नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/संदीप राजवाड़े। आजादी के बाद देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए कई मूलभूत आवश्यकताओं पर काम करने की जरूरत थी। ऐसे में अंतरिक्ष पर कामयाबी की इबारत लिखने के बारे में सोचना भी एक ख्वाब ही था, लेकिन इस अफसाने को हकीकत का अमली जामा पहनाया विक्रम साराभाई ने। भारत ने अपना अंतरिक्ष का सफर जिस वक्‍त शुरू किया था उस वक्‍त अमेरिका और रूस इस क्षेत्र में अपने झंडे गाड़ चुके थे। भारत के पास न तो प्रक्षेपण की सुविधा थी, न ही मूलभूत ढांचा उपलब्‍ध था। पर जज्बा और हौसला किसी से कम नहीं था। हम कैसे आगे बढ़े, यह सोचना आज अचंभा लग सकता है। पहले अभियान के समय थुंबा रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन पर कोई इमारत नहीं थी, सो स्‍थानीय बिशप के घर को ही प्रोजेक्ट डायरेक्टर का ऑफिस बनाया गया। प्राचीन सेंट मैरी मेगडलीन चर्च की इमारत कंट्रोल रूम बनी और नंगी आंखों से रॉकेट का धुआं देखा गया। रॉकेट के कलपुर्जे और अन्य उपकरण तो प्रक्षेपण स्थल पर बैलगाड़ी और साइकिल से ले जाए गए थे।

उन दिनों आर्थिक संसाधन कम थे, इसलिए सरकार को अंतरिक्ष महत्ता पर राजी करना ही बड़ा काम था। रूसी स्पुतनिक लांच होने के बाद साराभाई ने भारत जैसे विकासशील देश के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व के बारे में कहा थाः

"ऐसे कुछ लोग हैं जो विकासशील राष्ट्रों में अंतरिक्ष गतिविधियों की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हैं। हमारा उद्देश्य अस्पष्ट नहीं है। हम चंद्रमा या ग्रहों की गवेषणा या मानव सहित अंतरिक्ष-उड़ानों में आर्थिक रूप से मजबूत राष्ट्रों के साथ प्रतिस्पर्धा की कोई कल्पना नहीं कर रहें हैं। लेकिन हम आश्वस्त हैं कि अगर हमें राष्ट्रीय स्तर पर, और राष्ट्रों के समुदाय के बीच कोई सार्थक भूमिका निभानी है, तो हमें मानव और समाज की वास्तविक समस्याओं के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी को लागू करने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए।"

थुंबा में शिशु के पहले कदम की तरह शुरुआत करने के बाद भारत ने अपने अंतरिक्ष के सफर में कई मील के पत्‍थर पार कर लिये हैं। इसरो उपग्रहों का निर्माण और प्रक्षेपण करने वाले दुनिया के प्रमुख संगठन के रूप में उभर कर सामने आया है। आज हमारा देश अपनी जरूरतों के साथ दूसरे देशों के लिए उपग्रहों का निर्माण और उनका प्रक्षेपण भी कर रहा है।

बीते कुछ दशकों में अमेरिका और रूस से मुकाबला करते हुए भारत उस फेहरिस्त में आ खड़ा हुआ है जहां दुनिया के चंद मुल्क ही पहुंचे हैं। इस पूरे सफर में भारत के मिशन 'चंद्रयान-2' को अपेक्षाकृत सफलता हाथ नहीं लगी लेकिन विश्व पटल पर भारत का डंका बजा। अंतरिक्ष के क्षेत्र में आज स्थिति यह है कि अमेरिका सहित तमाम देश भारत के साथ व्यावसायिक समझौता करने को इच्छुक हैं। कम लागत और सफलता की गारंटी इसरो की सबसे बड़ी ताकत है, जिसकी वजह से स्पेस इंडस्ट्री में आने वाला समय भारत के एकाधिकार का हो सकता है। अमेरिका की फ्यूट्रान कॉरपोरेशन की एक शोध रिपोर्ट भी बताती है कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़े देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग रणनीतिक तौर पर सराहनीय है।

