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नकली करंसी के लद जाएंगे दिन, भारत ने तैयार की अपनी सिक्योरिटी इंक

भारत ने सिक्योरिटी इंक की टेक्नोलॉजी तैयार कर ली है और भविष्य में सिक्योरिटी इंक का प्रयोग रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया नोटों की छपाई में कर सकेगी।

By Arti YadavEdited By: Published: Mon, 07 Jan 2019 09:20 AM (IST)Updated: Mon, 07 Jan 2019 10:24 AM (IST)
नकली करंसी के लद जाएंगे दिन, भारत ने तैयार की अपनी सिक्योरिटी इंक
नकली करंसी के लद जाएंगे दिन, भारत ने तैयार की अपनी सिक्योरिटी इंक

जालंधर, जेएनएन। नकली करंसी का धंधा करने वालों के दिन अब लदने वाले हैं। भारत ने सिक्योरिटी इंक की टेक्नोलॉजी तैयार कर ली है और भविष्य में सिक्योरिटी इंक का प्रयोग रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया नोटों की छपाई में कर सकेगी। इंडियन साइंस कांग्रेस के चौथे दिन लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में भाग लेने पहुंचे आईआईटी धनबाद से पहुंचे डॉ. विनीत कुमार राय ने लेजर सपोर्ट मैकेनिज्म पर अपना व्याख्यान देते हुए सिक्योरिटी इंक टेक्नोलॉजी पर विस्तार से चर्चा की।

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डॉ. विनीत कुमार ने बताया कि सिक्योरिटी इंक से कुछ भी लिखा जाएगा वह सामान्य आंखों से किसी को दिखाई नहीं देगा। यह केवल तय वेब लेंथलेजर का प्रकाश डालने पर ही दिखाई देगा। हालांकि अदृश्य रहने वाली इंक इस समय बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन यह इंक लंबे समय काम नहीं करती है। अभी तक भारतीय करंसी के लिए विदेशों से इंक मंगवाकर उसका प्रयोग किया जा रहा है।

सिक्योरिटी इंक विदेशों से आने के कारण जब भारत ने पुराने नोटों की जगह नए 2000 व 500 के नए नोट बाजार में उतारे तो कुछ दिन बाद ही नकली नोट भी बाजार में आ गए थे। परंतु अब वैज्ञानिकों के इनोवेशन के बाद अब तैयार की गई सिक्योरिटी इंक से नकली करंसी का धंधा करने वाले कामयाब नहीं हो पाएंगे।

भारत की अपनी सिक्योरिटी इंक होगी वेब लेंथलेजर
भारत की अपनी सिक्योरिटी इंक वेब लेंथलेजर होगी, जिसे वेब लेंथलेजर प्रकाश में पढ़ा जा सकेगा। इसकी जानकारी सिर्फ रिजर्व बैंक के चंद अधिकारियों को ही होगी, या फिर नोट गिनने व देखने वाली मशीन में पहले से उसी वेव लेंथलेजर लाइट को फिट किया जाएगा, जिससे मशीन का प्रयोग कर करंसी के असली व नकली होने का पता किया जा सके।

कैंसर थैरेपी में भी कारगर साबित
मैटीरियल लेजर्स का प्रयोग सिर्फ करंसी में ही नहीं बल्कि कैंसर थैरेपी में भी कारगर साबित हो जा रहा है। कैंसर थैरेपी से रेडिएशन टारगेट बनाकर मरीज के शरीर के उन्हीं सेल्स को दी जाती है जो कैंसर सेल होते हैं। इससे मरीज के शरीर के दूसरे हिस्से में रेडिएशन के दुष्प्रभाव से बचे रहते हैं।


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