रोहिंग्या पर आंग सान के रुख से भारत की बंधी उम्मीद
सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर भारत सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी उसकी सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस उनके देश म्यांमार भेजने की तैयारी में जुटे भारत को आंग सान सू की के नए रुख से उम्मीद मिली है। सू की ने अपने भाषण में इस बात का उल्लेख किया है कि जो वैध रोहिंग्याई शरणार्थी होंगे उन्हें वापस लिया जा सकता है। सू की ने यह बात वैसे तो बांग्लादेश के संदर्भ में की है लेकिन भारत का मानना है कि इससे रोहिंग्या शरणार्थियों को वापसी का नया रास्ता निकल सकता है। यह पहला मौका है जब म्यांमार के सबसे वरिष्ठ नेता ने रोहिंग्या समस्या पर अपना पक्ष रखा है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि अभी तक हम रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने को तैयार थे लेकिन म्यांमार इस पर चुप्पी साधे हुए था। अभी भी म्यांमार ने खुल कर यह संकेत नहीं दिया है कि वह हर शरणार्थी को वापस लेने को तैयार है लेकिन कम से कम यह संकेत दिया है कि जिनकी वैधता साबित हो जाएगी उनके लौटने की उम्मीद बन सकती है। अभी तक तो एक बड़ी समस्या यह है कि अगर म्यांमार ने इन्हें स्वीकार नहीं किया तो इनके साथ क्या किया जाएगा। लेकिन अब एक उम्मीद बंधी है कि बातचीत हो सकती है। भारत अपने यहां रह रहे 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार भेजना चाहता है। यह देश में वैसे तो एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है लेकिन सरकार के स्तर पर कार्रवाई जारी है। एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर भारत सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी उसकी सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
हलफनामे में भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह वर्ष 1951 में किये गये शरणार्थियों की स्थिति से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौते या 1967 के समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है। इसलिए उसे इन समझौते के शर्तो को मानने का दबाव नहीं डाला जा सकता। भारत ने कहा है कि वह 1951 के समझौते या 1967 के प्रोटोकाल के किसी भी प्रावधान से बाध्य नहीं है। इसी तरह से भारत ने अभी तक दबाव, क्रूरता, गैर मानवीय व्यवहार या दंड की वजह से निर्वासित व्यक्तियों की सुरक्षा से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौते को लागू नहीं किया है। ऐसे में भारत इनके प्रावधानों को भी लागू करने के लिए बाध्य नहीं है। इसके आधार पर भारत सरकार ने कहा है कि उक्त समझौते को लागू नहीं करने की वजह से वह शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजने की प्रक्रिया शुरु कर सकता है। रोहिंग्या से भारत में आये शरणार्थियों के समर्थकों का कहना है कि भारत चूंकि अंतरराष्ट्रीय समझौते को स्वीकार करता है इसलिए उन्हें देश से निकालने की पहल नहीं कर सकता।
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