भारत ने गाड़े सफलता के झंडे

यूनियन ऑफ कंसर्न्ड साइंटिस्ट सेटेलाइट डाटाबेस ने एक सूची तैयार की है। इस सूची में दुनिया के उन देशों के नाम दर्ज हैं जिन्होंने अंतरिक्ष में कामयाबी हासिल की है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के स्पेस में अब तक 1308 सेटेलाइट हैं। चीन के 356, रूस के 167, जापान के 78 और भारत के 58 सेटेलाइट स्पेस में हैं। कुछ अन्य देशों के भी सैटेलाइट हैं। इनमें से 339 सेटेलाइट का प्रयोग मिलिट्री के लिए, 133 का सिविल कार्यों के लिए, 1440 कॉमर्शियल और 318 मिक्स्ड यूज के लिए हैं।

थुंबा में नाइक-अपाचे से शुरुआत

भारत की अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत 21 नवंबर 1963 को हुई थी जब केरल में मछली पकड़ने वाले क्षेत्र थुंबा से अमेरिका निर्मित दो-चरण वाले साउंडिंग रॉकेट ‘नाइक-अपाचे’ का प्रक्षेपण किया गया था। वह अंतरिक्ष की ओर भारत का पहला कदम था। उस समय भारत के पास न तो इस प्रक्षेपण के लिए जरूरी सुविधाएं थीं और न ही मूलभूत ढांचा उपलब्‍ध था। चूंकि थुंबा रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन पर कोई इमारत नहीं थी इसलिए वहां के स्‍थानीय बिशप के घर को निदेशक का ऑफिस बनाया गया। प्राचीन सेंट मैरी मेगडलीन चर्च की इमारत कंट्रोल रूम बनी। यहां तक कि रॉकेट के कलपुर्जों और अंतरिक्ष उपकरणों को प्रक्षेपण स्थल पर बैलगाड़ी और साइकिल से ले जाया गया था।

साराभाई ने जब थुंबा को भारत के पहले राकेट प्रक्षेपण के लिए चुना तो वहां चर्च के बिशप ने ईसाई मछुआरों को साराभाई की मदद के लिए तैयार किया। राकेट प्रक्षेपण के शुरूआती काम भी चर्च में ही हुए। वहीं बैठकें हुआ करती थीं। आज इस चर्च को स्पेस म्यूजियम में बदल दिया गया है। लांचिंग के समय केरल विधानसभा का सत्र चल रहा था। थोड़ी देर के लिए सत्र रोक दिया गया और सबकी नजर लांच पर टिक गई। भारत के ग्यारवहें राष्ट्रपति डॉ ए पी जे कलाम उस प्रोजेक्ट में युवा वैज्ञानिक के रूप में शामिल थे। 

दिल्ली विवि के एस्ट्रोफीजिक्स के सीनियर प्रोफेसर टीआर शेषाद्री कहते हैं कि 75 सालों के दौरान भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में काफी उपलब्धि की है। सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी दुनिया में अंतरिक्ष रिसर्च को लेकर विश्वसनीयता बढ़ी है। कम लागत और सफलता के कारण सैटेलाइट और रॉकेट में आज दूसरे देश हमारी सेवाएं ले रहे हैं। आज वातावरण के समझने के साथ जिंदगी से जुड़ी कई सुविधाओं को इसी उपलब्धि व खोज ने आसान बनाया है। आज मोबाइल पर टीवी पर इतने सैकड़ों चैनल और जो लाइव जानकारी देख पा रहे हैं, यह सब सैटेलाइट का ही कमाल है। भारत ने हेल्थ खेती वातावरण से लेकर मंगल तक अपनी छाप छोड़ी।

1975 में पहला और 1979 में दूसरा उपग्रह लांच

भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट 19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। उसका नाम भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। उस वक्‍त भी प्रक्षेपण के लिए मूलभूत सुविधाओं की कमी थी। बैंगलोर के एक शौचालय को डाटा प्राप्त करने के केंद्र में तब्दील कर दिया गया था। उपग्रह ने 5 दिन बाद काम करना बंद कर दिया था, लेकिन भारत के लिए वह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। 1979 में भारत का दूसरा उपग्रह भास्कर भेजा गया जो 442 किलो का था। 1980 में रोहिणी उपग्रह को पहले भारत-निर्मित प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 से कक्षा में स्थापित किया गया। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान संस्थान के एरिज साइंस पॉपुलराइजेशन एंड आउटरीच प्रोग्राम के चेयरपर्सन शशि भूषण पांडेय कहते हैं कि पिछले कुछ दशकों में भारत का योगदान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) कई आयामों में अध्ययन कर रहा हैं जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हैं। इसके अलावा में स्पेस में भारत में कई पहलुओं पर शोध किए जा रहे हैं। खगोल विज्ञान के माध्यम से हम अंतरिक्ष और सुदूर अंतरिक्ष के विषय पर अध्ययन करते हैं। विद्युत चुंबकीय तरंग दैर्ध्य पर विभिन्न वेधशालाओं द्वारा अंतरिक्ष का अध्ययन किया जाता है। जैसे रेडियो तरंग दैर्ध्य पर जीएमआरटी (ज्वाइंट मीटर प्लांस रेडियो टेलीस्कोप) जो पुणे में स्थित है। वहीं आप्टिक तरंग दैर्ध्य कि बात करें तो हाल में 3.6 मीटर व्यास की दूरबीन देहरादून में स्थापित की गई है। 2015 में भारत ने इसरो की मदद एस्ट्रो सेट नाम की खगोल वेधशाला की स्थापना की है।

