प्राइम टीम, नई दिल्ली। देश में सबसे अधिक रोजगार देने वाले कृषि और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने जनवरी-मार्च 2023 तिमाही में अच्छा प्रदर्शन किया है। इसकी बदौलत इस तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर सभी अनुमानों को पीछे छोड़ते हुए 6.1% पर पहुंच गई। इसका असर पूरे 2022-23 की विकास दर पर भी हुआ और जीडीपी ग्रोथ रेट 7.2% दर्ज हुई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की तरफ से बुधवार को जीडीपी के आंकड़े जारी किए गए। खुद एनएसओ और रिजर्व बैंक ने पहले 7% ग्रोथ का अनुमान जताया था। आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं का अनुमान 7% से भी कम था। 2021-22 में विकास दर 9.1% थी। 2022-23 में स्थिर मूल्यों पर जीडीपी का आकार 160.06 लाख करोड़ रुपये आंका गया है। मौजूदा मूल्यों पर यह 272.41 लाख करोड़ रुपये है।

रिजर्व बैंक ने एक दिन पहले ही कहा था कि इकोनॉमी की स्थिति को प्रदर्शित करने वाले लगभग 70 हाई फ्रीक्वेंसी इंडिकेटर हैं। चौथी तिमाही में सभी इंडिकेटर ने अच्छा प्रदर्शन किया है। इसलिए अगर सालाना विकास दर 7% से अधिक हो जाए तो हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए। रिजर्व बैंक ने चौथी तिमाही में 5.1% विकास का अनुमान जताया था। इसने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए 6.5% विकास का अनुमान लगाया है।

चौथी तिमाही में अच्छा प्रदर्शन

कृषि, वानिकी और फिशिंग में चौथी तिमाही में 5.5% ग्रोथ रही। पहली तिमाही में यह 4.1%, दूसरी में 2.4% और तीसरी तिमाही में 2.5% थी। मैन्युफैक्चरिंग में 4.5% ग्रोथ दर्ज हुई है, लेकिन इसे इस लिहाज से अच्छा कहा जा सकता है कि पहली तिमाही में 6.1% ग्रोथ के बाद दूसरी तिमाही में 3.8% और तीसरी में 1.4% निगेटिव ग्रोथ दर्ज हुई थी। सरकार जीडीपी के आंकड़ों को आठ इंडस्ट्री सेगमेंट में बांटती है। सबसे अधिक 10.4% ग्रोथ कंस्ट्रक्शन में और 9.1% ग्रोथ ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट, कम्युनिकेशन सेक्टर में रही। चौथी तिमाही में ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) में 6.5% वृद्धि हुई है।

पूरे साल का आंकड़ा देखें तो जीवीए में 15% से कुछ अधिक हिस्सेदारी वाले कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र में 2022-23 में 4% ग्रोथ रही। यह पिछले साल 3.5% थी। दूसरी और तीसरी तिमाही में निगेटिव ग्रोथ के कारण मैन्युफैक्चरिंग की सालाना ग्रोथ सिर्फ 1.3% रह गई। जीवीए में इसकी हिस्सेदारी 17.7% है। ट्रेड-होटल-ट्रांसपोर्ट ने 14%, कंस्ट्रक्शन ने 10% और बिजली- गैस-जलापूर्ति ने 9% ग्रोथ दर्ज की। निजी निवेश और घरेलू खपत में वृद्धि भी जीडीपी को गति देने में सहायक रही है। 

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी कहते हैं, वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी ग्रोथ रेट 7.2% पर रहना बताता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। वित्त वर्ष 2022 का की ग्रोथ रेट में पॉजिटिव संशोधन के बावजूद यह बढ़त इसे और महत्वपूर्ण बनाती है। चौथी तिमाही में 5.5% की वृद्धि के साथ कृषि ने भी उलटफेर किया।

जोशी ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि इस वित्त वर्ष में ग्रोथ रेट धीमी होकर 6% तक आ जाएगी। दुनिया में मंदी का असर निर्यात पर पड़ा है और ब्याज संवेदनशील क्षेत्रों पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी का कुछ प्रभाव पड़ा है। हालांकि, 6% ग्रोथ के साथ भारत इस वित्त वर्ष में भी सबसे तेजी से बढ़ने वाली जी-20 अर्थव्यवस्था होगा। जहां तक कृषि उत्पादन और कीमतों की बात है, तो वह मानसून पर निर्भर करेगा।

