इसरो की एक और लंबी छलांग, भारत हैवीवेट रॉकेटों के क्लब में शामिल
इसरो के वैज्ञानिकों ने भारी भरकम मार्क3-डी1 को बोल-चाल की भाषा में 'फैट ब्वॉय' (मोटा लड़का) नाम दिया था।
श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश), प्रेट्र। इसरो ने सोमवार को अंतरिक्ष में एक और लंबी छलांग लगाई। देश के सबसे भारी रॉकेट भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) मार्क3-डी1 से सबसे वजनी संचार उपग्रह जीसेट-19 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर दिया गया। सोमवार शाम ठीक 5:28 बजे 43.43 मीटर लंबे मार्क-3 ने यहां स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी और 16 मिनट बाद उसने जीसेट को मुकाम पर पहुंचा दिया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कामयाबी के लिए इसरो वैज्ञानिकों को बधाई दी है।
करीब 200 हाथियों जितना भारी रॉकेट अपने साथ 3,136 किलोग्राम वजन का संचार उपग्रह जीसेट-19 लेकर गया है। जीएसएलवी मार्क3-डी1 भूस्थैतिक कक्षा में 4,000 किलो और पृथ्वी की निचली कक्षा में 10,000 किलो तक के पेलोड या उपग्रह ले जाने की क्षमता रखता है। रॉकेट में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन लगा है। इसके सफल प्रक्षेपण से भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का भारत का रास्ता साफ होगा। अब तक 2,300 किलो से ज्यादा वजन वाले संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो को विदेशी रॉकेटों पर निर्भर रहना पड़ता था। इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने इसे ऐतिहासिक दिन करार दिया है।
इसरो के वैज्ञानिकों ने भारी भरकम मार्क3-डी1 को बोल-चाल की भाषा में 'फैट ब्वॉय' (मोटा लड़का) नाम दिया था। वहीं, तेलुगु मीडिया में इसे 'बाहुबली' नाम दिया गया। इससे पहले पीएसएलवी को इसरो ने 'वर्कहॉर्स' तो मार्क2 को 'नॉटी ब्वॉय' नाम दिया था।
मील का पत्थर: डॉ. राधाकृष्णन
इसरो के पूर्व प्रमुख व सलाहकार डॉ राधाकृष्णन ने इस सफलता को मील का पत्थर करार दिया है। उन्होंने कहा, इसने प्रक्षेपण उपग्रह की क्षमता 2.2-2.3 टन से करीब दोगुनी 3.5-4 टन कर दी है। हम अब संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर हो जाएंगे।
जीएसएलवी मिशन के डायरेक्टर जी अय्यप्पन ने कहा, यह जीएसएलवी मार्क5 लांच 'मेक इन इंडिया' स्पेस प्रोजेक्ट की सफलता के साथ-साथ सामग्री, डिजाइन और प्रौद्योगिकी के मामले में भी पूरी तरह से स्वदेशी है।'
कैसे काम करता है मार्क3
-पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं।
-फिर सेंट्रल इंजन काम शुरू करता है, जो रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाता है।
-उसके बाद बूस्टर अलग हो जाते हैं। हीट शील्ड भी अलग हो जाती है।
-अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है।
-फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है। बाद में वह भी अलग हो जाता है।
-तब संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है।
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