मंगलयान भेज बनाया कीर्तिमान

16 नवंबर 2013 को अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में भारत ने एक नया अध्याय लिखा। इस दिन 2:39 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से PSLV C-25 मार्स ऑर्बिटर (मंगलयान) का अंत‍रिक्ष का सफर शुरू हुआ। 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुंचने के साथ ही भारत इस तरह के अभियान में पहली बार में ही सफल होने वाला पहला देश बन गया। सोवियत रूस, नासा (अमेरिका) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद इस तरह का मिशन भेजने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बना। भारत का मंगल मिशन सबसे सस्ता भी है। भारत के मार्स मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये (करीब 6 करोड़ 90 लाख डॉलर) है। यह नासा के पहले मंगल मिशन का दसवां और चीन-जापान के नाकाम मंगल अभियानों का एक चौथाई भर है।

लांचपैड बना है भारत

ISRO द्वारा जिन विदेशी सैटेलाइट्स को लॉन्च किया जाता है, उनमें से अधिकतर अर्थ ऑब्जर्वेशन, वैज्ञानिक प्रयोग और तकनीकी प्रदर्शन के लिए होते हैं। दरअसल, ISRO की पहचान दुनिया में सबसे सस्ते लॉन्च करने वाले संगठन के तौर पर है। इस वजह से अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देश भी लॉन्चिंग के लिए ISRO से संपर्क करते हैं। अधिकतर विदेशी लॉन्चिंग छोटे और मध्यम आकार के सेटेलाइट्स की होती है। भारत दुनिया भर के देशों के लिए सेटेलाइट छोड़ने का लांचपैड बन चुका है। अमेरिका के 143 सेटेलाइट, कनाडा के 12 सेटेलाइट, ब्रिटेन के 12, जर्मनी के नौ और सिंगापुर के आठ सेटेलाइट भारत से छोड़े गए हैं।

104 सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेज रचा इतिहास

इसरो ने 15 फरवरी 2017 को एक साथ 104 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे थे। इनमें अमेरिका के 96 उपग्रह शामिल थे। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया गया था। इससे पहले एक साथ इतने सैटेलाइट कभी नहीं छोड़े गए थे। इससे पहले का रिकार्ड रूस के पास था, जिसने वर्ष 2014 में एक साथ 37 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे थे। इस सफल प्रक्षेपण में भारत के तीन सैटेलाइट शामिल थे। भारत और अमेरिका के अलावा इजरायल, हालैंड, यूएई, स्विट्जरलैंड और कजाकिस्तान के भी सैटेलाइट थे।

2008 में पहला मिशन चंद्रयान

इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 भेजा, जिसने चन्द्रमा की परिक्रमा की। पहले मिशन चंद्रयान प्रथम पर करीब 390 करोड़ रुपये खर्च हुए जो नासा के इसी तरह के मिशन पर होने वाले खर्च के मुकाबले 8-9 गुना कम है।

महिलाओं की भूमिका

इसरो के अति महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चंद्रयान-2 के नेतृत्व की जिम्मेदारी दो महिलाओं के कंधों पर थी। वनिथा मुथैया ने प्रोजेक्ट डायरेक्टर तो रितु करिढाल ने मिशन डायरेक्टर के रूप में भारत के मून मिशन की अगुआई की थी। वनिथा और रितु के अलावा चंद्रयान-2 पर काम करने वाले स्टाफ में 30% से ज्यादा महिलाएं थीं। भारत के अब तक के सबसे सफल स्पेस प्रोजेक्ट में से एक ‘मिशन मंगल’ को भी महिलाओं ने ही सफल बनाया था। इसको लीड करने वाली प्रमुख टीम में 5 महिला वैज्ञानिक शामिल थीं। मंगल मिशन की लगभग 27% वैज्ञानिक महिलाएं थीं। मीनल संपत, मौमिता दत्ता, अनुराधा टी के, रितु करिढाल और नंदिनी हरिनाथ ने मिशन मंगल में अहम भूमिका निभाई थी।

