World Wildlife Fund : कुदरत से खिलवाड़ की लगने वाली आर्थिक चपत में भारत चौथे स्थान पर
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की ग्लोबल फ्यूचर रिपोर्ट के अनुसार कुदरत से छेड़छाड़ का खामियाजा 2050 तक दुनिया को 368 अरब पौंड (34062 अरब रुपये) चुकाना पड़ सकता है।
नई दिल्ली। प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के गंभीर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगे हैं। असमय बाढ़-सूखा, मौसम चक्र में बदलाव, कृषि उत्पादकता में कमी, जैव विविधता का क्षरण और सबसे गंभीर मसला ग्लोबल वार्मिंग। ये कुछ ऐसे बदलाव हैं जिन्हें हम देख-महसूस कर सकते हैं। अब इस छेड़छाड़ के आर्थिक नुकसान का आकलन सामने आया है।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू) की ग्लोबल फ्यूचर रिपोर्ट के अनुसार कुदरत से छेड़छाड़ का खामियाजा 2050 तक दुनिया को 368 अरब पौंड (34062 अरब रुपये) चुकाना पड़ सकता है। आर्थिक नुकसान की इस सूची में भारत 15.6 अरब पौंड (1443 अरब रुपये) के साथ अमेरिका, जापान और ब्रिटेन के बाद चौथे स्थान पर है। दुनिया के 140 देश इस अध्ययन में शामिल किए गए हैं।
740 लाख करोड़ रुपये की चपत
ग्लोबल फ्यूचर रिपोर्ट के अनुसार अगर प्रकृति को सहेजने के गंभीर कदम तुरंत नहीं उठाए गए तो वैश्विक स्तर पर समुद्र तटों को खात्मे, जीवों की प्रजातियों की विलुप्ति और जंगल से लेकर समुद्र तक प्राकृतिक संसाधनों के नाश की आर्थिक कीमत अगले तीस साल में 740 लाख करोड़ रुपये (8 लाख करोड़ पौंड) है।
अपने तरीके का पहला अध्ययन
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ में टिकाऊ अर्थव्यवस्था की निदेशक कारेन एलिस के अनुसार यह चपत बहुत संकीर्ण अनुमान पर तैयार है। इसमें केवल छह पारिस्थितिकी सेवाओं को शामिल किया गया है। वास्तविक कीमत इससे कहीं ज्यादा होगी। प्रकृति के नुकसान की समग्र रूप से कीमत आंकने का यह पहला प्रयास है। इससे पहले जलवायु परिवर्तन के असर के आकलन को लेकर हुए अध्ययन इस बात पर केंद्रित रहे हैं कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने में कितने धन की जरूरत होगी।
न्यूनतम आकलन की तस्वीर
प्रकृति के नुकसान की यह आर्थिक तस्वीर न्यूनतम आकलन के आधार पर पेश की गई है। 2050 में वैश्विक आय का यह सिर्फ 0.67 फीसद होगी। अगर प्रकृति के नुकसान की व्यापकता के आधार पर इसका आकलन किया जाए तो तस्वीर कुछ और होगी। जिसमें तेजी से पिघलते अंटार्कटिक, बढ़ता ग्लोबल वार्मिंग और पूर्वानुमानों से ज्यादा तेज दर से बढ़ते समुद्र तल को शामिल कर लिया जाए।
प्राकृतिक असंतुलन
रिपोर्ट के अनुसार जंगल, नम भूमि और कोरल रीफ जैसे प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से प्रकृति की जरूरी पारिस्थितिकी असंतुलित हो रही है। मछलियों का भंडार कम हो रहा है। इमारती और जलावन के लिए लकड़ियां खत्म हो रही है। पादपों के परागण के लिए कीट खत्म हो रहे हैं।
विडंबना
2006 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री लॉर्ड स्टर्न द्वारा तैयार स्टर्न रिपोर्ट के अनुसार तापमान वृद्धि को रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन कटौती सीमित करने का नुकसान सालाना दुनिया की जीडीपी का एक फीसद है। लेकिन अगर हम जलवायु परिवर्तन की बात को अनदेखा करते हैं तो यह दुनिया को जीडीपी का करीब 20 फीसद चपत लगा सकती है।
खाद्य सुरक्षा पर खतरा
दुनिया में खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू सकती हैं। प्रकृति के नुकसान का सर्वाधिक नकारात्मक असर कृषि को झेलना पड़ता है। अनुमान के मुताबिक 2050 तक लकड़ी 8 फीसद महंगी हो सकती है। कॉटन, ऑयल सीड और फल व सब्जियों की कीमतों में क्रमश: 6, 4 और तीन फीसद का इजाफा हो सकता है।