भारत अक्षय ऊर्जा के मामले में अत्यंत धनी देश रहा, तेजी से बढ़ रहा लक्ष्य हासिल करने की ओर
बढ़ती जनसंख्या की ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए अक्षय ऊर्जा का प्रयोग नितांत आवश्यक है। देश में जीवाश्म ईंधन के बजाय ऊर्जा के गैर-परंपरागत (नवीकरणीय) ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल को खूब बढ़ावा मिल रहा है। इसके सुखद परिणाम भविष्य में देखने को मिलेंगे।
नई दिल्ली, सुधीर कुमार। जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में ठोस नीतियां बनाने और निर्धारित पर्यावरणीय लक्ष्यों को हासिल करने में भारत की प्रतिबद्धता की दुनियाभर में सराहना होती रही है। हाल में आई एक और रिपोर्ट इस बात को पुष्ट करती दिखाई देती है। हालिया नवीकरणीय ऊर्जा: वैश्विक स्थिति रिपोर्ट-2022 बताती है कि भारत 2021 में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के मामले में चीन और रूस के बाद तीसरे स्थान पर रहा।
उल्लेखनीय है कि 2020 में भारत चौथे पायदान पर रहा था। जाहिर है, नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की धमक लगातार बढ़ती जा रही है। साथ ही भारत कार्बन शून्यता और सतत विकास की राह पर भी तेजी से आगे बढ़ रहा है।
2015 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का नेतृत्व करने की बात हो या पिछले साल ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य घोषित करने की, भारत अपनी पर्यावरणीय जिम्मेदारियों को बखूबी समझता रहा है। यही वजह है कि देश में जीवाश्म ईंधन के बजाय ऊर्जा के गैर-परंपरागत (नवीकरणीय) ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल को खूब बढ़ावा मिल रहा है। प्राकृतिक रूप से भारत अक्षय ऊर्जा के मामले में अत्यंत धनी देश रहा है।
उष्णकटिबंधीय जलवायु होने के कारण भारत में सौर ऊर्जा और विशाल समुद्री तटीय क्षेत्र होने के कारण पवन और ज्वारीय तरंगों की प्रबलता के कारण ज्वारीय ऊर्जा तथा कृषि एवं पशुपालन का लंबा इतिहास होने के कारण बायोगैस जैसे अक्षय ऊर्जा के विविध स्वरूपों के विकास की अपार संभावनाएं हैं। ऊर्जा के ये स्नेत स्वच्छ, प्रदूषण रहित, किफायती और पर्यावरण के लिए अनुकूल हैं। परंपरागत ऊर्जा (गैर-नवीकरणीय) स्रोतों के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों और निकट भविष्य में इसके समाप्त होने के भय का समाधान अक्षय ऊर्जा में ही निहित है।
भारत आगामी आठ वर्षों में अपनी स्थापित बिजली का 40 फीसद हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन से प्राप्त करने का लक्ष्य घोषित किया है और 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को 45 प्रतिशत से कम करके 2005 के स्तर से नीचे करने में जुटा है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार आगामी आठ वर्षों में भारत में सौर और पवन ऊर्जा की संयुक्त स्थापित क्षमता 51 प्रतिशत हो जाएगी, जो अभी 23 प्रतिशत है।
स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में भारत एक आकर्षक बाजार में परिणत हो रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-7 के देशों से भारत में स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में निवेश का आग्रह किया है।कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे संसाधन समाप्ति की ओर हैं। ऐसे में ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों-सौर, पवन, भूतापीय, बायोगैस और ज्वारीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीतियां बनाकर किफायती दरों पर इसकी सुलभता सुनिश्चित करानी होगी।
(लेखक बीएचयू में शोधार्थी हैं)