसी भी संभावित साइबर हमले को रोकने के लिए उनसे उच्च एनक्रिप्शन तकनीक को अपनाने के लिए कहा है। 1देश के सरकारी रक्षा, विज्ञान और शोध संस्थान और राजनयिक दूतावास पर भी साइबर जासूसी का आतंक मंडरा रहा है। जैसे-जैसे इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ रही है वैसे-वैसे साइबर सुरक्षा के समक्ष खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं। ये खतरे सारी दुनिया में बढ़ रहे हैं और इसका एक बड़ा कारण यह है कि साइबर सेंधमारी करने वाले तत्वों की पहचान भी मुश्किल है और उन तक पहुंच भी।

इंटरनेट वायरस अथवा हैकिंग के जरिये सेंधमारी वह अपराध है जिसमें आमतौर पर अपराधी घटनास्थल से दूर होता है। कई बार तो वह किसी दूसरे देश में होता है और ज्यादातर मामलों में उसकी पहचान छिपी ही रहती है। देश में साइबर सुरक्षा में मैनपावर की बहुत कमी है। साथ ही कड़े कानून का भी अभाव है। साइबर सुरक्षा के आंकड़ों के अनुसार चीन और अमेरिका के मुकाबले देश में साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की भी भारी कमी है। हालांकि देश में साइबर सुरक्षा को लेकर सजगता तो बढ़ी है, लेकिन अभी भी वह पर्याप्त नहीं है। फिलहाल स्थिति बहुत ज्यादा चिंताजनक है जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है ।

यह सही है कि साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई संस्थाएं बनाई गई हैं, लेकिन उनके बीच अपेक्षित तालमेल का अभाव अभी भी दिखता है। यूरोपोल (यूरोपियन पुलिस एजेंसी) सहित कई देशों की एजेंसियां इस हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को ट्रैक करने के लिए एफबीआइ के साथ मिलकर काम कर रही हैं। अब भारत को भी सचेत और सतर्क हो जाना चाहिए। सरकार को डिजिटल इंडिया की तर्ज पर साइबर सुरक्षा के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। जब सब कुछ इंटरनेट के भरोसे हो जाएगा तो उसकी सुरक्षा भी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में होनी चाहिए।

(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर हैं )


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