प्रति व्यक्ति जीडीपी 6.1 फीसदी बढ़ी

देश की आबादी 138.3 करोड़ मानते हुए प्रति व्यक्ति जीडीपी 1,15,746 रुपये आंकी गई है। इसमें 6.1% वृद्धि हुई है, जबकि पिछले वित्त वर्ष 8% वृद्धि हुई थी। यह आकलन 2011-12 के स्थिर मूल्य पर है। मौजूदा मूल्यों पर प्रति व्यक्ति जीडीपी 1,96,983 रुपये है और इसमें साल भर में 14.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

भारत का दशक नहीं, बल्कि भारत की सदी

जीडीपी के आंकड़ों ने इस बात को साबित किया है कि ग्लोबल इकोनॉमी में भारत ब्राइट स्पॉट बना हुआ है। यह स्थिति तब है जब दुनिया के अनेक देशों में आर्थिक हालात कमजोर हैं। इसलिए वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के प्रेसिडेंट बोर्गे ब्रेंडे ने तीन दिन पहले ही भारत के ग्रोथ की तुलना स्नोबॉल इफेक्ट से की थी। स्नोबॉल इफेक्ट का मतलब है कि जब स्नोबॉल किसी ऊंचाई से नीचे आता है तो उसका मोमेंटम लगातार बढ़ता जाता है। ब्रेंडे से पहले मैकिंजे के सीईओ बॉब स्टर्नफेल्स ने कहा कि यह भारत का दशक नहीं बल्कि भारत की सदी है। मॉर्गन स्टैनली का अनुमान है कि भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

मोतीलाल ओसवाल समूह के मुख्य अर्थशास्त्री निखिल गुप्ता कहते हैं, भारत की चौथी तिमाही की वास्तविक जीडीपी 6.1% की दर से बढ़ी, जो कि अपेक्षा से बहुत तेज है। आम सहमति थी कि वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी ग्रोथ रेट 7 फीसदी रहेगी, लेकिन यह 7.2% दर्ज हुई। लगातार तीसरे वर्ष के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि अपेक्षा से बेहतर है।

आगे भी ग्रोथ अच्छी रहने की संभावना

इन अनुमानों के पीछे कई मजबूत कारण हैं। भारत की 70% आबादी 15 से 64 साल के कामकाजी आयु वर्ग की है। अर्थात आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसा है जो खर्च कर सकता है और अर्थव्यवस्था में खपत बढ़ा सकता है। इससे आने वाले समय में शहरों में खपत बढ़ेगी, घरों और वाहनों की डिमांड में इजाफा होगा। इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ा है। 1990 के दशक में सड़क और रेलवे जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर पर जीडीपी का 0.5% भी खर्च नहीं होता था, लेकिन अब यह 1.5% से अधिक हो गया है। बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और बिजनेस का वातावरण बनने से निजी कंपनियां निवेश बढ़ा रही हैं। रिजर्व बैंक के मुताबिक 12 मई को खत्म सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 599.52 अरब डॉलर था। यह कई साल की आयात जरूरतें पूरी करने में सक्षम है।

एसबीआई ने अपनी इकोरैप रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक महंगाई दर 2022 में 8.7% थी, लेकिन कमोडिटी के दामों में गिरावट के बाद 2023 में इसके 7% रहने की संभावना है। जनवरी-मार्च तिमाही में करीब 1700 लिस्टेड कंपनियों के रेवेन्यू में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 12% और मुनाफे में 19% की वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2023-24 में अभी तक 6 अरब डॉलर का एफआईआई आया है, जबकि 2022 में इसमें गिरावट आई थी।

रियल एस्टेट संगठन नारेडको के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. निरंजन हीरानंदानी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने क्षमता वृद्धि, कैपेक्स में वृद्धि, प्रमुख उद्योगों के बेहतर प्रदर्शन, बुनियादी ढांचे के विकास और भू-राजनीतिक सामंजस्य के मामले में अपने वैश्विक साथियों को पीछे छोड़ दिया है। हम अब महंगाई में कमी और विकास को गति देने के साथ ब्याज दरों में कुछ कटौती की आशा कर सकते हैं।

हालांकि कुछ नकारात्मक बिंदु भी हैं। रिजर्व बैंक के अनुसार, 2022-23 में ग्रॉस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 16.3% घटकर 71 अरब डॉलर रह गया। 2021-22 में 81.97 अरब डॉलर का ग्रॉस एफडीआई आया था। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) के अनुसार भारत में ग्रेजुएट या इससे अधिक पढ़े लिखे युवाओं में बेरोजगारी दर 15% से ज्यादा है। यह खपत बढ़ाने में बाधा हो सकता है। कामकाजी आयु के लगभग आधे लोग कृषि पर निर्भर हैं जिस पर जलवायु परिवर्तन का असर लगातार बढ़ रहा है।