इसरो कर रहा कमाई भी

केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने 27 जुलाई, 2022 को संसद में बताया कि इसरो ने अपने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (पीएसएलवी) से 34 देशों के 345 विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक लांच किया है। विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से अर्जित कुल विदेशी राजस्व करीब 5.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर और 22 करोड़ यूरो है। नवीनतम पीएसएलवी मिशन 30 जून को हुआ था जब इसरो ने सिंगापुर के तीन उपग्रहों डीएस-ईओ, न्यूएसएआर और एसजीओओबी-1 को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया। व्यावसायिक उपग्रह प्रक्षेपण का काम इसरो की कमर्शियल विंग ' एंट्रिक्स कॉरपोरेशन' संचालित करती है। भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा बढे़गी क्योंकि यह अरबों डॉलर का मार्केट है। भारत के पास कुछ बढ़त पहले से है, इसमें और प्रगति करके इसका बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उपयोग संभव है। भारत अंतरिक्ष विज्ञान में नई सफलताएं हासिल कर विकास को अधिक गति दे सकता है।

भारत अंतरिक्ष में भेजेगा मानव

भारत जल्द ही अपने पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान ‘मिशन गगनयान’ को पूरा कर अंतरिक्ष में कीर्तिमान स्थापित करने वाला है। हाल में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने कहा कि गगनयान मिशन की तैयारी पूरी हो चुकी है। अगले साल भारत एक या दो लोगों को अंतरिक्ष में भेजेगा। इसके लिए दो परीक्षण इस साल के अंत तक पूरे कर लिए जाएंगे। पहले परीक्षण में मानव रहित विमान को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। दूसरे परीक्षण में रोबोट ‘व्योममित्र’ को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इन दोनों परीक्षणों के सफल होने के बाद ही तीसरी बार में मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की तैयारी की जाएगी। अगर सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ तो भारत भी 2023 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखने वाले देशों में शामिल हो जाएगा।

स्पेस स्टेशन और स्पेडेक्स प्रोजेक्ट की तैयारी

इसरो गगनयान मिशन के बाद भारत का स्पेस स्टेशन बनाने की योजना पर काम कर रहा है। 2030 तक स्पेस स्टेशन लॉन्च करने की तैयारी की जाएगी। लेकिन स्पेस स्टेशन बनाने से पहले जरूरी है अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को आपस में जोड़ने की क्षमता हासिल की जाए। इसे कहते हैं स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पेडेक्स)। इससे वैज्ञानिकों को यह पता चलेगा कि वे अपने स्पेस स्टेशन में ईंधन और अन्य जरूरी वस्तुएं पहुंचा पाएंगे या नहीं। स्पेडेक्स के तहत दो स्पेसक्राफ्ट 2025 तक पीएसएलवी रॉकेट से छोड़े जाएंगे। इस प्रयोग में रोबोटिक आर्म एक्सपेरिमेंट भी शामिल होगा।

नासा-इसरो का संयुक्त ‘निसार’ अगले साल होगा लांच

इसरो और नासा मिलकर 2023 में अपने संयुक्त मिशन निसार (नासा-इसरो-सिंथेटिक एपर्चर रडार) उपग्रह लांच करेंगे। इस मिशन में आधुनिक रडार इमेजिंग के जरिए पृथ्वी की सतह में होने वाले परिवर्तनों का अवलोकन किया जाएगा। इसकी मदद से जमीन, वनस्पति और क्रायोस्फेयर में होने वाले बदलाव को देखा जा सकता है। इस मिशन में नासा की तरफ से एल-बैंड एसआर और इससे जुड़े सिस्टम को विकसित किया जा रहा है। इसरो एस-बैंड एसआर के साथ स्पेसक्राफ्ट बस व लांच व्हीकल से जुड़ी लांच सर्विस को डेवलेप कर रहा है। नासा के साथ इसरो के इस संयुक्त मिशन की नींव 2015 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान रखी गई थी।

