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1971 युद्ध: 'जंग हारने के बाद मेरे ही कमरे में ठहरे थे पाकिस्तानी सेना प्रमुख नियाजी'

47 साल पहले तीन दिसंबर बांग्लादेश की आजादी के लिए युद्ध शुरू हुआ था। तब कर्नल (रि.) दिलीप कुमार घोष के कमरे में रखे गए थे PAK सेना जनरल नियाजी।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 09:26 AM (IST)Updated: Mon, 03 Dec 2018 09:26 AM (IST)
1971 युद्ध: 'जंग हारने के बाद मेरे ही कमरे में ठहरे थे पाकिस्तानी सेना प्रमुख नियाजी'
1971 युद्ध: 'जंग हारने के बाद मेरे ही कमरे में ठहरे थे पाकिस्तानी सेना प्रमुख नियाजी'

महू (मध्य प्रदेश), आदित्य सिंह। मुझे आज भी वो दिन याद है...47 साल पहले आज ही के दिन (तीन दिसंबर) युद्ध शुरू हुआ था। जंग थमी और 13 दिन बाद पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के आगे सरेंडर कर दिया था। युद्ध जीतने के बाद हम कलकत्ता (अब कोलकाता) स्थित सैन्य छावनी फोर्ट विलियम में ठहरे थे। 16 दिसंबर को मुझे अचानक कमरा खाली करने को कहा गया। बाद में पता चला कि उस कमरे में पाकिस्तान सेना के जनरल आमिल अब्दुल्ला खान नियाजी और पड़ोस के कमरे में पाकिस्तानी सेना के सैन्य सलाहकार जनरल राव फरमान अली को रखा गया था। यह सुनाने का मकसद सिर्फ बांग्लादेश को आजाद कराने में भारतीय सेना की भूमिका को याद करना ही नहीं है बल्कि यह भी है कि भारतीय सेना युद्धबंदियों के साथ भी सम्मान से पेश आती है।

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यह किस्सा सुनाते हुए महू (मप्र) में रहने वाले 75 वर्षीय कर्नल (रिटायर्ड) दिलीप कुमार घोष की आंखें इस उम्र में भी चमक उठती हैं। अपनी वीरता, बलिदान और हुनर से बांग्लादेश को आजाद करवाने वाले इन सैनिकों को बांग्लादेश आज भी सम्मान देता है। कर्नल घोष वहां 2014 में बुलाए गए थे। वह बताते हैं कि उस समय मैं महज 28 साल का था और युद्ध शुरू होने से कुछ महीने पहले ही कलकत्ता में मेरी पोस्टिंग कर दी गई थी। उस समय देशभर से बंगाली बोलने-जानने वालों की तलाश की जा रही थी। तब सेना आज जितनी बड़ी नहीं थी और उनके जैसे नौजवान अफसरों के जिम्मे भी सबसे अहम काम होते थे। जब युद्ध शुरू हुआ तो घोष बांग्लादेश भी गए और वहां मुक्तिवाहिनी (बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वाला स्थानीय संगठन) के साथ काम किया।

दो दिन पहले ही कर दिया था सरेंडर
महू के रहने वाले कर्नल (रिटायर्ड) इंद्रजीत सिंह गिल भी उस युद्ध में शामिल हुए थे। गिल बताते हैं कि उनके क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना ने दो दिन पहले ही 14 दिसंबर को सरेंडर कर दिया था। हालांकि, औपचारिक आत्मसमर्पण ढाका में 16 दिसंबर को हुआ।


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