मिशन जो साबित होंगे मील के पत्थर

चंद्रयान-3 - इसरो का यह तीसरा चंद्रयान मिशन है। इसे सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा से लांच किया जाएगा। इसे जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल मार्क 3 राकेट पर लांच करेंगे। इसे अगस्त के अंतिम सप्ताह में ही लांच किए जाने की योजना है।

गगनयान-1 - यह भारत का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान प्रोग्राम है। इस मिशन में दो मानव रहित और एक मानव के साथ होंगे। गगनयान-1 तीन व्यक्तियों को अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता वाला एक मानव रहित मिशन है, जिसे इस साल के अंत तक लांच किए जाने की योजना है।

गगनयान-2 - इसरो की तरफ से गगनयान-2 दूसरा मानव रहित मिशन है, इसमें रोबोट व्योममित्र को अंतरिक्ष में ले जाया जाएगा। इस मिशन का मकसद इंसान को अंतरिक्ष में भेजने से पहले वहां सुरक्षा प्रणाली को समझना है। इसे भी इस साल के अंत तक लांच किया जाएगा।

आदित्य एल-1 मिशन- इसरो की तरफ से आदित्य एल-1 मिशन सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला मिशन होगा। 400 किलो के उपग्रह को सूर्य- पृथ्वी लंग्रागियन प्वाइंट एल वन के चारों ओर एक कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इसे इस साल के अंत तक लांच करने की योजना है।

गगनयान-3- इस मिशन में अंतरिक्ष में टेस्ट पायलट्स को भेजा जाएगा। इसमें भेजे जाने वाले पायलट को फिटनेस टेस्ट, एयरोमेडिकल के साथ मनोवैज्ञानिक टेस्ट से गुजरना होगा। इसे 2023 में लांच किए जाने की योजना है। गगनयान-3 सफल हो गया तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत अंतरिक्ष में इंसान भेजने वाला देश बन जाएगा।

शुक्रयान-1- शुक्रयान मिशन के जरिए शुक्र ग्रह की सतह पर वातावरण का अवलोकन किया जाएगा। इसके लिए श्रीहरिकोटा सेंटर से एक ऑर्बिटर लांच किया जाएगा। मिशन का उद्देशनय शुक्र की सतह व चट्टानों की परत का अध्ययन करना है। इसे दिसंबर 2024 में लांच किए जाने की योजना है।

चंद्र ध्रुवीय अंवेषण मिशन- इसरो और जापान की एयरोस्पेस एक्प्लोरेशन एजेंसी (जाक्सा) के साथ मिलकर इस चंद्र ध्रुवीय मिशन को किया जा रहा है। 2024 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र के लिए चंद्र रोवर व लैंडर भेजा जाएगा। इसके जरिए चंद्रमा में पानी की उपस्थिति के साथ मात्रा, गुण व प्रकार का पता लगाना है।

मंगलयान-2- इसरो की तरफ से मंगलयान-2 को 2025 में लांच किए जाने की योजना है। यह मंगलयान 1 के बाद का अगला मिशन है।

एस्ट्रोसैट-2- भारत का यह मिशन खगोल मिशन के अवलोकन के लिए बनाया जा रहा है। इसे अगले कुछ सालों में लांच किया जाएगा। पहले एस्ट्रोसैट को 2015 सितंबर में लांच किया गया था।

चुनौती- समाधान

दिल्ली विवि के एस्ट्रोफीजिक्स के सीनियर प्रोफेसर टीआर शेषाद्री बताते हैं कि भारत अंतरिक्ष शोध में काफी विकास किया है। हमें सोचना होगा कि हर देश की अपनी जरूरत व परिस्थिति के हिसाब से खोज और काम होता है। पहले जहां अंतरिक्ष विज्ञान को सिर्फ एक अलग विषय तक समझा जाता था, अब इसे स्पेस विज्ञान के तौर पर देख रहे हैं। यह हर किसी की लाइफ से जुड़ा हुआ है। अब इसे हर विभाग व सेक्टर के लोगों से जुड़ा माना जा रहा है। इसे लेकर हमें समझना होगा यह सेक्टर हर किसी का है, एक प्रोजेक्ट बनाने में सिर्फ विज्ञानी की नहीं बल्कि मैकेनिकल इंजीनियर, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, कंप्यूटर इंजीनियर, आईटी इंजीनियर पार्ट्स इंजीनियर सेक्टर के हर फील्ड के लोगों की जरूरत होती है। इसे लेकर बचपन से बच्चों को जानकारी देनी होगी जिससे उनके अंदर इसे लेकर जुड़ाव और नॉलेज बढ़े।